भारत,रूस,चीन बनाम अमेरिका और यूरोपियन देश। (ट्रम्प के रुख से चीन-भारत करीब आये)
अमेरिका में 60वें राष्ट्रपति चुनाव के बाद चुनाव से अमेरिका में 47 वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तथा 50 वें उपराष्ट्रपति जे डी वेन्स चुने गए। डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव के पूर्व घोषणा की थी कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वे रूस यूक्रेन युद्ध और इसराइल हमास युद्ध को तत्काल रुकवाएंगे और वैश्विक आर्थिक तथा सामरिक शांति का प्रादुर्भाव करेंगे। अमेरिका एक शक्ति संपन्न राष्ट्र है और उसकी नीतियां,राजनीति एवं कूटनीति पूरी दुनिया के देशों को प्रभावित करती है। वह राजनीतिक सामरिक अथवा व्यापारिक लेनदेन के समझौते या युद्ध में मदद की बात को लेकर अमेरिका का दखल लगभग सभी मसलों में एक जैसा रहता है। यह अलग मुद्दा है कि पश्चिम एशिया,चीन, रूस एवं नॉर्थ कोरिया जैसे देश अमेरिका के धुर विरोधी रहे हैं। चीन और रूस के सामरिक,व्यापारिक और एटॉमिक मसलों पर अमेरिका से टकराते रहे हैं। यह गौर किए जाने वाली बात है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ही अमेरिका सहित अन्य कई देशों के दिशा-निर्देश तय करते थे, पर राष्ट्रपति चुने के जाने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी घोषणाओं के उलट ना तो वे रूस यूक्रेन युद्ध रुकवा पाए हैं बल्कि ईरान पर बड़े हवाई जहाज हमले से एक नया विवाद खड़ा कर दिया था ले देकर ईरान इजरायल युद्ध रुकवा पाए हैं। दूसरी तरफ नए आयात टैरिफ लगाकर पूरे वैश्विक देश में बेचैनी तथा खलबली मचा दी है। वैश्विक आर्थिक सलाहकार और विशेषज्ञ किस डोनाल्ड ट्रंप की सनक ही बता रहे हैं। और उनके आयत टैरिफ को बहुत ही अपरिपक्व निर्णय की संज्ञा दे रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोपीय देश तथा अन्य पश्चिमी देशों में आयात शुल्क पर काफी दरियादिली दिखाई है और यही वजह है कि नाटो तथा अन्य यूरोपीय देश अमेरिका का अभी भी समर्थन कर रहे हैं।
अमेरिका के चुनाव के नतीजे से भारत के रिश्तों में काफी परिवर्तन हुआ है, डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व कार्यकाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं डोनाल्ड ट्रंप के संबंध निजी तौर पर काफी प्रगाढ़ रहे थेजो। डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान में दी जाने वाली अमेरिकी सहायता के खिलाफ रहे पर अब पाकिस्तान पर उनकी मेहरबानियां काफी बढ़ गई है। उन्होंने पाकिस्तान सेनाध्यक्ष को व्हाइट हाउस में लंच में बुलाकर पाकिस्तान के प्याले में तूफान लाकर खड़ा कर दिया है। पाकिस्तान की निराश उम्मीद पर पंख लग गए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीतकर चीन पर भी नियंत्रण रखने का प्रयास किया है । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाईडेन रूस यूक्रेन युद्ध के मध्य भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल लिए जाने पर खासा नाराज हुए थे। भारत पर काफी दबाव भी डाला गया पर भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि रूस भारत का परंपरागत मित्र होने की वजह से और 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध रूस ने भारत की एक तरफ़ा मदद भी की थी। ऐसे में भारत स्पष्ट रूप से रूस के साथ सामरिक-आर्थिक मामलों में खड़ा हुआ है।
