स्वस्थ जीवन और दिनचर्या, भारत के साथ वैश्विक नजरिया। स्वस्थ नागरिक मजबूत राष्ट्र
स्वस्थ नागरिक, सशक्त राष्ट्र यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि किसी भी देश की प्रगति का मूल दर्शन है, क्योंकि राष्ट्र का वास्तविक बल उसके हथियारों, इमारतों या अर्थव्यवस्था में नहीं, बल्कि उसके नागरिकों के स्वस्थ तन-मन में निहित होता है। मानव जीवन में स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है, ऐसा इसलिए नहीं कि यह केवल रोगों की अनुपस्थिति है, बल्कि इसलिए कि स्वास्थ्य रचनात्मकता, उत्पादकता, संतुलित सोच और दीर्घकालिक राष्ट्रीय विकास की आधारशिला है, यदि मनुष्य स्वस्थ नहीं है तो वह न परिवार में अपनी जिम्मेदार भूमिका निभा सकता है, न समाज में सकारात्मक योगदान दे सकता है और न ही राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सहभागी बन सकता है, ठीक उसी प्रकार समय भी धन के समान है, क्योंकि जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करता है वही उन्नति के शिखर को छूता है, और जो राष्ट्र समय की कीमत समझता है वही इतिहास में अपना स्थान सुरक्षित करता है, अस्वस्थ शरीर और अव्यवस्थित जीवनशैली वाला व्यक्ति समय का सम्मान नहीं कर पाता और परिणामस्वरूप उसका जीवन निराशा, कुंठा और असंतोष से भर जाता है, इसीलिए भारतीय दर्शन में स्वास्थ्य को जीवन का अनमोल रत्न कहा गया है और आधुनिक संदर्भ में यह कहा जाना अधिक समीचीन है कि स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है।
इसी दृष्टि से भारत सरकार ने 2019 में राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य केवल व्यायाम को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि समग्र जीवनशैली में परिवर्तन लाकर स्वस्थ भारत, स्वच्छ भारत और सशक्त भारत के स्वप्न को साकार करना है, क्योंकि भारत जैसे युवा देश को प्रगतिशील और मजबूत राष्ट्र बनने के लिए अपने मानव संसाधन को स्वस्थ, ऊर्जावान और अनुशासित बनाना अनिवार्य है; यह अभियान तभी सफल हो सकता है जब इसे सरकारी योजना भर न मानकर जन आंदोलन का स्वरूप दिया जाए और गांव से महानगर तक, विद्यालय से कार्यस्थल तक, खेल के मैदान से घर के आंगन तक स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति भावनात्मक लगाव पैदा किया जाए, फिट इंडिया मूवमेंट इसी दीर्घकालिक सोच के साथ आगामी वर्षों तक संचालित रहने की परिकल्पना करता है, जिसमें पहले चरण में शारीरिक फिटनेस, दूसरे चरण में संतुलित भोजन और पोषण, तीसरे चरण में पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली और मानसिक स्वास्थ्य तथा आगे चलकर रोगों की रोकथाम और जीवनशैली जनित बीमारियों से मुक्ति के उपायों पर जनजागरूकता फैलाई जानी है; आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व इस सच्चाई से परिचित हो चुका है कि गैर-संक्रामक बीमारियां आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी हैं, हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, टीबी और क्रॉनिक किडनी डिजीज जैसी बीमारियां न केवल जीवन को असमय समाप्त कर रही हैं, बल्कि परिवारों और राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा आघात कर रही हैं, कुपोषण और असंतुलित आहार की समस्या स्थिति को और गंभीर बनाती है, और स्वास्थ्य सूचकांकों में भारत का पिछड़ा स्थान यह संकेत देता है कि हमारी बड़ी आबादी अभी भी स्वास्थ्य और फिटनेस को प्राथमिकता नहीं देती; स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही का दुष्परिणाम केवल मृत्यु दर में वृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे उत्पादकता घटती है, कार्यदिवस नष्ट होते हैं, स्वास्थ्य व्यय बढ़ता है और राष्ट्रीय विकास की गति धीमी पड़ जाती है, वस्तुतः भारत में अधिकांश बीमारियों की जड़ अनियमित जीवनशैली है—कम शारीरिक गतिविधि, असंतुलित भोजन, तनाव, नींद की कमी और नशे की प्रवृत्ति—लोग व्यायाम को जीवन की आवश्यकता नहीं, बल्कि