डंकी रूट से जुड़े संकट एवं दर्द को कौन सुनेगा? -ललित गर्ग –
भारतीयों में विदेश जाकर पढ़ने और नौकरी का क्रेज है, यह सालों से रहा है। पंजाब, गुजरात के लोगों ने अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन में अपनी अच्छी जगह बनाई है लेकिन हाल के सालों में बहुत सारे भारतीय गैर-कानूनी यात्रा के शिकार होकर कुछ ने अपनी जान गवांई है तो कुछ अनेक तकलीफों का सामना कर रहे हैं। अवैध तरीकों से डंकी रूट से अमेरिका आदि देशों में युवाओं को भेजकर जानलेवा अंधी गलियों में धकेलने वाले एजेंटों ने भले ही मोटी कमाई की हो, लेकिन इस काले कारनामों एवं गौरखधंधे पर समय रहते कार्रवाई न होना सरकार की बड़ी विफलता है। मोटी कमाई और चमकीले सपनों का सम्मोहन युवाओं की सोचने-समझने की शक्ति को ही कुंद कर देता है कि वे अपनी जान तक को भी जोखिम में डाल देते हैं। दरअसल, डंकी रूट अमेरिका आदि देशों में जाने का एक ऐसा अवैध रास्ता है, जिसमें सीमा नियंत्रण के प्रावधानों को धता बताकर एक लंबी व चक्करदार यात्रा के माध्यम से दूसरे देश ले जाया जाता है।
डंकी रूट का मतलब ऐसे रास्ते हैं जो अवैध रूप से लोगों को एक देश से दूसरे देश ले जाता है। पंजाब में डंकी रूट एक दशक से भी ज्यादा समय से एक खुला रहस्य रहा है। यह शब्द पंजाबी शब्द ‘डुंकी’ से आया है, जिसका अर्थ है एक जगह से दूसरी जगह कूदना। एक दशक से जारी इस गोरखधंधा-डंकी प्रेक्टिस का तब पर्दाफाश हुआ एवं यह अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आया जब इसके अन्तर्गत दिसंबर 2023 में फ्रांस ने मानव तस्करी के संदेह में दुबई से निकारागुआ जा रहे 303 भारतीय यात्रियों वाले एक चार्टर विमान को रोक दिया था। इनमें से अधिकांश को वापस भारत भेज दिया गया था। हाल ही में पंजाब में समाना के चार युवाओं की दर्दनाक कहानी उजागर हुई है, जिन्हें एजेंटों ने मोटी रकम वसूलकर जानलेवा हालातों में धकेल दिया। उनसे दो चरणों में करीब ढाई करोड़ रुपये वसूले गये और घातक परिस्थितियों में धकेल दिया गया। कई दिन जंगलों में उन्हें भूखा रहना पड़ा। फोन व जूते छीन लेने से उन्हें नंगे पैरों पैदल चलना पड़ा। डंकी रूट में लिप्त एजेंट अपराधी है, युवा-सपनों को चूर-चूर करने वाले धोखेबाज है। यह दर्द एवं विडम्बना केवल पंजाब की नहीं है, बल्कि गुजरात एवं देश के अन्य भागों के युवाओं की भी है। रोजगार के साथ-साथ शिक्षा सबसे बड़ी वजह है डंकी रूट की। कुछ देशों में तकनीकी तथा अन्य प्रोफेशनल शिक्षा पर भारत के मुकाबले कम खर्च होते हैं इसलिए भी छात्र विदेश जाना पसंद करते हैं। जिन्हें कम समय में अच्छी कमाई करके अच्छी लाइफ स्टाइल में जीने की ख्वाहिश होती है या फिर जो भारत में किसी क्राइम में शामिल होते हैं वे भी गैरकानूनी तरीका अख्तियार करते हैं।
डंकी रूट के ज़रिए लोग अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अवैध तरीके से प्रवेश करते हैं। इस रास्ते में कई जानलेवा खतरों का सामना करना पड़ता है। कई बार, अवैध तरीके से एंट्री करने के दौरान लोगों की मौत भी हो जाती है। साल 2022 में, अमेरिका-कनाडा बॉर्डर से 10 मीटर की दूरी पर एक गुजराती परिवार की लाश मिली थी, यह परिवार बर्फ़ीले तूफ़ान की चपेट में आ गया था। इसी साल अप्रैल में, एक और गुजराती परिवार की मौत हो गई थी। अमेरिका में एंट्री से पहले ही सेंट लॉरेंस नदी में उनकी बोट डूब गई थी। इस घटना में पति-पत्नी और उनके दो बच्चे मारे गए थे। युवाओं का धोखेबाज एजेंटों के जाल में फंसना हमारे शासन तंत्र की नाकामी ही है। यदि ऐसे एजेंट समय रहते कानून व्यवस्था के शिकंजे में फंस गये होते तो युवा ठगी के शिकार न बनते। आखिर हम अपने युवाओं को देश में सम्मानजनक रोजगार क्यों नहीं दे पा रहे हैं? भारत सरकार अन्य देशों के साथ मिलकर युवाओं को धोखे से विदेश भेजने वाले एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है? निस्संदेह, विभिन्न राष्ट्रों के सहयोग से दलाली-ठगी करने वाले इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय गिरोहों का खातमा करना अपेक्षित है। एशिया, यूरोप व मध्य अमेरिका तक दलालों के जाल बिछे हैं।