आज की ताजा परिस्थिति का आंकलन करें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती उनके चुनाव के परम सहयोगी टेस्ला के मालिक से पूरी तरह टूट चुकी है, दूसरी तरफ भारत तथा चीन ब्राज़ील व अन्य राज्यों पर भारी आयात शुल्क लगाने पर डोनाल्ड ट्रंप की भारत विरोधी नीति खुलकर सामने आ गई है अमेरिका ने पाकिस्तान जैसे महत्वहीन और फकीर देश को अपना नया शागिर्द बना लिया है। ट्रंप और पुतिन की रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर शांति वार्ता पूर्ण रूप से विफल रही, पुतिन ने अपनी शर्तें डोनाल्ड ट्रंप को साफ तौर पर बता कर कह दिया कि यूक्रेन को नाटो की किसी भी परिस्थिति में सदस्यता ना दी जाए। उधर यूक्रेन ने भी अमेरिका से बातचीत के बाद उसका रूस के साथ युद्ध विराम वाले आदेश को मानने से साफ इनकार कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने रूस द्वारा भारत को कम कीमत पर कच्चे तेल निर्यात किए जाने से कुपित होकर भारत पर 25 से लेकर 50% तक आयात शुल्क लागू किया है। भारत ने इस अमेरिकी रुख पर अडिग होकर भारतीय व्यापार तथा नागरिकों को प्राथमिकता देने की घोषणा की है। और अमेरिका का वैकल्पिक बाजार तलाशने के तारत्म्य में रूस के साथ दोस्ती को और मजबूत कर चीन के साथ भी दोस्ताना हाथ बढ़ाया है। विदेश मंत्री जयशंकर और एनआईए प्रमुख अजीत डोभाल की चीन की यात्रा उसके तुरंत बाद चीनी विदेश मंत्री ने भारत की यात्रा की है, जिससे भारत चीन व्यापारिक तथा कूटनीतिक संबंधों तेजी और थोड़ी प्रगाढ़ता आई है। भारतीय प्रधानमंत्री भारत और चीन के नए संबंधों के समीकरणों को मजबूत करने के लिए चीन की आधिकारिक यात्रा पर जाने वाले हैं। भारत और चीन के आपसी संबंध मधुर होते ही रूस ने इसका स्वागत किया है। अब भारत रूस चीन तथा ब्राजील एक नए धरातल पर खड़े नजर आ रहे हैं। भारत रूस चीन की त्रिकोणीय जोड़ी विश्व में अमेरिका तथा यूरोपीय देशों के विरुद्ध एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरती दिखाई दे रही है। यह अलग अलग बात है कि चीन भी अमेरिका से कम धोखेबाज नहीं है भारत का चीन के साथ पुराने अनुभव बहुत मधुर नहीं रहै हैं। किंतु बदली हुई परिस्थितियों में डोनाल्ड ट्रंप के इस आर्थिक तथा टैरिफ युद्ध के कारण भारत और चीन काफी नजदीक आ गए हैं। चीन के राष्ट्रपति श्री जिनपिंग ने भारत की मित्रता के लिए अपने रुख को स्पष्ट कर दिया है और अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ का खुलकर विरोध भी किया है। इसके अलावा रूस ने डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में अपनी बातचीत के दौरान भारत का पक्ष लेकर डोनाल्ड ट्रंप को आडे हाथों में भी लिया था और यही वजह है कि भारत रूस और चीन अब एक प्लेटफार्म पर खड़े होकर डोनाल्ड ट्रंप तथा यूरोपीय देशों के लिए चुनौती बने के लिए अग्रसर है। इस नए घटनाक्रम के नतीजतन डोनाल्ड ट्रंप और यूरोपीय देशों खासकर नाटो देश में काफी खलबली तथा बेचैनी नजर आ रही है। अब निश्चित तौर पर भविष्य ही तय करेगा की भारत की यह नई मित्रता डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध कितनी कारगर साबित होगी।
संजीव ठाकुर,

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