वर्तमान में भारत बांग्लादेश संबंध — डॉ. सुधाकर कुमार मिश्रा
भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरताओं से घिरा हुआ है। भारत का संबंध बांग्लादेश से तनातनी की स्थिति में है ।बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के प्रति जन विद्रोह सह क्रांति (Coup’d etat) के पश्चात राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है । क्रांति के पश्चात भारत ने बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चिंता जता चुका है।
एक सभ्य राष्ट्र – राज्य (संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के प्रति प्रबल आस्था रखने वाला) और लोकतांत्रिक राज्य होने के कारण भारत का राजनीतिक राष्ट्र- राज्य आभार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( आरएसएस ) भी हिंदुओं के प्रति हो रहे हिंसा, अत्याचार और भौतिक यातना के प्रति चिंता जता चुका है। यह संघ का सद्भाव व चारित्रिक विशेषता है कि वह वैश्विक स्तर पर शांति, सद्भाव, बंधुता और मैत्री पर्यावरण चाहता है। भारत की चिंता जमीनी स्तर पर है क्योंकि जिस तरह से बांग्लादेश में हिंसक गृह विप्लव का माहौल है, उसमें जीवन के अधिकार ,स्वतंत्रता का अधिकार और आजीविका का अधिकार खतरे की स्थिति में है। बांग्लादेश भारत की चिताओं को खारिज करता रहा है। बांग्लादेश की अंतरिम /कार्यवाहक सरकार का कहना है कि भारत उसके आंतरिक मामलों (घरेलू राजनीति) में हस्तक्षेप कर रहा है। भारत के साथ बांग्लादेश के संबंधों में जटिलता बढ़ती जा रही है।
समसामयिक परिप्रेक्ष्य में सवाल यह उठता है कि
1.भारत और बांग्लादेश के बीच यह सब कैसे हुआ?;
- भारत बांग्लादेश के बीच संबंध इस हालत में कैसे पहुंच गया है?
मोहम्मद यूनुस मनोनीत नेता हैं जो जनता के प्रति उत्तरदाई नहीं है। उनका लोकतांत्रिक चरित्र उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी वाला नहीं है । बांग्लादेश में उनका उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी व्यवस्था को बहाल करना और चुनाव करवाना था। सत्ता ऐसी चीज है जो अत्यधिक भ्रष्ट और गैर- जिम्मेदार बना देती है। भ्रष्ट राजनीतिक व्यक्तित्व के पास लोकप्रिय जनादेश नहीं होती है। वह सामयिक नागरिक सरकार को बहाल करने के बजाय अतीत की राजनीति से कुंठित और हतोत्साहित हैं।
वर्तमान में ढाका की राष्ट्रीय राजनीति पर गिद्ध दृष्टि खालिदा जिया, जो भ्रष्ट राजनीति और अवैध गतिविधियों में कारावासित थी और राजनीतिक कृपा पात्र बनकर बाहर आई हैं और जमात- ए – इस्लामी, जो पाकिस्तान कट्टरपंथियों और राज्यातरकर्ताओं से प्रेरित है और गंदी राजनीति के लिए विदेशी आर्थिक पोषित है। वर्तमान में दोनों दल सत्ता के लिए नाटकीय प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। चीन वाह्य कारक बनकर इन दोनों राजनीतिक दलों का पथ – प्रदर्शक और आर्थिक सहयोग कर रहा है। चीन को दक्षिण एशिया का ‘ दरोगा जी ‘ बनने का दिलेरी इच्छा है जिससे इन राजनीतिक दलों का आर्थिक सहयोग और राजनीतिक गुरु नेतृत्व कर रहा है।
मोहम्मद यूनुस का व्यक्तित्व अपरिपक्व राजनीतिक का है। उनका वैदेशिक कौशल और राजनय माशाल्लाह है जिससे दक्षिण एशिया में भारत की’ बड़े भाई’ की भूमिका दिख नहीं रही है और सहयोगी की उपादेयता भी दिख नहीं रही हैं। यूनुस की नासमझी इस कदर बढ़ चुकी है कि वह भारत के मीडिया तंत्र को दोषी ठहरा रहे हैं। बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मीडिया और सभी प्रकार के चैनलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है और तर्क दिया जा रहा है कि मीडिया कवरेज भड़काऊ है। यूनुस जी ने’ बांग्लादेश पर सांस्कृतिक आधिपत्य स्थापित करने के भारत के प्रयासों और भारत के आर्थिक उत्पीड़न की निंदा की है’ और इसके साथ ही ‘ बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के भारत के प्रयासों की निंदा’ की है। यह सरासर’ शून्य आधार’ और’ बेबुनियादी’ है । वैदेशिक संबंधों में इसको ‘ तर्कहीन कूटनीति’ कहा जाता है।
सामयिक परिप्रेक्ष्य में भारत और बांग्लादेश को ‘ विवेकी राजनीति’ से काम करना चाहिए। वैश्विक राजनीति का सफल अव्यय राजनय और कूटनीति है। इन अवयवों के द्वारा संबंधों में मधुरता का उन्नयन करना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य है और वैश्विक स्तर पर प्रत्येक राष्ट्र – राज्य के आंतरिक संप्रभुता का समादर करता है । मोहम्मद यूनुस को चापलूसों और सत्तालोलुप कारकों के बजाय विवेकी कूटनीतिज्ञ का सहयोग लेना चाहिए।

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