किसान “अन्नदाता” नहीं “जीवन-दाता” है — अशोक कुमार महिश्वरे ‘माही’

किसान! अर्थात देश का सबसे ज्यादा शोषित और पीड़ित वर्ग !”जय-जवान जय-किसान” के नारे को अब इस तरह रूपांतरित करने का वक्त आ गया है:-” जय-जवान, बर्बाद- किसान”! नारों, वादों और भाषणों में किसान के लिए “अन्नदाता” शब्द का प्रयोग कर इस वर्ग को महिमा मंडित किया जाता है जबकि सच्चाई यह है कि इस शब्द के साथ ही इस वर्ग को तिरोहित कर दिया जाता है।
इन दिनों यह शब्द भी विवादित सा हो गया है . देश में एक ऐसे धड़े का अभ्युदय हो गया है जो किसानों को अन्नदाता मानता ही नहीं. इनका मानना है कि किसानों को अन्नदाता कहना अनुचित है । इनकी राय में किसान व्यापारी है । किसान अपने खेत में जितनी फसलों का उत्पादन करता है, उसमें से अपनी आजीविका के लिए भंडारित कर शेष फसल बेच देता है । यह तथ्य निर्वादित सत्य है लेकिन इसके पृष्ठ की सच्चाई से यह धारा परिचित नहीं है । व्यापारी उसे कहते हैं जो एक निश्चित दाम पर वस्तु क्रय कर उसमें अपना लाभांश जोड़कर उसे बेचता है जबकि किसान को अपने उत्पाद का मूल्य तय करने का अधिकार ही नहीं है। कृषि- व्यवसाय को छोड़कर इस देश में ऐसा कोई भी व्यवसाय नहीं है जिसमें उत्पादक अपना मूल्य निर्धारित न करता हो। ऐसी दशा में देश के कुछ तथाकथित लोगों द्वारा किसानों को व्यापारी कैसे माना जा रहा है?
सच्चाई तो यह है कि आज का प्रत्येक किसान स्वयं के खेत पर मजदूरी करता है । दुखद पहलू तो यह है कि इसकी फसल तो छोड़िए ,इसके द्वारा अपने खेत पर की गई मेहनत की मजदूरी भी इसे नहीं मिल पा रही है। इस भारत देश में किसान से बड़ा उदार कोई वर्ग नहीं है। किसान ही एक ऐसा वर्ग है जो न जाने कितने जीव-जंतुओं का उदर-पोषण करता है। आज के इस मँहगाई के दौर में जहाँ अन्य वर्ग अपने परिजनों का उदर-पोषण करने में अक्षम हो रहे हैं, वहाँ किसान दुनिया के हरेक जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों और प्राणियों को जीवन देता है। ऐसा कौन सा जीव है जो किसानों की फसलों से अपना उदर पोषण नहीं करता? जंगली जानवर, पालतू पशु, कीट- पतंगे, चूहे-बिल्ली, वानर-भालू आदि अनादि कितने की किसानों की फसलों से अपना हिस्सा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ले ही लेते हैं। किसान द्वारा उत्पादित फसल का एक बहुत बड़ा हिस्सा धरती माता को समर्पित होता है और यही समर्पण सारे जीवों को जीवन देता है । आज के परिदृश्य में किसानों के लिए “अन्नदाता” शब्द भी बौना है क्योंकि किसान तो “जीवन- दाता” है ।
एक उद्योगपति करोड़ों- अरबों का कर्ज लेकर उत्पादन करता है। मूल्य स्वयं तय करता है। स्वयं बेचता है। फिर भी स्वयं को दिवालिया घोषित कर स्वयं द्वारा लिया गया कर्ज माफ करवा लेता है। पुनः दूसरे नाम से दूसरा फर्म बनाता है। पुनः इसी प्रक्रिया को दोहराकर बार-बार सरकार को लूटता है और सरकार उसके ऋण को मृत ऋण! घोषित कर माफ कर देती है। सरकार का उद्योगपतियों के प्रति उदार रवैया है जबकि किसानों के प्रति सख्त! आखिर क्यों?