जागो : हम जगाने आए डॉ. नीरज भारद्वाज

कई बार लोगों को देखकर लगता है कि मानव जीवन के बहुत सारे उद्देश्य और कार्य हैं। हर एक मानव अपने, समाज, विश्व के बारे में अलग-अलग विचारधारा और सोच रखता है। कुछ व्यक्ति समाज, विश्व, सृष्टि संरचना आदि के उत्थान के लिए कार्य करते हैं और अपना पूरा जीवन उसी को समर्पित करके चले जाते हैं। समर्पित भाव के चलते ही हमारे देशभक्त हमें स्वतंत्रता देकर चले गए।
वर्तमान स्थिति को जब हम देखते हैं तो लगता है कि कुछ लोग इस धरा पर केवल जीवन को भोगने आए हैं। वह अपने शरीर को तो भोगतें ही हैं, साथ ही हर वस्तु को भोग की वस्तु मानते हैं। रिश्तों को भी भोगते हैं। अन्य सभी जीवों और चराचर जगत को भी भोगने में वह लगे रहते हैं। भोगी प्राणी उम्र के हर एक पड़ाव में केवल भोग ही भोग चाहता है।
कुछ लोगों की स्थिति बड़ी विचित्र है। संध्या का समय हुआ नहीं कि वह मदिरापान या अन्य मादक पदार्थों का सेवन करना शुरू कर देते हैं। यह लोग इन मादक पदार्थों को ही अपना जीवन माने बैठे हैं। संध्या ही नहीं कुछ तो दिन-रात केवल इसी कर्म में लगे रहते हैं। नशा या अन्य लत लगने से यह लोग इस भूलोक से अधोगति के साथ ही चले जाते हैं। परिवार, समाज, देश सभी को दुख में डाल देते हैं। कुछ लोग खाने के लिए ही बने हैं, उसे बस खाना चाहिए। कुछ स्वादिष्ट खाने के लिए बने हैं, कुछ पौष्टिक भोजन के लिए बने हैं। कुछ मोज लेने के लिए ही बने हैं। कमाल की बात तो यह है कि इन सभी जीवों के चलते कितनों की दुकानदारी भी बहुत तेजी से चल रही है।
कुछ लोग इस धराधाम पर केवल धन इकट्ठा करने आए हैं। उनको हर एक काम में केवल लाभ अर्थात पैसे की कमाई दिखाई देती है। उनके स्वप्न में भी पैसा ही है और जीवन में भी पैसा ही है। वह इतना धन इकट्ठा करने के चक्कर में लगे हैं कि कई पीढियों तक का हिसाब लगाकर बैठे हैं। वह पैसा कहीं खर्च ना हो जाए। कुछ लोग पद प्रतिष्ठा को भोगने में ही लगे हुए हैं, उसे पाने और भोगने के चक्कर में पूरा जीवन बर्वाद कर देते हैं। सबसे ऊंचा बनना इन लोगों की सोच है। सेवा से दूर ऐसे व्यक्तित्व किसी काम के नहीं होते हैं। कमाल की बात यह है कि सृष्टि में संचित करने की प्रवृत्ति केवल मावन के अंदर है। बाकि कोई भी जीव किसी भी वस्तु को संचित नहीं करता है।
संसार में विविध विचार-संस्कार के लोग आते हैं और चले जाते हैं। जब हम सुविचार, संस्कार, मुक्ति मार्ग, योग साधना आदि की बात करते हैं तो हमारे सामने युगों-युगों से हमारे साधु, संत, महात्मा, योगी आदि ही हमारे ध्यान में आते हैं। इन संत, महात्माओं, देवपुरूषों के चलते ही विश्व कल्याण संभव हुआ है। इनके सुमधुर वचनों को सुनकर ही कितने लोग कुमार्गों से निकलकर सुमार्ग पर चल निकले हैं।
हमारे साधु, संत, महात्माओं के ज्ञान की बातें और सुविचार युगों-युगों से महत्वपूर्ण थे, आज भी महत्वपूर्ण हैं तथा आने वाले समय में भी महत्वपूर्ण रहेंगे। वर्तमान में भी हमारे साधु, संत, मुनि, ब्रह्म पुरुष समाज सुधार और विश्व कल्याण में लगे हुए हैं। हमारे रामकथा वाचक, भागवताचार्य, मुनि, महामुनि आदि समाज कल्याण के लिए धराधाम पर अवतरित हुए हैं। परमार्थ निकेतन में रोजाना संध्या समय माँ गंगा आरती के समय पूज्य चिदानंद सरस्वती मुनि जी जीव, जीवन, समाज, राष्ट्र, विश्व कल्याण, भक्ति, शक्ति, योग, ध्यान, साधना आदि का संदेश देते हैं। जन को जन से जोड़ने की बात करते हैं। रोजाना विश्व कल्याण का एक नया संदेश हम सभी को देते हैं। संतों, महात्माओं, मुनियों, महापुरुषों आदि का जीवन हम सभी के लिए एक आदर्श है। हमें स्वयं से ऊपर उठकर समाज और विश्व कल्याण के बारे में सोचना होगा। सभी जीवों का जीवन खुशहाल हो, ऐसे विचारों के साथ रहना होगा।