वैश्विक सत्य-अहिंसा के पर्याय महात्मा गांधी
यूं ही गांधी महात्मा नहीं हुए।
(विश्व अहिंसा दिवस)
भारत के महान सपूत गांधी ने पूरे विश्व में भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के रूप में विश्व को अहिंसा का संदेश दिया और शायद कोई विश्वास करेगा कि अहिंसा से ही महात्मा गांधी ने भारत देश को परितंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराया और अंग्रेजों को भारत से रुखसत करने का दुष्कर कार्य किया। 2 अक्टूबर को गांधी जी के जन्मदिवस पर पूरे विश्व में अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। महात्मा गांधी युगकालीन अहिंसक वैचारिक क्रांति के एक बड़े और सशक्त सूत्रधार थे। यह भारत का सौभाग्य ही है कि 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर गुजरात में एक महान व्यक्तित्व ने जन्म लिया था। जिनका पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था। भावनगर के श्यामल दास कॉलेज में उनकी शिक्षा हुई तत्पश्चात उनके भाई लक्ष्मी दास ने उन्हें बैरिस्टर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। इंग्लैंड जाने से पहले मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गांधी से हो गया था। 1891 में गांधीजी इंग्लैंड से वकालत पास कर मुंबई में वकालत प्रारंभ कर दी थी। गांधी जी के समाज क्रांतिकारी जीवन का शुभारंभ 1893 में तब हुआ जब एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां उन्होंने अंग्रेजों को भारतीयों एवं वहां के मूल निवासियों के साथ बुरा व्यवहार करते देखा था। वहां अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को भी कई बार अपमानित किया था। गांधी जी ने अंग्रेजों के अपमान के विरुद्ध मोर्चा संभालते हुए उनके विरोध के लिए सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग चुना था। दक्षिण अफ्रीका के दौरान उन्होंने अध्यापक, चिकित्सक और कानूनी अधिकार की लड़ाई के लिए अधिवक्ता के रूप में जनता को जागरूक करने के लिए अपनी सेवाएं प्रदान की और महत्वपूर्ण काम किए। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन कर समाज की सेवा की। उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक “माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ” विश्व प्रसिद्ध आत्मकथा बनी। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के कार्यों तथा सतत प्रयत्नों की ख्याति भारत में फैल चुकी थी। और जब वे भारत लौटे तो उनका गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भव्य स्वागत किया। भारत में आते ही गांधी जी ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य बिहार के चंपारण जिले के नीलहे किसानों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलानें का किया, 1917 में गांधी जी के सत्याग्रह के फलस्वरूप ही चंपारण के किसानों का शोषण समाप्त हो पाया था। अहमदाबाद में आश्रम की स्थापना के साथ साथ अंग्रेज सरकार के विरुद्ध उनका संघर्ष प्रारंभ हुआ और भारतीय राजनीति की बागडोर अब महात्मा गांधी के हाथों में आ चुकी थी। गांधीजी इस बात को अच्छे से समझ चुके थे कि सामरिक तौर पर अंग्रेजों से लड़ाई नहीं की जा सकती है, भारत को अंग्रेजों से मुक्ति लाठी बंदूक के बल पर नहीं प्राप्त हो सकती थी, इसीलिए उन्होंने सत्य और अहिंसा की शक्ति का सहारा लिया। स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 1920 में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन प्रारंभ कर दिया था। अंग्रेजों ने जब नमक पर कर लगाया तो गांधीजी ने 24 दिन की दांडी यात्रा आयोजित की 24 दिनों की यात्रा के पश्चात उन्होंने अपने हाथों से दांडी नामक स्थान पर नमक बनाया और सविनय अवज्ञा आंदोलन भी संचालित किया। इसी बीच गांधी इरविन समझौता के लिए गांधीजी इंग्लैंड भी गए पर अंग्रेजों की बदनियति के कारण यह समझौता मूर्त रूप नहीं ले सका, फल स्वरुप यह आंदोलन 1934 तक चलता रहा। 