तकनीक जन्य वैश्विक आतंकवाद के विनाशक खतरे
उग्रवाद, आतंकवाद और अतिवाद हमेशा से अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए खतरा बने हुए हैंl पर अब इसराइल, हमास ,फिलिस्तीन युद्ध में हमास के लड़ायुओं ने उच्च टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल द्वारा इजरायल की आंखों में धूल झोंक कर 8 अक्टूबर को इसराइल के शहर अस्क लोन में लगभग 5000 रॉकेट से हमला किया और अपने आतंकवादी लोगों को हवाई रास्ते से इजराइल में उतार कर लगभग 1200 लोगों को मौत के घाट उतार दिया । हमला बड़ा दर्दनाक था ,इसे टेक्नोलॉजी के सारे गुप्त रखा गया था इसराइल को इसकी भनक तक न थी । वर्तमान समय में तकनीकी के सहारे मानवता का नरसंहार करने वाली बहुत विकराल घटना है। रूस यूक्रेन युद्ध में भी ज्यादा समय से युद्ध किया जा रहा है जो निसंदेह मानवता के लिए और विश्व शांति के लिए आने वाले समय में बहुत बड़ा खतरा है ।पहले यह आतंकवादी हाथों में बंदूक, ग्रेनेटो, रॉकेट लांचर लेकर विभिन्न देशों में तोड़फोड़ आगजनी और हत्या की घटनाएं किया करते थेl अब समय के परिवर्तन के साथ साथ आतंकवाद में अब इंटरनेट, मीडिया, सोशल मीडिया ने अपने पैर फैलाना शुरू किए हैंl आतंकवाद के नेटवर्क के लिए इंटरनेट तथा हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का आसानी से उपयोग करने लगे हैंl अमेरिका में जो ट्विन टावर और पेंटागन में हमले हुए थे, उसमें आधुनिकतम टेक्नोलॉजी का उपयोग कर लक्ष्य भेदी विमानों को को भेजा गया था और एक बड़ी विध्वंसकारी घटना को अंजाम दिया गया था। समय और तकनीकी शिक्षा के बढ़ने के साथ-साथ अब उग्रवादी तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर बड़े इंजीनियर तथा सॉफ्टवेयर इंजीनियर इस मैदान में आतंकवादियों के साथ टूट पड़े हैं। यह टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स बड़े ही खतरनाक ढंग से सोशल मीडिया और इंटरनेट का इस्तेमाल कर जनता को दिग्भ्रमित कर झूठी अफवाहें फैलाकर कई देशों के सूचना तंत्र में सेंध लगाकर वहां की सूचनाएं प्राप्त कर अपने उग्रवादी साथियों को भेज कर खुफिया सूचनाएं भेजते हैं। आतंकवादी गतिविधियों के लिए यह सूचनाएं अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। और देशों की शांति के लिए बहुत बड़ा खतरा भी होती हैं। भारत के परिपेक्ष में भारत में बाहर के टेक्निकल शिक्षा प्राप्त किए आतंकवादी जिन्हे व्हाइट कॉलर आतंकवादी भी कहा जाता है। खुफिया तंत्र के हिसाब से यह तकनीकी स्लीपर सेल्स शांति के लिए अन्य आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक होते हैं। क्योंकि इनकी पहचान नहीं हो पाती है। ये छुपे हुए होते हैं। इनका पता लगाना अन्य आतंकवादियों से ज्यादा कठिन होता है और केवल तकनीकी जानकारी के आधार पर ही संभव हो पाता है। यह टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स इसलिए भी ज्यादा विनाशकारी होते हैं, क्योंकि यह दूर ठिकानों में बैठकर मीडिया, सोशल मीडिया, इंटरनेट के जरिए युवाओं को उकसा कर, भड़का कर सांप्रदायिक दंगे कराने में सफल हो जाते हैं। या सोशल मीडिया में झूठी तथा गलत खबरों के जरिए युवाओं को प्रभावित कर सकते हैं। निसंदेह ये अज्ञात होते हैं। लेकिन समूची युवा पीढ़ी को मानसिक रूप से प्रभावित कर उनके विकास की दिशा बदल सकते हैं। ऐसे में सारी खुफिया एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठ रह जाती हैं। भारत के परिपेक्ष्य में जम्मू कश्मीर, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स के लिए एक सॉफ्ट टारगेट होते हैं। यह अपनी तकनीकी ज्ञान के चलते सोशल मीडिया में नाम बदलकर, रूप बदलकर, युवाओं को आम जनता को गलत जानकारी देकर दिग्भ्रमित करते रहते हैं, एवं दंगे भड़काने का काम भी करते हैं। मूलतः ये टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स सफेदपोश होते हैं। एवं आम लोगों के बीच घुल मिल जाते हैं। ऐसे में इनका पता लगाना इन्हें खोजना अत्यंत कठिन हो जाता है। यह टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स देश के सामरिक महत्व की जानकारी अपने उग्रवादी संगठनों को प्रदान करते हैं। इन जानकारियों का आतंकवादी संगठन उग्रवाद के लिए बेहद खतरनाक ढंग से किसी भी देश के खिलाफ कर सकते हैं। भारतीय संदर्भ में यदि जम्मू कश्मीर को लिया जाए तो अब वहां आतंकवादियों ने अपना युद्ध का तरीका बदल दिया है। युद्ध का मैदान नया है, जहां पारंपरिक अथवा हथियारों, सकरी गलियों और जंगली युद्ध के मैदानों के स्थान पर कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और स्मार्टफोन ने ले लिया है। जिसके फलस्वरूप यह टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल अपने अपने घरों में बैठकर सड़कों, मैदानों तथा जंगल में युद्ध छेड़ सकते हैं। अपने सूचना तंत्र तथा तकनीकी ज्ञान तथा उपकरणों के दम पर युवाओं तथा आम जनता के मध्य झूठी खबर फैलाकर आतंकवादियों एवं अलगाववादियों संगठनों की मंशा के अनुरूप तोड़ मरोड़ कर परिस्थितियां तैयार कर युवाओं को देश के खिलाफ भड़का कर असामाजिक स्थिति पैदा कर देते हैं।
यह सफेदपोश आतंकवादी अधिकारी, नेताओं, व्यवसायियों की गुप्त सूचना प्राप्त कर उन उनको ब्लैकमेल कर धन राशि तथा सूचना एकत्र कर आतंकवादियों की मदद करते हैं। यह टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स तब और ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं, जब देश की संवेदनशील सामरिक सूचनाएं आतंकवादियों तथा दुश्मन देश को अपने तकनीकी ज्ञान के दम पर हैक करके भेजना शुरू कर देते हैं। जिससे देश की सुरक्षा संबंधी सब गुप्त सूचनाएं एवं नवीनतम रणनीति, दुश्मनों के समक्ष उजागर हो जाती है। जिससे देश की सुरक्षा तथा जानमाल को बहुत ज्यादा खतरा बन जाता है। अब ज्यादातर आतंकवादी संगठन टेक्निकल सहायता लेकर मैदानों, फील्ड में ना जाकर टारगेटेड मिसाइल तथा एयरक्राफ्ट से विनाश करने में लगे हुए हैं। अब नई टेक्नोलॉजी में ड्रोन भी सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होने लगे हैं। हालाँकि की सुरक्षा एजेंसियां आतंकवाद को खत्म करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर उनसे निपटने की तैयारी करते हैं। अमेरिका का काबुल पर आतंकवादियों के खिलाफ ड्रोन का इस्तेमाल सबसे बड़ा और नवीनतम उदाहरण है। पर दूसरी तरफ आतंकवाद से जुड़े उग्रवादी लोग भी ड्रोन का इस्तेमाल कर विध्वंस की साजिश करने से नहीं चूक रहे हैं। कुल मिलाकर नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर टेक्नोक्रेट स्लीपर सेल्स वैश्विक तथा भारत की शांति के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं जिन्हें बहुत जल्दी खोज कर इनकी पहचान किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415