कानपुर नगर उपदेश टाइम्स
भारतीय ज्ञान परम्परा ही विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है। भारतीय परम्परा में ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, तर्कशास्त्र साहित्य तथा मानवीय मूल्यों के ऐसे सरोकर अन्तर्निहित है, जिनसे न केवल व्यक्ति आत्मनिर्भर बनता है बल्कि समाज मानवीय गुणों से युक्त होता है। उक्त उद्गार प्रो० सुनीता सोनकर ने डी०बी०एस० कॉलेज में संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यान में कही। कार्यकम में विषय प्रवर्तन एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्षा प्रो० प्रीति राठौर ने कहा कि वास्तव में यदि देखा जाये तो भारतीय ज्ञान परम्परा शिक्षा की एक समृद्धशाली परम्परा है, जो सम्पूर्ण विश्व की धरोहर है और इसे ही आधार बनाकर, आज आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में नवोन्मेष किये जा रहे हैं। आज आवश्यकता है कि उस समृद्धशाली धरोहर को पढ़ने, अनुकरण करने की है और इसी को ध्यान में रखकर ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की गयी है। भारतीय ज्ञान परम्परा समाज जीवन के सभी मूल्यों को समाहित करती है। इसमें राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज व्यवस्था, चिकित्साशास्त्र, कृषिशास्त्र के समावेश के साथ उच्च मानवीय मूल्यों से युक्त मनुष्यता के कल्याण के साथ ही जगत के कल्याण की रुपरेखा प्रस्तुत की गई है। यही जगत के कल्याण का आधार है। कार्यकम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य प्रो० अनिल मिश्रा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा हजारो वर्षों से आश्रम व्यवस्था का पक्षपोषण कर रही है। इसमें व्यक्ति जीवन की प्रत्येक अवस्था में अपने निर्धारित दायित्वों का निर्वाह करते हुए आध्यात्मिक उत्कर्ष को प्राप्त कर रहा है। कार्यकम में प्रो० के०के० श्रीवास्तव ने आभार ज्ञापन किया, कार्यक्रम का संचालन डॉ० प्रत्युष वत्सला द्विवेदी ने किया। कार्यकम में प्रो० सुनील उपाध्याय, प्रो० हेमलता सांगुरी, प्रो० गौरव सिंह, प्रो० प्रवीण सिंह, हर्षित, आदि विभाग के समस्त छात्र/छात्राएं उपस्थित रहें।