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया जिसमें करो या मरो का नारा देकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एकजुट कर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोला गया। गांधीजी तथा अन्य नेताओं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अथक प्रयास से 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। 1920 से 1947 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीजी की भूमिका के कारण इस युग को गांधी युग भी कहा जाता है। स्वतंत्रता के बाद भी गांधीजी का विरोध हिंदू और मुसलमान कट्टरपंथी लोग लगातार करते रहे। और 30 जनवरी 1948 को जब वे प्रार्थना सभा जा रहे थे तब उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। सत्य तथा अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का दुखद देहांत हो गया।
गांधी जी हमारे बीच नहीं है, पर उन्हें युगों तक याद किया जाता रहेगा।उनके द्वारा प्रतिपादित चार आधारभूत सिद्धांत सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव को आज भी पूरे विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा अंगीकार किया जा रहा है। सत्यमेव जयते जैसे राष्ट्रीय वाक्य के प्रेरणा स्रोत गांधी जी ही थे। गांधी जी द्वारा अपनाई अहिंसा का सही मतलब मन,वाणी तथा कर्म से किसी को आहत ना करना, उनके यह महान विचार थे कि अहिंसा के बिना सत्य का अन्वेषण असंभव है। महात्मा गांधी एक वैचारिक क्रांति के युग थे। गांधी जी सर्वधर्म समभाव के एक बड़े प्रेरणा स्रोत भी रहे। वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा भी उनके द्वारा प्रतिपादित की गई थी। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति प्रेम तथा आदर भाव समाहित था, और यही वजह है कि गांधी जी को महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता कहा जाता है।गांधीजी की सरलता एवं सत्य अहिंसा के प्रति अनुराग के सामने अंग्रेज नतमस्तक होकर भारत को स्वतंत्र कर भारत छोड़ गए। अंग्रेज गांधी जी की सत्याग्रह तथा सहयोग से घबराकर भारत से दुम दबाकर भागे। गांधीजी की सादगी,सरलता एवं सादा जीवन, सत्य और अहिंसा हम सबके लिए आज सबसे ज्यादा अनुकरणीय है।
महात्मा गांधी को हम सब भारत वासियों तथा सत्य और अहिंसा के पुजारियों की ओर से नमन श्रद्धांजलि एवं प्रणाम।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415,
(2 अक्टूबर शास्त्री जन्म-दिवस ) ईमानदारी,निष्ठा और अनुशासन के अनन्य उपासक लालबहादुर शास्त्री।
आज की भारतीय राजनीति में यह अविश्वसनीय ही लगेगा इस देश में एक ऐसे ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और देश के प्रति अपना सर्वस्व त्यागने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी जीत की पूर्ण संभावना के बाद भी यह कहा हो कि” यदि एक व्यक्ति भी मेरे विरोध में हुआ, तो उस स्थिति में प्रधानमंत्री बनना नहीं चाहूंगा”, भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ऐसे ही स्वाभिमानी महान राजनेता थे, जिन्होंने पद को नहीं बल्कि देश के हित को सर्वोपरि माना था। 27 मई 1964 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद देश को साहस और निर्भीकता से नेतृत्व देने वाले नेता की परम आवश्यकता थी। मोरारजी देसाई तथा जगजीवन राम जैसे नेता सामने आए थे, इस पद की गरिमा और प्रजातांत्रिक मूल्यों को देखते हुए शास्त्री जी ने चुनाव में भाग लेने से इनकार कर दिया था। 2 जून 1964 को कांग्रेस के संसदीय दल ने एक मतेन और सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री को अपना नेता स्वीकार किया और 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री जी को देश का दूसरा प्रधानमंत्री मनोनीत किया गया। 1920 को अपनी पढ़ाई छोड़ कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, बाद में गांधी जी की प्रेरणा से ही उन्होंने काशी विद्या पीठ में प्रवेश लेकर 1925 में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की, और अपने जन्म से चला आरहा जातिसूचक शब्द “श्रीवास्तव” हमेशा के लिए हटा लिया तथा अपने नाम के आगे शास्त्री लगा दिया था। इसके उपरांत अपने को देश की सेवा में न्योछावर कर दिया। अपना पूरा बचपन संघर्षों से गुजारने के बाद शास्त्री जी एक तपे हुए इमानदार राजनेता की तरह उभरे।
