फर्रुखाबाद दैनिक उपदेश टाइम्स न्यूज़
दीपदान उत्सव समाज में फैली कुरुतियों और अंधकार को दूर हटा कर एक नई रोशनी दिखाना जिस से समाज में नई दिशा मिल सके।
प्रियदर्शी सम्राट अशोक बौद्ध धम्म ग्रहण करने बाद पूरी दुनिया को बुद्ध धम्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के अपने बेटे महेन्द्र और बेटी संघमित्रा को चीन और लंका भेज दिया था और पूरी दुनिया में बुद्ध धम्म का प्रचार प्रसार किया भारत में प्रचार प्रसार करने के लिए 84000 बौद्ध विहार, शान्ति स्तूप, गौ साला, पाठशाला, धर्म शाला प्याऊ आदि का निर्माण कराया और जिस दिन सभी बन कर तैयार हो गए उस दिन पूरे भारत को फूलों से सजाया गया क्यों कि उस समय बिजली नहीं थी इसलिए ही प्रकाश करने के लिए सभी जगहों पर दीये जलाये गये थे लोग आपस में खुशी से एक दूसरे के गले मिलते थे और एक दूसरे को उपहार देते थे उसी को दीपदान उत्सव के नाम से जानते थे।
सम्राट अशोक के समय में दीपदान उत्सव पर तथागत गौतमबुद्ध और उनकी माता महामाया की मूर्ति की वंदना करते थे। ब्राह्मणों ने महामाया को ही माया अर्थात लक्ष्मी बनाया है और तथागत गौतमबुद्ध को ही गणेश बना कर दीपावली में लक्ष्मी और गणेश की पूजा करवाते हैं।
इसलिए दीपदान उत्सव में हम तथागत गौतमबुद्ध और उनकी माता महामाया और आज हम सम्राट अशोक और बाबा साहब डॉ आंबेडकर की मूर्ति या फोटो को सामने रख कर वंदना करते हैं।
तथागत गौतमबुद्ध अपने जीवनकाल में पैदल ही पूरे भारत में घूम घूम कर धम्म का प्रचार प्रसार करते रहे ईसलिए घरो में बनाये जाने वाले पैरों के निशान लक्ष्मी के नहीं बल्की तथागत गौतमबुद्ध के है ।
मानवता का संदेश देने वाले महामानव विश्व गुरू तथागत गौतमबुद्ध, अखण्ड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, विश्व विजेता प्रियदर्शी सम्राट अशोक महान , शिक्षा की ज्योति जलाने वाले फुले दम्पति महात्मा ज्योतिबाराव फुले व माता सावित्री बाई फुले, आरक्षण के जनक कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहूजी महराज, सिंबल आफ नांलेज भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ.बी.आर. अंबेडकर जी ने भी बताया कि समाज को एक नई दिशा मिलनी चाहिए जिस से समाज को रास्ता मिल सके।