नमो बुद्धाय: करुणा, समता और शांति का संदेश
के के द्विवेदी प्रबंध संपादक दैनिक उपदेश टाइम्स
“नमो बुद्धाय” — यह मात्र एक अभिवादन नहीं, बल्कि करुणा, प्रेम, समानता और मानवता का उद्घोष है। इस वंदना के शब्दों में निहित है गौतम बुद्ध की संपूर्ण शिक्षाओं का सार। जब कोई कहता है “नमो बुद्धाय”, तो वह केवल भगवान बुद्ध को नमन नहीं करता, बल्कि उस विचारधारा को भी प्रणाम करता है जो संसार को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है
🌿 ‘नमो बुद्धाय’ का अर्थ और भाव
“नमो” का अर्थ होता है नमन करना, आदर प्रकट करना और “बुद्धाय” का अर्थ है — जागृत पुरुष या ज्ञानवान को।
अर्थात् “नमो बुद्धाय” का सीधा भाव है — “मैं उस बुद्ध को नमन करता हूँ जिन्होंने अज्ञानता के अंधकार को मिटाया और ज्ञान का दीप प्रज्वलित किया।”
यह वाक्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मबोध का प्रतीक है। यह हर व्यक्ति को अपने भीतर के बुद्ध को जगाने का संदेश देता है — यानी विवेक, करुणा और सत्य का जागरण।
☸️ बुद्ध के दर्शन की पृष्ठभूमि
भगवान गौतम बुद्ध ने कहा था यह संदेश व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। उन्होंने किसी ईश्वर, जाति या कर्मकांड के बजाय मानव के आचरण और विचारों को धर्म का आधार माना। उनके अनुसार सच्चा धर्म वही है जो सबके दुःख को कम करे और सभी में प्रेम व शांति फैलाए।
🌸 ‘नमो बुद्धाय’ का सामाजिक अर्थ
“नमो बुद्धाय” का उच्चारण केवल आध्यात्मिक नहीं, सामाजिक क्रांति का प्रतीक भी है। जब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया, तो उन्होंने “नमो बुद्धाय” को समानता के नए युग का उद्घोष बना दिया। यह शब्द उत्पीड़न के विरोध और मानवता की एकता का प्रतीक बन गया।
आज भी यह अभिवादन समाज के हर वर्ग को जोड़ने वाला सेतु है। यह हमें याद दिलाता है कि धर्म का उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि एकता और समानता है।
🌼 आधुनिक युग में ‘नमो बुद्धाय’ की प्रासंगिकता
वर्तमान समय में जब मानव समाज हिंसा, भेदभाव और असहिष्णुता से जूझ रहा है, “नमो बुद्धाय” एक सकारात्मक विचारधारा के रूप में हमारे सामने है।
यह संदेश देता है कि हमें अपने भीतर की करुणा को जगाना चाहिए, दूसरों के दुःख को समझना चाहिए और सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
बुद्ध के सिद्धांत — अहिंसा, मध्यम मार्ग और करुणा — आज भी विश्व शांति के लिए सबसे सशक्त उपाय हैं।
🌺 उपसंहार
“नमो बुद्धाय” एक ऐसा वाक्य है जो मनुष्य को भीतर से झकझोर देता है। यह केवल नमस्कार नहीं, बल्कि आत्मजागरण का उद्घोष है।
जब हम “नमो बुद्धाय” कहते हैं, तो हम केवल बुद्ध को नहीं, बल्कि उस मानवता, प्रेम और सत्य के मार्ग को नमन करते हैं जो उन्होंने मानवता के लिए दिखाया।

नया सैन्य गठजोड़ भारत के लिये चुनौती -ललित गर्ग-
हवा को जहर बनाता दिल्ली का आत्मघाती प्रदूषण -ललित गर्ग-
बिहार में तेजस्वी के नाम पर मुहर मजबूरी भरी स्वीकृति -ललित गर्ग-
पुलिस की पीड़ा : एक संतुलित दृष्टिकोण
गरीबी है मानवता के भाल पर बड़ा कलंक -ललित गर्ग-
आजादी से आज तक मेड इन इंडिया की बाते फिर युवा और संशोधन से क्यों कतराते लेखक: चंद्रकांत सी पूजारी, गुजरात 