क्या तालिबान आतंकवाद से जंग लड़ रहा है — राजेश कुमार पासी
डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ लेने से पहले एक रैली में तालिबान को कहा है कि वो अमेरिकी हथियार और सैनिक उपकरण अमेरिका को लौटा दे । वास्तव में 2021 में जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान को छोड़कर चली गई थी तो अपने पीछे कई बिलियन डॉलर के आधुनिक हथियार और सैनिक उपकरण छोड़ गई थी जो अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण होने के बाद उसके कब्जे में चले गए थे। अब डोनाल्ड ट्रंप इन्हीं हथियारों को तालिबान से वापिस मांग रहे हैं । इस संबंध में अमेरिकी उद्योगपति एलेन मस्क भी सवाल उठा चुके हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर तालिबान अमेरिका को उसके हथियार वापिस नहीं करता है तो ट्रम्प अफगानिस्तान को दी जा रही अमेरिकी वित्तीय मदद में कटौती कर देंगे । उनका कहना है कि अमेरिका अफगानिस्तान को कई बिलियन डॉलर की मदद कर रहा है लेकिन तालिबान ने अभी तक उनके हथियार वापिस नहीं किये हैं।
यहां सवाल यह उठता है कि जो बाइडेन की सरकार के समय यह हथियार अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना ही छोड़कर चली गई थी लेकिन उन्होंने इन हथियारों को वापिस करने की मांग क्यों नहीं की । सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी विशेष रणनीति के तहत ही अमेरिकी प्रशासन ने अमेरिकी सेना को अपने हथियार छोड़कर आने को कहा होगा, इसलिए बाइडेन सरकार ने कभी भी तालिबान से इन हथियारों को वापिस करने के लिए नहीं कहा । देखा जाए तो डोनाल्ड ट्रंप बाइडेन सरकार द्वारा किये गए ज्यादातर फैसलों को पलटने में लगे हुए हैं, तालिबान से अमेरिकी हथियारों की वापिसी की मांग भी उसी मुहिम का हिस्सा लगती है।
डोनाल्ड ट्रंप की इस मांग पर अब तालिबान की प्रतिक्रिया आ गयी है और उसने कहा है कि वो इन हथियारों और उपकरणों को वापिस नहीं करेगा बल्कि इसके विपरीत उसकी ट्रम्प प्रशासन से मांग है कि उसे और हथियार और सैनिक उपकरण प्रदान किये जायें। इसके अलावा तालिबान अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान की जब्त की गई विदेशी मुद्रा भी मांग रहा है। वैसे देखा जाए तो अगर तालिबान अमेरिकी हथियारों को वापिस कर देता है तो वो एक प्रकार से निहत्था हो जाएगा । एक विद्रोही संगठन के रूप में उसके पास हथियार हैं लेकिन एक देश की सरकार के रूप में उसको जो हथियार चाहिए वो अमेरिकी हथियार और सैनिक उपकरण ही हैं । तालिबान अपनी सैन्य परेड में इन्हीं अमेरिकी हथियारों का प्रदर्शन करता है, इसके अलावा उसके पास प्रदर्शन करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। तालिबान ने हथियार वापिस न करने की वजह का खुलासा करते हुए कहा है कि उसे इस्लामिक स्टेट खुरासान जैसे खतरनाक आतंकवादी संगठन से लड़ने के लिए इन हथियारों की जरूरत है। उसका कहना है कि वही एक देश है जो इस समय इस्लामिक स्टेट से लड़ रहा है । उसे इस लड़ाई में अमेरिका की मदद चाहिए ।
