महिलाओं को मासिक भत्ता जीत की गारंटी बना — राजेश कुमार पासी
भारतीय राजनीति में रेवड़ी कल्चर बढ़ता जा रहा है लेकिन यह जीत की गारंटी नहीं है । दक्षिण भारत में रेवड़ी कल्चर बहुत पहले से चल रहा है लेकिन देश के दूसरे भागों में इस कल्चर को बढ़ावा देने का श्रेय केजरीवाल को जाता है । उन्होंने दिल्ली में फ्री बिजली-पानी देने की घोषणा करके सत्ता प्राप्त की और सत्ता मिलने के बाद इसमें ऐसी ही दूसरी योजनाओं को जोड़ दिया । केजरीवाल ने रेवड़ी कल्चर के सहारे कांग्रेस और भाजपा को दिल्ली की राजनीति में किनारे लगा दिया। केजरीवाल ने इसी फार्मूले से पंजाब में बड़ी जीत हासिल की है। फ्री बिजली और महिलाओं को एक हज़ार रुपये मासिक भत्ता देने के उनके वादे ने उन्हें पंजाब में तीन चौथाई बहुमत दे दिया।
केजरीवाल के इस फार्मूले को अपनाकर कांग्रेस ने भी कई राज्यों में सत्ता प्राप्त की है और अब भाजपा भी इसी फार्मूले का इस्तेमाल कर रही है। आर्थिक विशेषज्ञ रेवड़ी कल्चर को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत घातक मानते हैं लेकिन इसमें लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। मोदी सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं रेवड़ी कल्चर का हिस्सा है इसलिए भाजपा खुद को रेवड़ी कल्चर का विरोधी नहीं बोल सकती। रेवड़ी कल्चर के खिलाफ चुनाव आयोग कई बार राजनीतिक दलों को चेतावनी दे चुका है लेकिन कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशो ने भी इस मामले में कई बार अपनी टिप्पणियां की हैं । वास्तव में अभी तक रेवड़ी कल्चर की कोई निश्चित परिभाषा तय नहीं हो पाई है।
भारत एक लोकतांत्रिक कल्याणकारी देश है इसलिये अपनी गरीब जनता को मुफ्त में सुविधाएं देना गलत कैसे कहा जा सकता है। राजनीतिक और आर्थिक विशेषज्ञ रेवड़ी कल्चर उसको कहते हैं जिसमें सरकार जनता को मुफ्त की सुविधायें प्रदान करती है । दूसरी तरफ राजनीतिक दल कहते हैं कि गरीब जनता को आर्थिक मदद देना गलत कैसे हो सकता है । वास्तव में रेवड़ी कल्चर तब घातक हो जाता है जब राज्य की आर्थिक हालत इसकी इजाजत नहीं देती है । देखने में आ रहा है कि रेवड़ी कल्चर वाले ज्यादातर राज्यों की आर्थिक हालत बिगड़ती जा रही है ।
पिछले कई चुनावों से देखने में आ रहा है कि महिलाओं को मासिक भत्ता देने की घोषणाओं ने सरकार बनवाने और बदलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है । देश की लगभग 80 प्रतिशत जनता गरीबी की मार झेल रही है और महिलाओं की हालत इसमें ज्यादा बदतर है । ऐसी महिलाओं के लिए हर महीने एक हजार से दो हजार रुपये मिलना बड़ी बात है । इस सच को समझना उन लोगों के लिए मुश्किल है जिन्होंने गरीबी नहीं देखी है । हरियाणा चुनाव से कुछ समय पहले मैं अपने गृहनगर अंबाला कैंट में एक दोस्त से मिलने उसके घर गया था जिसकी मासिक आय लगभग पन्द्रह हजार रूपये हैं । जब भाजपा और कांग्रेस द्वारा महिलाओं को 2000 रूपये मासिक भत्ता देने की बात आई तो उसकी पत्नी की आंखों में आई चमक देखने वाली थी । मुझे अहसास हुआ कि इस घोषणा का एक गरीब महिला के लिए क्या मतलब है । यही कारण है कि इस योजना का विरोध कोई भी राजनीतिक दल नहीं कर पा रहा है ।आज़ की राजनीतिक सच्चाई यह है कि अगर कोई राजनीतिक दल चुनाव के दौरान महिलाओं को मासिक भत्ता देने की घोषणा करता है तो इसके जवाब में उसका विरोधी दल उससे ज्यादा रकम देने का वादा कर देता है । अब सवाल उठता है कि जब दोनों तरफ से ऐसी घोषणा की जाती है तो फिर इसका राजनीतिक फायदा किसको मिलता है ।

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