भारतीय संदर्भ में महिलाओं के अधिकारों एवं धरातलीय विकास की वैश्लेषिक पारदर्शिता
भारतीय संदर्भ में महिलाओं के विकास स्वतंत्रता एवं सशक्तिकरण की अलग-अलग तस्वीर पेश की जाती रही हैl शासकीय आंकड़ों के हिसाब से उच्च प्रशासनिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी केवल 14% लगभग भूमिका या भागीदारी है ।निजी क्षेत्रों में जो व्यापक स्वतंत्रता एवं उदारीकरण है, वहां भी महिलाओं की उच्च पदों पर पदस्थापना 20% से अधिक नहीं हैl सामाजिक संगठन बड़े जोर शोर से महिला स्वतंत्रता एवं सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे पेश करते हैं, कुल जनसंख्या का 45% महिलाओं का होने के बाद भी भारत में महिला पुरुषों से कम दक्ष एवं कमजोर मानी जाती रही हैl वास्तविक स्थिति दर्शाये आंकड़ों के विपरीत ही हैं। भूमंडलीकरण शिक्षा में वृद्धि मानव अधिकारों की वृद्धि एवं सजगता से महिला सशक्तिकरण के आंदोलनों को काफी बल प्राप्त हुआ है। शनी सिगनापुर, हाजी अली दरगाह एवं अन्य स्थानों पर महिलाओं के प्रवेश के लिए सशक्त आंदोलन इसका बड़ा उदाहरण है। आज से 20 वर्ष पूर्ण इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थीl वर्तमान ओलंपिक 2021 में पूर्वोत्तर राज्य की मीराबाई चानू ने सिल्वर पदक दिलाकर अपनी क्षमता शक्ति एवं ऊर्जा को प्रदर्शित कर यह बता दिया है कि नारी विशेषकर भारत की पुरुषों से कहीं आगे हैं और प्रिया मलिक ने हंगरी में स्वर्ण पदक लाकर बात को प्रमाणित भी कर दिया हैl भारत की महिलाएं, साक्षी मलिक ओलंपिक में कांस्य पदक, पी,वी संधू रजत पदक, दीपा मलिक पैरा ओलंपिक में पहली भारतीय महिला द्वारा स्वर्ण प्राप्त,साइना नेहवाल सानिया मिर्जा ने काफी हद तक महिलाओं के स्वरूप को बदलने का प्रयास किया है। इसी प्रकार निजी क्षेत्रों में चंदा कोचर,इंदिरा नूई, अरुंधति भट्टाचार्य ने आर्थिक जगत की नई ऊंचाइयों को छुआ है। अंतरिक्ष में कल्पना चावला सुनीता विलियम्स ने महिलाओं को बड़ी प्रेरणा दी है, राजनैतिक क्षेत्र में पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने 9 महिला मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसी तरह किरण बेदी ने पुलिस प्रशासन में एक बड़ी पताका हासिल कर महिला होने पर गर्व करने के लिए लोगों को मजबूर किया हैl
भारत के संदर्भ में यह माना जाए कि जीवन काल में ही महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में कम स्वतंत्रता प्राप्त है। बचपन के पश्चात जब महिला विद्यालय, विवाह की ओर अग्रसर होती है, तो उसके पहनावे की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया जाता हैl महिलाओं के वस्त्रों के साथ उसके चरित्र की व्याख्या कर दी जाती है। जबकि इस भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण के युग में जहां संस्कृति के आदान-प्रदान का बड़ा महत्व है, और महिलाएं आधुनिकरण के लिए आगे बढ़ती हैं, तो उनका परिवार समाज उन्हें इन सब कार्यों से दूर रख बाधित कर विकास की एक धारा को नियंत्रित कर देता है ।और इस तरह उनके मानसिक स्वतंत्रता को रोक कर उन्हें मानसिक दासता का पात्र बना देता है।घरों में समाज में सदैव लड़कों को घर का उत्तराधिकारी मानकर उन्हें प्रत्येक कार्य में वरीयता प्रदान की जाती है,एवं घर की लड़कियों को कमतर आंक कर केवल घर के कामों में ही व्यस्त रखा जाता है।, यह छोटे या बड़े अंतर ही महिलाओं को मानसिक रूप से गुलामी के लिए मजबूर कर वैचारिक हथकड़ियां पहनाते हैं।
हमें विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी उनकी भूमिका योगदान एवं स्थिति को एकदम स्पष्ट करना आवश्यक है। बहुत महिलाओं की भूमिका का परीक्षण अत्यंत छोटे स्तर पर करना आवश्यक है। महिलाओं को बचपन से ही मानसिक तथा शारीरिक स्वतंत्रता एवं समानता का अधिकार की प्रेरणा दी जानी चाहिए। धीरे बोलना, धीरे हंसना, बाहरी लोगों से दूर रहना एवं बाहर खेलने नहीं जाने की स्वतंत्रता नहीं देना एक तरह से महिलाओं के लिए प्रताड़ना ही है। यह यदि सुरक्षा के दृष्टिकोण से है, तो निश्चित तौर पर महिलाओं के लिए उपयोगी है। पर महिलाओं को स्वतंत्र रूप से उनके कार्य क्षमता के अनुरूप काम ना करने दिया जाना,महिलाओं के स्वतंत्रता सशक्तिकरण में एक बड़ी रुकावट ही है। इसी तरह पारिवारिक मामलों में परिवार के आर्थिक मामलों में उनकी भूमिका कमजोर या नगण्य होती है। इस प्रकार महिलाओं के जीवन के पूर्व काल में महिलाओं की सुनता को सीमित करने का प्रयास किया जाता रहा है।
हमारे देश के संदर्भ में संवैधानिक व विधिक रुप से संविधान की प्रस्तावना के अनुसार मौलिक अधिकार मौलिक कर्तव्य राज्य के नीति निर्देशक तत्व के आधार पर किताबों में महिलाएं स्वतंत्र एवं सशक्त तो हैं। किंतु क्या वास्तविक स्थिति में महिलाएं उतनी स्वतंत्र एवं इतनी सशक्त हैं। जितना कागजों में दिखाया जाता है। महिलाओं को भारत में सशक्त एवं बलशाली करना है,तो उन्हें बचपन से सकारात्मक प्रेरणा देखकर भाई, बहन, चाचा, मामा के बराबरी का अधिकार देकर उनकी शिक्षा शिक्षा मैं वैसे बदलाव लाने की आवश्यकता होगी तब भारत में नारी सशक्तिकरण का सही स्वरूप की अवधारणा बलवती हो पाएगी।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, लेखक चिंतक, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415,