इस दीपावली मिट्टी के दीयों से परंपरा और संस्कृति का प्रकाश फैलाएँ: डीएम

जिलाधिकारी ने किया तात्या टोपे नगर का दौरा, माटीकला कलाकारों से की बातचीत
पारंपरिक और इलेक्ट्रिक चाक पर साकार होती मिट्टी की विरासत
दीपावली की आहट के साथ बिठूर स्थित तात्या टोपे नगर की गलियों में इस समय मिट्टी की महक बसी हुई है। जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने आज यहां का निरीक्षण किया, जहां दीपावली के अवसर पर कुम्हार परिवार दिन-रात मेहनत कर पारंपरिक और सजावटी दीये तैयार कर रहे हैं। कहीं पारंपरिक चाक पर बुज़ुर्ग अपनी कला को साध रहे हैं, तो कहीं युवाओं के हाथों में माटीकला बोर्ड द्वारा प्रदत्त इलेक्ट्रिक चाक तेजी से घूम रहे हैं। पकती हुई मिट्टी से उठती सौंधी खुशबू, कतारों में सूखते दीये, भगवान गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, सिरवा-गरिया और बच्चों के लिए खास खिलौने इस पूरी बस्ती को दीपावली के उत्सव का जीवंत दृश्य बना रहे हैं।
65 वर्षीय रामआसरे, जो अपने पारंपरिक चाक पर दीये गढ़ रहे थे, ने जिलाधिकारी से कहा कि उन्होंने अपने बाप-दादा को भी यही करते देखा है। मिट्टी का दीया ही असली दीपावली है। झालर और बल्ब चमकते तो हैं, पर उनकी उम्र कुछ ही दिनों की होती है। मिट्टी का दीया हर बार नई रोशनी और नई उम्मीद लेकर आता है।
एनआरएलएम की फील्ड ऑफिसर नेहा प्रजापति ने बताया कि दीपावली को ध्यान में रखते हुए व्यापक पैमाने पर मिट्टी के दीये, लक्ष्मी-गणेश और कुबेर भगवान की मूर्तियां, सिरवा, गरिया और सजावटी वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन उत्पादों को उचित मूल्य दिलाना हमेशा चुनौती रहता है। आजकल झालरों का चलन बढ़ा है, लेकिन समाज को अपनी परंपरा और संस्कृति के संरक्षण के लिए आगे आना चाहिए।
तात्या टोपे नगर में लगभग 35 परिवार कुम्हारी कला से अपनी आजीविका चलाते हैं। इनमें से 24 परिवारों को माटीकला बोर्ड द्वारा इलेक्ट्रिक चाक उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे युवाओं का काम तेज़ और सुविधाजनक हो गया है। जिलाधिकारी ने यहां के कलाकारों से संवाद किया और उन्हें सम्मानित भी किया। पुष्पा प्रजापति ने मिट्टी से निर्मित लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा जिलाधिकारी को भेंट की, जिस पर उन्होंने पारिश्रमिक प्रदान किया और कहा कि इस दीपावली पर वह इन्हीं की पूजा करेंगे।
निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी ने कहा कि तात्या टोपे नगर की माटीकला अत्यंत प्रभावशाली है और यहां के उत्पाद आईआईटी सहित देश-विदेश तक पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में प्रधानमंत्री के जनपद आगमन पर यहीं निर्मित एक उत्पाद भेंट किया गया था। जिलाधिकारी ने अपील की कि दीप से ही दीपावली है। मिट्टी के दीये पर्यावरण अनुकूल होते हैं और भारतीय संस्कृति की परंपरा को जीवित रखते हैं। हमें इन्हें अपनाकर न केवल कारीगरों का सहयोग करना है बल्कि इस विरासत को भी बचाना है। जनपद को माटीकला के एक उत्कृष्ट केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।
*बॉक्स संख्या 1*
*स्वदेशी मेले में मिलेगा स्टॉल, बिकेंगे मिट्टी के दीये*
जिलाधिकारी ने बताया कि दीपावली को ध्यान में रखते हुए माटीकला से जुड़े कलाकारों को आगामी 11 अक्टूबर से मोतीझील में लगने वाले स्वदेशी मेले में उपयुक्त विक्रय स्थल निःशुल्क उपलब्ध कराया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने निर्देश दिए कि कलेक्ट्रेट और विकास भवन परिसर में भी कलाकार अपने दीपावली से जुड़े उत्पादों की बिक्री के लिए स्टॉल लगा सकें। जिलाधिकारी ने कहा कि इन स्थानों पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग आते-जाते हैं, जिससे माटीकला उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा मिलेगा और कलाकारों को सीधा लाभ पहुंचेगा।