डॉक्टरों की चेतावनी: एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल जानलेवा, एएमआर पर देशभर के विशेषज्ञ एकजुट
                मुंबई (अनिल बेदाग) : क्लिनिकल इंफेक्शियस डिज़ीज़ सोसायटी (सीड्स) द्वारा आयोजित १५वें वार्षिक सम्मेलन सिड्सकॉन 2025 में देशभर के डॉक्टरों ने एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (एएमआर) को भारत के लिए गहराता संकट बताया। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बचाव का सबसे बड़ा तरीका है एंटीबायोटिक का समझदारी और सीमित प्रयोग।
सम्मेलन में सीड्स के सचिव डॉ. वसंत नागवेकर, सीएमसी वेल्लोर के डॉ. जॉर्ज वर्गीज़, वैज्ञानिक अध्यक्ष डॉ. राजीव सोमन, सह-संगठन सचिव डॉ. परिक्षित प्रयाग, कोषाध्यक्ष डॉ. अश्विनी तयाड़े, सह-संगठन अध्यक्ष डॉ. आयशा सुनावाला, संगठन सचिव डॉ. तनु सिंगल, लीलावती हॉस्पिटल के डॉ. शैलेंद्र होडगर, सीएमसी वेल्लोर के डॉ. वी. बालाजी, आयसिएमआर की डॉ. कामिनी वालिया और सीड्स के उपाध्यक्ष डॉ. सुब्रमणियन समेत कई विशेषज्ञ मौजूद रहे।
मुख्य अतिथि डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि भारत में डॉक्टर अक्सर बिना जांच के और कम कीमत की वजह से एंटीबायोटिक लिख देते हैं। यह प्रवृत्ति संक्रमण को और गहरा कर देती है। उन्होंने मेडिकल शिक्षा में संक्रमण नियंत्रण और जागरूकता को शामिल करने पर जोर दिया।
डॉ. जॉर्ज वर्गीज़ ने कहा, “भारत में मरीजों को कई बार जरूरत से ज्यादा और लंबे समय तक एंटीबायोटिक दी जाती है। इससे दवाओं का असर धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। समझदारी से दवा का इस्तेमाल बेहद जरूरी है।”
डॉ. राजीव सोमन का कहना था कि अस्पतालों में एएमआर पर चर्चा और जागरूकता अनिवार्य है। उन्होंने कहा, “हाथ धोने जैसी साधारण आदतें भी संक्रमण रोकने में मददगार होती हैं। आम लोग डॉक्टर पर एंटीबायोटिक लिखने का दबाव न डालें, वरना गंभीर संक्रमण का इलाज असंभव हो जाता है।”
डॉ. वसंत नागवेकर ने बताया कि भारत में ६०-७० प्रतिशत संक्रमण तीसरी पीढ़ी की दवाओं पर भी असर नहीं करते। टीबी, मलेरिया, डेंगू और लेप्टोस्पायरोसिस जैसे रोगों का इलाज हर साल कठिन होता जा रहा है। उन्होंने जोर दिया कि एंटीबायोटिक का प्रयोग केवल गाइडलाइन के अनुसार होना चाहिए।
डॉ. सुब्रमणियन ने कहा कि एएमआर की समस्या सिर्फ दवाओं या वैक्सीन से हल नहीं हो सकती। इसके लिए स्वच्छता और मेडिकल शिक्षा में सुधार सबसे अहम उपाय हैं। वहीं डॉ. वी. बालाजी ने चेतावनी दी कि अस्पताल में भर्ती मरीजों को वहीं संक्रमण हो जाना बेहद खतरनाक और घातक साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों ने आगाह किया कि अगर एएमआर पर अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो साल २०५० तक हर साल करीब १ करोड़ लोगों की मौत इसका कारण बन सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है एंटीबायोटिक का जरूरत से ज्यादा और गलत तरीके से इस्तेमाल।

                        
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