1930 में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चलाए जा रहे नमक आंदोलन में हिस्सा लेकर वे जेल चले गए। उनका देश के प्रति समर्पण देखकर उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। स्वतंत्रता आंदोलन मैं हिस्सा लेने के लिए देश के इस महान सपूत को बहुत यातनाएं भी झेलनी पड़ी और जीवन काल में कई बार जेल भी गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें फिर से जेल भेज दिया गया था। पद और प्रतिष्ठा, लोभ, लालच से सदैव दूर रहने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी स्वतंत्रता के बाद अनेक मंत्रालयों के मंत्री पद से शुभोषित भी किया गया, गोविंद वल्लभ पंत के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कालखंड में शास्त्री जी को पुलिस मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और इसी पद में रहते हुए उन्होंने भीड़ को नियंत्रित रखने के लिए लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारंभ करवाया था। 1952 में जवाहरलाल नेहरु जी ने उन्हें केंद्रीय रेल मंत्री नियुक्त किया और 1956 में देश में हुई एक बड़ी रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिक आधार पर अपना त्यागपत्र पेश कर एक मिसाल कायम की, जो आज पर्यंत तक अनुकरणीय है। नेहरू जी के कार्यकाल में वे परिवहन संचार वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय भी संभालते रहे। 1961 में उन्हें पंत जी की मृत्यु के बाद गृह मंत्रालय का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया। सभी महत्वपूर्ण पदों पर ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा के साथ सभी पदों को सफलतापूर्वक निभाने के कारण शास्त्री जी को 1964 में देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया।
शास्त्री जी कठिन से कठिन परिस्थितियों में सहजता, निर्भीकता, और संपूर्ण धैर्य के साथ सामना करने की अद्भुत क्षमता थी । प्रधानमंत्री के पद में रहते हुए भी सादगी ईमानदारी और निष्ठा की एक अनोखी मिसाल उन्होंने कायम की थी। 1965 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध करने का दुस्साहस दिखाया था तब लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान जय किसान” का नारा देकर भारत के वीर जवानों को राष्ट्र की रक्षा के लिए बहुत ज्यादा उत्साहित किया था, दूसरी तरफ किसानों को अन्न ज्यादा से ज्यादा पैदा करने के लिए ऊर्जा एवं शक्ति प्रदान की थी। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत को अभूतपूर्व विजय प्राप्त हुई थी। और देश में अन्न का भंडार भी परिपूर्ण हो गया था। अपनी ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा सूझ बुझ और निर्भीकता से लाल बहादुर शास्त्री ने कार्यकाल में देश में आई अनेक गंभीर समस्याओं का सरलता से समाधान भी किया। 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय के बाद ताशकंद समझौते के लिए लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद गए। पाकिस्तानी राष्ट्रपति के साथ 10 जनवरी 1966 को एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए, और उसी रात्रि को एक अतिथि गृह में शास्त्री जी की रहस्यमय तरीके से हृदय गति रुक जाने से आकस्मिक मृत्यु हो गई और हमने देश का एक महान सपूत को हमेशा के लिए खो दिया था। उनकी अंत्येष्टि यमुना के किनारे शांतिवन में राजकीय सम्मान के साथ की गई और उस स्थल को विजय घाट का नामकरण किया गया। शास्त्री जी के निधन से जो देश को क्षति हुई उसकी तो पूर्ति नहीं की जा सकती किंतु देश उनकी सादगी देशभक्ति ईमानदारी निष्ठा को युगो युगो तक याद करता रहेगा। 1966 में उन्हें मृत्यु के उपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आज भारत देश को ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार और देशभक्त नेताओं की आवश्यकता है। लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि नमन है।
संजीव ठाकुर