अल्पसंख्यक मुद्दे पर वैश्विक चुप्पी क्यों? डॉ.वेदप्रकाश
 
                क्या अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक शब्द स्वयं में ही विभाजक नहीं हैं? क्या मनुष्य को मनुष्य मानकर व्यवहार किया जाए या उसे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के खांचों में बांटकर उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो? क्या अल्पसंख्यक कहे जाने वालों को सुरक्षित जीवन, शिक्षा और सम्मान का अधिकार नहीं है? फिर भिन्न-भिन्न देशों में अल्पसंख्यक कहे जाने वालों पर हो रही हिंसा और अत्याचारों पर वैश्विक चुप्पी क्यों है? आज जब समूचा विश्व भिन्न-भिन्न रूपों में विकास के कीर्तिमान बना रहा है, तब मानवता हाशिए पर क्यों जा रही है? क्या केवल परिषद अथवा आयोग बना देने से ही मानवाधिकारों की रक्षा हो सकेगी? आज विश्व के अनेक देशों में जाति, रंग, क्षेत्रीयता, भाषा, पूजा पद्धति आदि विभिन्न आधारों पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक वर्ग बनते जा रहे हैं, क्या ऐसे सभी देशों के संविधान में इस प्रकार के प्रविधान हैं? अथवा ऐसे सभी देशों के संविधान उस देश में रहने वाले सभी नागरिकों को समान अधिकार देते हैं?
अल्पसंख्यकों पर हिंसा और अत्याचार के समाचार यद्यपि विकसित देशों से भी आते रहे हैं किंतु भारतवर्ष के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश पिछले लंबे समय से अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से हिंदुओं पर हिंसा और अत्याचार के मामलों में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। वहां हालात बेकाबू हैं। हजारों घटनाएं होने के बाद भी कभी-कभी दो-चार हमलावरों की गिरफ्तारी के समाचार आते हैं। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में बांग्लादेश में 47, पाकिस्तान में 241, वर्ष 2023 में बांग्लादेश में 302 तो पाकिस्तान में 103 और 8 दिसंबर 2024 तक बांग्लादेश में 2200 तो पाकिस्तान से अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों के 112 मामलों सामने आए हैं। ध्यातव्य कि अतीत में बांग्लादेश और भारत के संबंध बड़े सुदृढ़ और सौहार्दपूर्ण रहे हैं। दोनों देश मिलकर अनेक विकासात्मक कार्यों व व्यापारिक संबंधों में एक दूसरे की ताकत भी बने हैं, किंतु अगस्त 2024 में शेख हसीना को अपदस्थ करने और अंतरिम सरकार बनाने के बाद से वहां अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं।
बांग्लादेश की वर्ष 2022 की जनगणना के अनुसार वहां जनसंख्या का कुल 7.95 प्रतिशत हिंदू बचे हैं जिन्हें अल्पसंख्यक वर्ग में गिना जाता है। ये सभी बांग्लादेश के मूल नागरिक हैं। वहां की भिन्न-भिन्न व्यवस्थाओं में उनकी भी एक नागरिक के नाते बड़ी भूमिका है लेकिन पिछले लंबे समय से वहां धार्मिक उन्माद जोरों पर है और अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा और अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अल्पसंख्य हिंदुओं के घर, दुकान व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। वहां अल्पसंख्यकों से लूटपाट, तोड़फोड़, आगजनी एवं मारपीट के बढ़ते मामलों से दहशत का माहौल है। आए दिन हिंदू मंदिरों व पूजा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाकर मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं। हाल ही में तीन मंदिरों को फिर से निशाना बनाया गया है, जिसमें अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही मामला दर्ज किया गया है। इस्कॉन से जुड़े चिन्मय दास ब्रह्मचारी राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार हैं। इस्कॉन से जुड़े लोगों एवं इस्कॉन मंदिरों पर भी लगातार हमले हो रहे हैं।
शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद वहां डॉ. मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। लगातार आ रहे समाचार बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के बेलगाम होने की सूचना दे रहे हैं। कानून व्यवस्था के नाम पर किसी प्रकार की शक्ति दिखाई नहीं दे रही है। क्या वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं के जीवन और सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां की सरकार की नहीं है? क्या वे वहां के नागरिक नहीं हैं? बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त मोहम्मद यूनुस कर रहे हैं उन्हें मानवतावादी पुरस्कार और स्वतंत्रता पुरस्कार आदि भी मिल चुके हैं। उनकी प्रतिष्ठा गरीबों के बैंकर के रूप में है। गरीब, महिला और ग्रामीण उत्थान के लिए उन्हें जाना जाता है। क्या यह विडंबना नहीं है की उनके नेतृत्व वाली सरकार अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रही हिंसा और अत्याचार के प्रति मूक दर्शक बनी हुई है?
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1946-47 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की स्थापना की गई। परिषद का मुख्य उद्देश्य नागरिक स्वतंत्रता, स्त्री दशा और मानवाधिकारों से जुड़े विषयों पर काम करना है। क्या बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रही हिंसा, लूटपाट, उत्पीड़न के मामले उनकी नागरिक स्वतंत्रता, जीवन के अधिकार और मानवाधिकारों में नहीं आते? यदि आते हैं तो फिर वैश्विक समुदाय मौन क्यों है? ध्यान रहे कट्टरपंथ और अमानवीयता किसी भी समाज और देश में मानवता और मानवाधिकारों के विरुद्ध है। समूचे भारत में जन आक्रोश है, विदेश मंत्रालय भी संबंध में आधिकारिक वार्ता कर चुका है। भारत के नागरिक व बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू बांग्लादेश सरकार व भारत सरकार से न्याय व सहारे की आस में हैं। भारतवर्ष की सनातन ज्ञान परंपरा एवं समूचा चिंतन न केवल मानवाधिकारों की अपितु सर्वे भवंतु सुखिनः की कामना करता रहा है। विपदा एवं संकट के अनेक अवसरों पर भारत सरकार अनेक देशों की सहायता करती रही है। आज आवश्यक है कि विश्व समुदाय एकजुट होकर बांग्लादेश और अन्य स्थानों पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हो रही हिंसा व अत्याचारों पर कड़ा रुख अपनाए। यह समय न केवल अल्पसंख्यक हिंदुओं के पक्ष में खड़े होने का है अपितु मानवाधिकारों की रक्षा का भी है।
डॉ.वेदप्रकाश,
प्रोफेसर,
दिल्ली विश्वविद्यालय

 
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