विश्व को आतंकवाद से खतरा — डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

सृष्टि को करोड़ों साल लग गए इंसान को अपने इस मौजूदा स्वरूप में आते हुए। मनुष्य का विकास क्रम इस धरती पर करोड़ों साल से अनवरत जारी है और ये आगे भी चलता रहेगा लेकिन दुर्भाग्यवश इंसान ने अपना स्वरूप तो धारण जरूर कर लिया है लेकिन उसके अंदर का जानवर अभी तक उसके अंदर जिंदा है बल्कि यूँ कह लें कि इंसान अपने मौजूदा स्वरूप में जानवरों से ज़्यादा हिंसक है। दरअसल हिंसक प्रवृत्ति ही इंसान को जानवरों से अलग करती है लेकिन ये अभी तक नही हो पाया है। आज हम सभ्यता के इक्कीसवीं सदी में आ गए हैं परंतु सच्चाई ये है कि हम अभी तक सभ्य नहीं हो पाए हैं। पूरे विश्व में अराजकता का माहौल है। कहीं रूस और यूक्रेन में युद्ध छिड़ा हुआ है तो कहीं इजरायल और हमास के बीच जंग जारी है। कभी भी एटमी युद्ध का आगाज़ कायम हो सकता है।
इसके पूर्व भी ये विश्व दो विश्वयुद्ध देख चुका है। मौजूदा हालात दिन प्रतिदिन बद से बदतर होता जा रहा है। वेवजह निर्दोष इंसानों का खून बहाया जा रहा है और मौजूदा परिस्थितियों में इसपर लगाम लगाना लगभग नामुमकिन है। जब से इंसान आखेट छोड़कर कृषि पर आधारित हो गया, तबसे मनुष्य के लिए धरती का महत्व बढ़ गया। मनुष्य ज्यादा से ज़्यादा धरती पर अपना हिस्सा चाहने लगा। कृषि के लिए जो बल चाहिये था, वह पुरुषों के पास उपलब्ध था और इसलिए समाज पुरूष प्रधान हो गया। समाज सीधे तौर पर मातृसत्तात्मक समाज से पितृसत्तात्मक समाज में बदल गया। उसके बाद राज्य की परिकल्पना होने लगी और राज्य की सीमाएं निर्धारित होने लगी। इन सीमाओं के निर्धारण के लिए युद्ध लड़ा जाने लगा और ये युद्ध आज भी जारी है. दूसरी ओर धर्म भी युद्ध का कारण बनने लगा। । आतंकवाद की शुरुआत यहीं से हुई है। दुनिया भर में जहाँ भी आतंकवाद है उसके मूल में कट्टर सोच ही है और इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है।
आज पूरे विश्व को आतंकवाद से खतरा है लेकिन इसके अलावा भी रूस, चीन और उत्तरी कोरिया जैसे देश भी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण विश्व के लिए खतरा बने हुए हैं। ईरान भी हमास और हिजबुल्लाह को अपना समर्थन देकर उस क्षेत्र में अशांति का कारण बना हुआ है। इजरायल को अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। आने वाले समय में इजरायल को ईरान से सीधे तौर पर युद्ध लड़ना पड़ सकता है क्योंकि ईरान को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनने से रोकना ही पड़ेगा वरना इजरायल का खुद का वजूद खतरे में पड़ जायेगा।
अभी सबसे अधिक खतरा हूती विद्रोहियों से है।अमेरिका और इजरायल का प्रमुख लक्ष्य इन हूती विद्रोहियों को जड़ से समाप्त करने का होना चाहिए। इस तरह हम देखते हैं कि कैसे इंसान एक दूसरे का खून पीने पर आमादा है।ये बातें सिर्फ आज की नही है बल्कि महाभारत काल में पांडव सिर्फ पाँच गाँव के लिए राजी थे पर दुर्योधन को वो भी नही मंजूर था परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें कौरवों का समूल नाश हो गया।कितना जनसंहार हुआ इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था।रामायण काल में सिर्फ एक सीता के लिए युद्ध हुआ जिसमें रावण की लंका समाप्त हो गई। कितना खून खराबा हुआ होगा, इसका अनुमान लगाना सम्भव नहीं है।