इस संबंध में तालिबान सरकार के सुरक्षा मामलों के केंद्रीय आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की है । इसमें कहा गया है कि दुनिया भर से इस्लामिक स्टेट खुरासान के आतंकवादी पाकिस्तान आ रहे हैं जिन्हें पाकिस्तान प्रशिक्षित करके दुनियाभर में भेज रहा है। तालिबान का कहना है कि वो अपने देश से ऐसे आतंकवादियों को मारकर भगा देता है लेकिन ये लोग पाकिस्तान में जाकर फिर संगठित हो जाते हैं। पाकिस्तान ने बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के इलाकों में अपने प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये हुए हैं, जहां इन आतंकवादियों को ट्रेंड किया जा रहा है। तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान में बैठे संगठन पूरी दुनिया में आतंकवाद का प्रचार कर रहे हैं और इस प्रचार के माध्यम से आतंकवादी भर्ती किये जा रहे हैं और फिर उन्हें पाकिस्तान लाया जा रहा है । ये ट्रेंड आतंकवादी इसके बाद एशिया और यूरोप के देशों में भेज दिए जाते हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आतंकवादी कराची और लाहौर के एयरपोर्ट पर आते हैं और फिर यहीं से वापिस चले जाते हैं। तालिबान का कहना है कि ये आतंकवादी सिर्फ इस क्षेत्र में ही अपनी कार्यवाहियां नहीं करेंगे बल्कि ये पूरी दुनिया में आतंकवादी कार्यवाहियों को अंजाम दे सकते हैं। तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान इन आतंकवादियों के पहले निशाने पर है लेकिन हमने यहां शांति स्थापित की हुई है । हम इनसे लड़ रहे हैं और दुनिया को डरने की जरूरत नहीं है। ये आतंकवादी अफगानिस्तान में विदेशी निवेश को रोकने की कोशिश कर रहे हैं । पिछले 12 महीनों में इन्होंने कई हमले किये हैं लेकिन हमने इन्हें रोक दिया है। हमने इनमें से कई आतंकवादियों को खत्म भी कर दिया है। तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान के लोग इस आतंकवाद में शामिल नहीं हैं, इसमें ज्यादातर लोग पाकिस्तान या ताजिकिस्तान से हैं ।
इसके अलावा तालिबान का यह भी कहना है कि उसने अपने यहां से ड्रग्स का कारोबार भी खत्म कर दिया है. अब यह काम पाकिस्तान द्वारा किया जा रहा है। अब सवाल यह पैदा होता है कि तालिबान खुद भी एक आतंकवादी संगठन माना जाता है तो उसकी बातों पर भरोसा कैसे किया जाए । देखा जाए तो दुनिया तालिबान पर भरोसा करे या न करे लेकिन भारत तालिबान पर भरोसा कर रहा है। जहां तक अमेरिका का सवाल है तो पिछली सरकार तालिबान पर भरोसा कर रही थी इसलिए उसे बड़ी आर्थिक मदद दी जा रही थी। आज के हालात में यह माना जा सकता है कि तालिबान एक कट्टरवादी संगठन तो है लेकिन आतंकवादी संगठन नहीं है। यह जरूर है कि उसने अपने देश की लड़ाई लड़ने के लिए पहले रूस और फिर अमेरिका के खिलाफ आतंकवाद का सहारा लिया है। तालिबान की लड़ाई अफगानिस्तान तक सीमित है जबकि पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद फैलाने के लिए जाना जाता है।
इसमें भी कोई शक नहीं है कि अफगानिस्तान की धरती पर आतंकवादी संगठन फलते-फूलते रहे हैं लेकिन आज का तालिबान इसके खिलाफ लड़ रहा है। तालिबान दुनिया को यह आश्वासन दे रहा है कि वो अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकवादी पैदा करने के लिए नहीं होने देगा। पाकिस्तान की हरकतों को देखते हुए हमारे पास तालिबान पर भरोसा करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं है। यही कारण है कि भारत सरकार तालिबान के साथ खड़ी दिखाई दे रही है, इसके अलावा रूस भी तालिबान से दोस्ती कर रहा है। तालिबान को मान्यता न देने के बावजूद कई देश तालिबान से संबंध स्थापित कर रहे हैं । तालीबान सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट की जांच की जानी चाहिए ताकि पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही की जा सके । अगर तालिबान सही कह रहा है तो दुनिया को अफगानिस्तान की मदद करनी चाहिए ।

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