दृष्टि हीनता से बचने उपाय करें स्वयं बचें, लोगों को भी बचाएं – सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
आंखे आदमी के लिए वह नियमाक है जो, न रहे तो सारा संसार अंधकार में डूब जाता है। आंखे हमारे लिए सबसे अधिक मुल्यवान और महत्वपूर्ण अंग है। जरा सी अज्ञानता की वजह से हम इस बहुमूल्य अंग को खो देते हैं! और फिर सामना करते हैं, जिंदगी भर के अंधेरे और अंधत्व का। अच्छी नेत्रदृष्टि के लिए विटामिन ए की जरूरत होती है। और यह हमें आसानी से पालक, चौलाई, सब्जियों, सीताफल, गाजर, टमाटर आदि में सर्व सुलभ है। अंचल में कुछ वर्षों से
नेत्र संबंधी विकारों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। धूल भरे वातावरण व अज्ञानता की वजह से ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बच्चों में दृष्टिहीनता की शिकायतों में वृद्धि हुई है।
आगामी दिनों में शीघ्र ही अंधत्व निवारण के लिए केंद्र सरकार विश्व बैंक की सहायता से देशभर में मोतिया बिंद से अंधे हुए 85 लाख लोगों की आंखों का आपरेशन कराएगी, केंद्रीय मंत्रीमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने विश्व बैंक की सहायता से देश भर में मोतिया बिंद से हो रहे अंधेपन के खिलाफ अभियान पंचवर्षीय योजना में इसके लिए 448 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। जिसमें 2.26 करोड़ रुपया विश्व बैंक और 32 करोड़ रुपया जेनिस सिस्टम से आएगा। बताया गया है कि अगले तीन वर्षों में 85 लाख लोगों की आंखों में मोतिया बिंद के आपरेशन का लक्ष्य रखा गया है।
हमारे छत्तीसगढ़ अंचल में अंधत्व रोग होने के कई कारण हैं जैसे वहां फूलामाड़ा नामक बीमारी सामन्यतः ज्यादा होती है, चेचक के कारण ही यह रोग होता है। साथ ही विटामिन ए की कमी भी इस रोग के महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। इसके अतिरिक्त धान कटाई के समय उड़ने वाले कचरे आंख को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषित वातावरण एलर्जी की शिकायत को जन्म देने वाला प्रमुख कारण है। फलतः आंख की बीमारी जन्म लेने लगती है। मोतिया बिंद का रोग बिना किसी लक्षण के अचानक ही प्रकट होता है। इससे पीड़ित व्यक्ति धीरे-धीरे अंधत्व का शिकार हो जाता है।
नेत्र विषयक व्याधियों की जानकारी प्रारंभिक अवस्था में ज्ञात करने शालेय स्तर पर नेत्र परीक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, इस तरह के परीक्षण से कुछ दृष्टि दोष जो बचपन में सुधारे नहीं जा सकते, उनका समय रहते निदान किया जा सके, उदाहरण के तौर पर हायपर मेट्रोपिया रोग आठ वर्ष की उम्र में बच्चों को होते हैं। जो आगे चलकर आंखों के तिरछेपन के लिए उत्तरदायी होता है। इस तरह के रोग समय रहते उपचारित किए जाएं तो नेत्र व्याधियों से बचा जा सकता है। बच्चों में नेत्र व्याधियों के बढ़ने का महत्वपूर्ण कारण टी वी, विडियो अधिक समय तक देखते रहने की आदत भी है। वहीं गाजर, पपीता, बथुआ, पालक जो
सहज सुलभ हैं , अधिकांश लोग अज्ञानता के कारण इनका समुचित मात्रा में प्रयोग नहीं करते और अंधत्व के कगार पर चले जाते हैं। एक जानकारी के अनुसार आज भारत में एक करोड़ पैतीस लाख लोग पूर्ण दृष्टिहीनता के शिकार हैं ।और इतने ही आंशिक रूप से अंधत्व से प्रभावित हैं। आंकड़े बताते हैं कि विश्व का हर तीसरा दृष्टिहीन व्यक्ति भारत का है।
डायबिटीज़ एवं उच्च रक्तचाप के कारण अब एक नई बीमारी “रैटिवोवेथी”दिखाई पड़ती है, पर यदि सही समय पर नेत्र परीक्षण व शल्यक्रिया किया जाए तो व्यक्ति अपनी खोई हुई ज्योति पुनः प्राप्त कर सकता है। कुछ लोग नेत्रदान से कतराते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि. नेत्रदान ही ऐसा दान है जिसके माध्यम से व्यक्ति की आंखे मरणोपरांत भी दुनिया को देखती रहती हैं।
वर्तमान में छोटे बच्चों में नेत्र संबंधी विकारों में चिंताजनक वृद्धि हुई है।विशेषकर कम उम्र के बच्चों के नेत्रों की पुतली में अल्स बन जाने एवं आंखों में एलर्जी की शिकायतें बढ़ी हैं। धूल, धुएं व अन्य प्रदूषण से आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मे का उपयोग लाभदायक है। साथ ही सोने से पूर्व प्रतिदिन रात्रि में आंखों को स्वच्छ पानी से धोना चाहिए। नेत्र संबंधी किसी भी तकलीफ की उपेक्षा न कर तुरंत ही नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। कांटैक्ट लैंस चश्मे का एक अच्छा विकल्प हैं, चिकित्सक के उचित परामर्श के बाद ‘चश्माधारी सहजतापूर्वक कांटेक्ट लेंस लगवा सकते हैं। कांटैक्ट लेंस का चलन इसलिए भी ज्यादा है कि इससे दृष्टि ज्यादा स्पष्ट रहती है। साथ ही चेहरे की सुंदरता भी बनी रहती है।
दृष्टिहीनता से संबंधित अस्सी प्रतिशत बीमारियों जो छोटी शल्यक्रिया के द्वारा पूर्णतः ठीक की जा सकती है। लोगों की अज्ञानता या लापरवाही की वजह से मरीज नेत्र चिकित्सकों के लिए काफी दुस्कर हो जाता है और मरीज अंधत्व का शिकार हो जाता है। नेत्रों की सुरक्षा के लिए जन जागरण पर जोर दिया जाना चाहिए, हालांकि शासन की अंधत्व निवारण योजना के तहत नेत्र सुरक्षा व नेत्र विकारों को दूर करने ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में प्रभावी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। पोषक तत्वों की कमी को दूर करने दवाओं… का निःशुल्क वितरण किया जा रहा है। सभी प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्रों में परामर्श दिया जा रहा है कि दृष्टिहीनता से बच्चों की रक्षा के लिए पांच वर्ष तक की आयु वर्ग के बच्चों को प्रति छह माह में संतृप्त विलयन की एक खुराक पिलानी चाहिए। दृष्टिहीनता से बचने बचाने के लिए हम सभी को स्वप्रेरण ही आगे आना चाहिए, एवं शासन द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ उठाना चाहिए इस दिशर में हमारे क्षेत्र में भंडारी नेत्र सेवा समिति का कार्य उल्लेखनीय है।
-सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”