कुल मिलाकर हरेक युग में इंसान इंसान का खून पीता रहा है। इंसान की फ़ितरत कभी नहीं बदली है। आज हम छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे का खून बहाने पर आमादा रहते हैं। आज विश्व भर में कहीं ना कहीं किसी ना किसी की हत्या होते रहती है।युद्ध के अलावा इंसान एक दूसरे के खून का प्यासा बना रहता है। हम हिंसा क्यूँ करते हैं इसका पता हमें खुद पता नहीं होता है लेकिन हम करते जरूर हैं। सभ्य समाज में हिंसा की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए थी लेकिन वास्तव में सच्चाई बिल्कुल इसके विपरीत है। हमें छोटी छोटी बात पर क्रोध आ ही जाता है। इसके अलावा धार्मिक उन्माद भी हिंसा का महत्वपूर्ण कारक रहता है। इंसान जिस धर्म को मानता है उसे ही सभी पर थोपना चाहता है । उसकी यही मंशा रहती है कि जिस धर्म को वह मानता है बाकी भी उसे माने।
संपत्ति और महिला भी लोगों में विवाद के अहम कारण होते हैं और इसके लिए मनुष्य जानवरों से ज्यादा हिंसक हो जाता है। दरअसल मनुष्य के लिये जर, जोरू और जमीन ही हिंसा के लिए महत्वपूर्ण कारण रहता है और इसी के इर्द गिर्द सारे संसार की गतिविधियां चलती रहती है। अगर हमें अपनी सभ्यता का परिचय देना है तो सर्वप्रथम हमें हिंसा को त्यागना होगा। बगैर हिंसा छोड़े हम सभ्यता की नींव नहीं रख सकते हैं। हमें अपनी इच्छाओं पर दमन करना सीखना होगा। अधिक महत्वाकांक्षा ही सारी बुराइयों की जड़ होती है. हरेक चीज हमें ज्यादा से ज्यादा मिल जाये, इसके चलते ही हम अपनी इच्छाओं पर लगाम नही लगा पाते हैं। ले देकर उसकी भी एक सीमा है। हम अपने जीवन में निश्चित मात्रा में ही सभी चीजों का उपभोग कर सकते हैं। खानपान से लेकर सेक्स तक हम आवश्यकता से ज्यादा उपभोग नहीं कर सकते हैं। मनुष्य की आयु भी निश्चित है। 60 – 70 साल में ज्यादातर लोग निपट जाते हैं। बाकी जिसकी आयु लंबी है, वे दरअसल किसी काम के नहीं होते हैं और वे धरती पर दुःख भोगने के लिए जीवित रहते हैं। इंसान सिर्फ लालच छोड़ दे तो उसकी ज्यादातर समस्याओं का निदान स्वतः हो जाएगा लेकिन लालच मनुष्य का स्वाभाविक गुण होता है। हर मनुष्य को किसी ना किसी चीज का लालच जरूर रहता है वह चाहे धन दौलत हो या पद प्रतिष्ठा।कोई नाम या शोहरत के लिए मरा रहता है। इन सब को पाने के लिए मनुष्य कभी ना कभी अनैतिक रास्तों को भी अपनाता है।
मनुष्य सिर्फ ये समझ ले कि ये जीवन नश्वर है और उसके जीवन के समाप्ति के बाद कुछ और नही है तो उसके आधे दुखों का अंत हो जाएगा लेकिन ऐसा नही होता है।हम ना जाने किस स्वर्ग या नर्क की झूठी परिकल्पना में लगे रहते हैं।जन्नत या दोज़ख जैसी कोई भी चीज इस दुनिया से परे नही होती है।मनुष्य का वजूद मनुष्य के मृत्यु को पाते ही स्वतः मिट जाता है। मनुष्य की फितरत होती है कि वह अपने अलावा दुनियाभर के चीजों के लिए भी चिंतित रहता है जबकि उसे उन सब चीजों के लिए चिंतित नही रहना चाहिए। अगर मनुष्य सिर्फ अपने बारे में सोचे तो उसकी आधी समस्या स्वतः खत्म हो जाएगी। आज इस आपाधापी वाले युग में थोड़ी देर शकुन से सिर्फ दो पल बिताने को मिल जाये तो इससे बड़ी कोई उपलब्धि नही हो सकती है। हमें अपने अंदर के जानवर को मारना होगा. तभी हम सभ्य समाज की संरचना कर सकते हैं। सदियों से मनुष्य आपस में जो लड़ रहे हैं ,उन पर अब लगाम लगाने की आवश्यकता है वरना वह दिन दूर नही जब इस धरती से मनुष्य नाम की प्रजाति का समूल नष्ट हो जाएगा। एटमी युद्ध की एक चिंगारी पूरे विश्व को खत्म करने के लिए काफी होगी । हमें हिंसक प्रवृति को त्यागना होगा, तब ही हम मनुष्य कहलाने के काबिल होंगें।