अतिरिक्त बोझ मान लेते हैं, जिसके कारण स्वास्थ्य संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है और फिट इंडिया जैसे अभियानों की आवश्यकता और अधिक प्रासंगिक हो जाती है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कई देशों ने स्वास्थ्य को राष्ट्रीय नीति का केंद्र बिंदु बनाया है, चीन ने ‘हेल्दी चाइना 2030’ के माध्यम से अपने नागरिकों की शारीरिक और मानसिक सेहत सुधारने का दीर्घकालिक लक्ष्य तय किया है, ऑस्ट्रेलिया ने शारीरिक गतिविधि बढ़ाने और आलस्य से मुक्ति के लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू किया है, जर्मनी और यूरोपीय देशों में फिटनेस और संतुलित जीवनशैली सामाजिक संस्कृति का हिस्सा है, अमेरिका जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश ने भी फिटनेस ट्रेनिंग, सामुदायिक खेल और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से नागरिकों को सक्रिय रखने की पहल की है, इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि जो राष्ट्र अपने नागरिकों को स्वस्थ रखता है वही दीर्घकाल में आर्थिक, सामाजिक और सामरिक रूप से सशक्त बनता है; स्वस्थ रहने से अनेक बीमारियां स्वतः दूर रहती हैं, इलाज पर होने वाला खर्च बचता है और व्यक्ति की कार्यक्षमता कई गुना बढ़ जाती है, स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है और यही स्वस्थ मन नवाचार, अनुशासन और राष्ट्र निर्माण की ऊर्जा उत्पन्न करता है, नियमित व्यायाम, योग और ध्यान से हृदय रोग, मधुमेह, रक्तचाप जैसी बीमारियों के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है, भारत में इन बीमारियों पर होने वाला उपचार व्यय अत्यधिक है और यदि जनमानस को स्वस्थ रखकर इनसे दूर रखा जाए तो न केवल परिवारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, बल्कि राष्ट्रीय संसाधनों पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा; शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई देता है—पारिवारिक संबंधों में सौहार्द बढ़ता है, कार्यस्थल पर उत्पादकता और एकाग्रता में वृद्धि होती है, सामाजिक व्यवहार अधिक सकारात्मक होता है और आर्थिक गतिविधियों में सक्रियता आती है, स्वास्थ्य पर होने वाले अनावश्यक खर्च में कमी आकर बचत और निवेश की संभावना बढ़ती है, जिससे समग्र आर्थिक विकास को गति मिलती है, अनुमान है कि यदि देश में व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य सुधार हो तो सकल घरेलू उत्पाद में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है, क्योंकि स्वस्थ जनसंख्या ही किसी भी अर्थव्यवस्था की वास्तविक पूंजी होती है।
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आमजन का स्वस्थ रहना किसी भी सरकार की सबसे बड़ी सफलता मानी जानी चाहिए, क्योंकि व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है, एक व्यक्ति का शरीर और मस्तिष्क यदि स्वस्थ है तो उसका प्रभाव उसके परिवार, उसके समुदाय और अंततः पूरे देश पर पड़ता है, और जब करोड़ों स्वस्थ नागरिक मिलकर राष्ट्र का निर्माण करते हैं तो सकारात्मक ऊर्जा का संचार हर क्षेत्र में दिखाई देता है, विकास की गति तीव्र होती है और राष्ट्र आत्मनिर्भरता तथा वैश्विक सम्मान की दिशा में आगे बढ़ता है, इसलिए आज की आवश्यकता है कि हम स्वास्थ्य को केवल व्यक्तिगत मुद्दा न मानकर राष्ट्रीय कर्तव्य के रूप में स्वीकार करें, नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, स्वच्छता, मानसिक संतुलन और समय के सदुपयोग को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं और यह समझ लें कि स्वस्थ रहना केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए भी योगदान देना है, क्योंकि अंततः यही सत्य है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है, और स्वस्थ नागरिकों से ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव है।
संजीव ठाकुर

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