शाहरुख खान की फिल्म ‘डंकी’ में इस समस्या को उभारा गया है। इस फिल्म में अवैध तरीके से विदेश जाने के तरीके को एवं उसमें होने वाली परेशानियों को दिखाया गया है। मूवी दिखाती है कि सात समंदर पार जाने का सपना लिए लोग कैसे-कैसे अवैध तरीके अपनाते हैं, कितनी दुश्वारियां और कितना पैसा खर्च कर देते हैं। ‘डंकी रूट’ एक विकराल होती समस्या है। भारत में बढ़ती बेरोजगारी जहां इस समस्या का बड़ा कारण है, वहीं किस तरह युवा भी धैर्य व कठिन परिश्रम के बजाय रातोंरात अमीर बनने के सपने सजोते हुए इन संकटों को आमंत्रित करते हैं। आखिर क्या वजह है कि मां-बाप जमीन बेचकर व अपने गहने-मकान गिरवी रखकर बच्चों को विदेश भेजने को आतुर हैं? आखिर सुनहरे सपनों की चकाचौंध में हमारे युवा दलालों के हाथों के खिलौने क्यों बन रहे हैं? अमेरिका एवं अन्य देशों में जाने के सम्मोहन में अपने जीवन को इस तरह जोखिम में डालना युवा क्यों उचित मानते हैं? पिछले दिनों दलालों ने देश के युवाओं को सुनहरे सपने दिखाकर युद्धरत रूस की फौज में भी भर्ती करवा दिया। कई युवाओं के युद्ध में मरने की खबरें भी आई। दरअसल, युवाओं की इस बदहाली की वजह भ्रष्ट व बेईमान ट्रैवल एजेंट तो हैं ही, हमारी सरकारें भी इसके लिये कम जिम्मेदार नहीं है।
हाल ही में डंकी यात्रा पूरी करने वाले लोगों के परिवारों ने बताया कि मानव तस्कर अक्सर नई दिल्ली और मुंबई से प्रवासियों को पर्यटक वीजा पर संयुक्त अरब अमीरात ले जाते हैं। फिर वे वेनेजुएला, निकारागुआ और ग्वाटेमाला जैसे लैटिन अमेरिका के एक दर्जन से ज्यादा ट्रांजिट बिंदुओं से गुजरते हुए अमेरिका-मेक्सिको सीमा तक पहुंचते हैं। अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, बीते पांच साल में दो लाख से ज्यादा भारतीय अवैध तरीके से अमेरिका में घुसते हुए पकड़े गए हैं। ऐसे मामले उजागर होने के तुरंत बाद कुछ गिरफ्तारियां इस बड़े संकट का समाधान नहीं है। इन आपराधिक कृत्यों में लिप्त एजेंट कुछ समय के लिये चुप बैठकर फिर से अपने नापाक खेल में सक्रिय हो जाते हैं। वैसे वे युवा भी कम दोषी नहीं हैं जो वास्तविक स्थिति को जाने बिना शॉर्टकट रास्ते के लिये दलालों को पैसे देने को तैयार हो जाते हैं। दरअसल, विदेश जाने के इच्छुक उम्मीदवारों को आधिकारिक चैनल को दरकिनार करने के खतरों के बारे में भी बताना चाहिए। इसके लिये उन्हें सचेत करने के मकसद से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।
हमारे देश के युवा अमीर देशों में पलायन करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या गरीबी से छुटकारा पाने वालों एवं आकांक्षाओं से भी जुड़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही विदेश में निम्न-स्तरीय नौकरियां मिले लेकिन बेहतर वेतन के लोभ में युवा ऐसी नौकरियां करते हैं। भारत में बेरोजगारी का आलम यह है कि उत्तर प्रदेश में 60 हजार कांस्टेबल की भर्ती के लिये 48 लाख से भी अधिक युवा-प्रार्थियों ने आवेदन किया है। थक-हारकर ऐसी एवं अन्य नौकरियों के लिये कोशिशों में नाकाम रहने वाले युवा विदेशों की ओर पलायन करते हैं। कई लोगों की राय में अमेरिका में होने वाली अच्छी कमाई डंकी रूट की जोखिमों एवं परेशानियों की भरपाई कर देती है। कई परिवारों ने कहा कि उनके बेटे और भतीजे हर महीने कम से कम दो लाख रुपये घर भेजते हैं और वे मुख्य रूप से गैस स्टेशन, मॉल, किराना स्टोर और रेस्तरां में फुल या पार्ट टाइम जॉब करते हैं। एक शख्स के अनुसार उसका भतीजा कैलिफोर्निया में एक डेयरी फार्म में प्रतिदिन लगभग 100 डॉलर कमाता है, जबकि यहां भारत में वह वही काम करके एक महीने में 6,000 रुपये कमाता था। रिश्तेदारों के मुताबिक, इस धन से न केवल उन्हें कर्ज उतारने, स्कूल की फीस भरने, दहेज, घर की मरम्मत और नई कार खरीदने में मदद मिली, बल्कि इससे उनकी सामाजिक स्थिति भी सुधरी। माना जाता है कि हाल के वर्षों में देखे गए वीजा बैकलॉग ने भी कुछ संभावित प्रवासियों को डंकी रूट अपनाने के लिए प्रेरित किया है। संभावित प्रवासियों के लिए यह निर्णय भारी कीमत और बहुत बड़े जोखिम के साथ आता है। विडम्बना देखिये कि मुट्ठी भर डंकी प्रवासियों की सफलता की कहानियां बहुसंख्यकों को गुमराह करती हैं। हर कोई प्रवास के लाभों के बारे में बात करता रहता है, लेकिन कोई भी समस्याओं और चुनौतियों के बारे में बात नहीं करता।