ट्रंप और टैरिफ, अमेरिकी लोकतंत्र में अधिनायकवाद का दौर

दुनिया के देशों में ट्रंप के टैरिफ युद्ध से 70 देशों में बड़ी अफ़रा तफरी मचने के बाद अमेरिका में व्यापार संरक्षणवाद का नया दौर प्रारंभ हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति के अधिनायकवाद के चलते अमेरिका जो कभी अर्थव्यवस्था में संरक्षणवाद का घोर विरोधी रहा है, अब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की नई नीति के कारण संरक्षणवाद का नया दौर शुरू हो गया है। इस नए संरक्षण वाद के चलते अमेरिका में भी कीमतों में भारी उछाल आया है।
वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कनाडा,ब्राजील,भारत,ताइवान सहित 69 देश और यूरोपीय यूनियन के 27 सदस्यों वाले राज्यों से होने वाले आयात पर टैरिफ की नई दरों को निर्धारित करने वाले कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। पूरे विश्व के अर्थशास्त्रियों को मानना है कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दूरगामी परिणाम होंगे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने वैश्विक फैसले पर कितनी देर तक अडिग रह सकते हैं इसमें बहुत ज्यादा संशय की स्थिति बनी हुई है। अमेरिका के ऐतिहासिक दौर में न जाने किन-किन वित्तीय सलाहकारों की सलाह पर राष्ट्रपति ने इस तरह उथल-पुथल मचाने वाले टैरिफ वार की घोषणा की है। टैरिफ की इस नई लहर से पूरे वैश्विक बाजार में शेयर बाजारों में तगड़ी तथा अभूतपूर्व गिरावट परिलक्षित हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस नई टैरिफ टैरिफ नीति के कारण जो दर् तय की गई है उसमें कनाडा से आयातित वस्तुओं पर 35% ,ब्राज़ील पर 50%, भारत पर 25%, ताइवान पर 20% और स्विट्जरलैंड में 39% शुल्क शामिल है। आर्थिक विश्लेषकों के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस आदेश में 69 देश के लिए 7 दिनों में 10 से 40 तक की उच्च आयात शुल्क लगाने वाली घोषणा से वैश्विक बाजार में भारी भारी अफरा तफरी मच गई है। ट्रंप के पहले राष्ट्रपति के दौर में यह तो तय था की डोनाल्ड ट्रंप एक व्यापारिक मनोवृति के व्यक्ति हैं और व्यापार को अमेरिका के हित में आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहे हैं। दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसा प्रतीत होता है कि वह बहुत जल्दबाजी में अपने देश के व्यापार को शिखर में ले जाकर व्यवसायिक सिरमौर बनना चाहते हैं। इस कदम से उन्हें पता ही नहीं चला कि वे कब और किस तरह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों से अलग अमेरिकी लोकतंत्र के अधिनायकवादी शासक बन गए हैं। इससे उनकी पार्टी तथा विरोधी दल के नेता सहित अमेरिकी आम उपभोक्ता भी अचंभित तथा त्रस्त हो गए हैं। भारत के संदर्भ में वे लगभग यह भूल चुके हैं कि भारत अब पहले जैसा भारत नहीं रहा। आज भारत विश्व की चौथी बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुका है और भारत में विश्व का सबसे बड़ा वैश्विक बाजार उसकी जनसंख्या के बलबूते पर केंद्रित हो गया है। भारत के साथ 25% टैरिफ लगाने के संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि भारतीय बाजार को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अमेरिकी बाजार में भी आर्थिक क्षति की संभावना बलवती हो गई है। भारत में 25% टैरिफ लगाने पर भारत के कई अर्थशास्त्र के संगठनों ने कहा कि अमेरिका के इस लगाए गए नए टैरिफ रेट से न सिर्फ अमेरिका के घरेलू उत्पादों में गिरावट आकर मुद्रा स्थिति की दर ज्यादा होगी और इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाने की संभावना भी है और दूसरी तरफ भारत को थोड़े अल्पकालिक नुकसान के साथ कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने की अनिवार्यता को और मजबूत बनाएगा। अगर अमेरिका को यह लगता है कि दबाव की रणनीति को लागू करके भारत की राजनीतिक दिशा को प्रभावित कर सकता है तो अमेरिका भारी भूल में है उसे यह बात जान लेनी चाहिए की वर्तमान का भारत एक दशक वाला पुराना भारत नहीं रहा है। अब भारत किसी भी देश की उपस्थित या दबाव झेंलने के लिए बाध्य नहीं है। यह भी अंदेशा लगाया जा रहा है कि अमेरिका ने व्यापार समझौते में बेहतर वार्ता सुनिश्चित करने के लिए यह दबाव बनाया है। पर यह भी संभावना है कि भारत पर इसका आंशिक असर तो पड़ेगा ही और भारत पर अमेरिका के साथ आयात निर्यात में 45 अरब डॉलर के अधिशेष व्यापार पर हल्का खतरा बन सकता है। इसके लिए भारत को अमेरिका के सामने झुकने की कतई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। भारत विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के इस रूप पर अपनी कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है इससे यह स्पष्ट है कि भारत किसी तरह के दबाव में नहीं है और अमेरिका के इस रुख को अच्छे से समझ चुका है।
अमेरिका में भी ऐतिहासिक तौर पर डोनाल्ड ट्रंप भारत के बाद सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के एक अधिनायक वादी राष्ट्रपति बन चुके हैं और उनकी सनक के चलते उनकी पार्टी के नेता ही उनके अंदरुनी विरोध में आ चुके हैं उल्लेखनीय है कि उनके चुनावी मित्र टेस्ला के प्रमुख एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप से अपना रिश्ता तोड़कर एक अलग पार्टी बनाने का फैसला भी कर लिया है। अमेरिका में तीसरी पार्टी बनाने का यह फैसला अमेरिकी इतिहास के लिए एकदम नया तथा अभूतपूर्व कदम है ।
अमेरिका ने जहां भारत से व्यापार वस्तुओं के आयात निर्यात पर 25% टैरिफ कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ बांग्लादेश तथा पाकिस्तान पर मेहरबानी कर टैरिफ की दर एकदम कम कर दक्षिण एशिया में राजनीति उथल-पुथल के भी संकेत दे दिए हैं। इससे यह स्पष्ट है कि अमेरिका भारत की बढ़ती ताकत और रूस से परंपरागत दोस्ती की मजबूती से काफी विचलित भी हुआ है। अब भारत को इस संदर्भ में वेट एंड वॉच की नीति अपना कर वार्ता से नए समीकरण पैदा कर अमेरिका को अपनी शर्तें मनवाने का कूटनीतिक दौर चलाना होगा।
संजीव ठाकुर