सूबेदार जय सिंह शौर्य चक्र (मरणोपरांत)
वीरगति दिवस पर विशेष
जम्मू कश्मीर देश का वह भूभाग है जहाँ पर आज़ादी के बाद से परोक्ष रूप से सबसे ज्यादा युद्ध लडे गए हैं, और अपरोक्ष रूप से देश की सेना द्वारा चलाये गए आपरेशनों की गिनती बहुत लम्बी है। पाकिस्तान ने जितना पैसा और संसाधन अपने देश की समृद्धि में नहीं लगाया होगा उससे कहीं ज्यादा पैसा और संसाधन हमारे देश को अस्थिर करने में लगाया है, लेकिन हमारे देश की सेना के पराक्रम के आगे उसके हर प्रयास पर पानी फिर जाता है। सन 2003 में उसके एक ऐसे ही प्रयास को जनपद गौतमबुद्ध नगर के वीर यौद्धा ने विफल किया, जिनके वीरता और शौर्य पर गर्व की अनुभूति होती है ।
सन 2003 में 45 राष्ट्रीय राइफल्स जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में तैनात थी । सूबेदार जय सिंह यूनिट में प्लाटून कमांडर की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। 31 अक्टूबर 2003 को 45 राष्ट्रीय राइफल्स को सूचना मिली कि मोरा बछाई गांव में कुछ संदिग्ध छिपे हुए हैं । संदिग्ध घरों को चारों ओर से घेर लिया गया। खुद को घिरा हुआ देखकर आतंकवादियों ने स्वचालित हथियारों से गोलीबारी करना शुरू कर दिया । सूबेदार जय सिंह ने अपने सैनिकों को समायोजित किया और बड़ी चतुराई से जिस घर से गोलीबारी हो रही थी उस पर फायर करने लगे। अपने को पूरी तरह घिरा देखकर एक आतंकवादी खिड़की से कूदकर भागने लगा, सूबेदार जय सिंह ने उसे गोली मार दी। दो अन्य आतंकवादी सूबेदार जय सिंह की स्टॉप पार्टी पर हमला करते हुए घर से बाहर भागने लगे , उनमें से एक के पैर में इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस बंधा हुआ देखा गया। आसन्न मौत के सामने विशिष्ट बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए, अपने साथी सैनिकों को बचाने के लिए सूबेदार जय सिंह, अपने साथियों से बाहर निकल कर एक और आतंकवादी को मार गिराया। इसी क्रम में वह घातक रूप से घायल हो गए, फिर भी उन्होंने आगे बढ़ना जारी रखा। भागते हुए तीसरे आतंकवादी को भी उन्होंने हैंड ग्रेनेड फेंककर मार गिराया । घातक रूप से घायल होने के कारण वह ऑपरेशनल एरिया में ही वह वीरगति को प्राप्त हो गये।
सूबेदार जय सिंह ने आतंकवादियों से लड़ने में अदम्य साहस, नेतृत्व क्षमता और वीरता का परिचय दिया तथा अपने साथी सैनिकों को बचाने के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनके अदम्य साहस और कर्तव्यनिष्ठा के लिए उन्हें मरणोपरान्त “शौर्य चक्र” से सम्मानित किया गया, जिसे उनकी वीरांगना श्रीमती सुखवीरी देवी ने 15 अगस्त 2004 को ग्रहण किया।
सूबेदार जय सिंह का जन्म 15 सितम्बर 1958 को जनपद गौतम बुध्द नगर के ग्राम बीरपुरा में श्रीमती श्यामो देवी तथा चौधरी किरपाल सिंह के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा अपने मामा के गांव सैदपुर (बुलंदशहर) से पूरी की । यह 14 सितम्बर 1977 को भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट में भर्ती हुए और प्रशिक्षण के पश्चात 7 जाट रेजिमेंट में तैनात हुए। बाद में इनकी अस्थायी तैनाती 45 राष्ट्रीय राइफल्स में हुई। सूबेदार जय सिंह के परिवार में उनकी वीरांगना श्रीमती सुखवीरी देवी और पुत्र राजकुमार तेवतिया हैं।
सूबेदार जय सिंह की यादों को सजोये रखने के लिए उनकी वीरांगना श्रीमती सुखवीरी देवी ने अपने पति की प्रतिमा का निर्माण करवाया है जिसका अनावरण दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री साहिब सिंह वर्मा ने किया था । 22 वर्ष बीत जाने के पश्चात भी सूबेदार जय सिंह की वीरता और बलिदान को अमर बनाने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया है। उनके पुत्र का कहना है यदि दादरी से जारचा जाने वाली सड़क या गांव की प्राथमिक पाठशाला का नामकरण हमारे पिताजी के नाम पर करवा दिया जाय तो यह उनकी वीरता का सम्मान होगा। वह आगे कहते हैं कि हमारे गांव की वर्तमान युवा पीढ़ी यह जानती ही नहीं कि हमारे गांव में किसी व्यक्ति को शांति काल का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान शौर्य चक्र मिला है।
– हरी राम यादव
7087815074

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