देश के मजबूर किसान
दर दर मारे मारे फिर रहे,
देश के मजबूर किसान।
दिवास्वप्न दिखाने वाले,
चढि चढि घूम रहे विमान।
चढि चढि घूम रहे विमान,
कान हरी तनिक न दे रहे।
लाइन में खडा़ बेचारा किसान,
चाहे जितना दुःख सहे।
बोरी दो चार उन्हें बस चाहिए,
नहीं चाहिए उन्हें भर गोदाम ।
उनकी जरूरत पूरी कर दो ,
उन्हें और भी है खेती में काम।
– हरी राम यादव
बनघुसरा, अयोध्या
7087815074

मैं मजदूर हूं
लड़ना ही है तो लड़ो मित्रों
तेरा हुआ हमें अहसास का ये सुख सभी ने पाया 