इंटरनेशनल मीडिया प्रेस क्लब द्वारा ऐतिहासिक गंगा मेला में समाजसेवियों,अधिवक्ताओं, राजनीतिक व्यक्तियों व पत्रकारों को किया गया सम्मानित

कानपुर नगर उपदेश टाइम्स
इंटरनेशनल मीडिया प्रेस क्लब के चेयरमेन/संस्थापक अध्यक्ष उमाशंकर त्यागी, राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र मिश्रा, शेष कुमार बाजपेई राष्ट्रीय अध्यक्ष लॉयर्स क्लब, सियाराम पाल राष्ट्रीय सलाहकार, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष केके द्विवेदी , हाकिम सिंह भदौरिया राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,पप्पू यादव राष्ट्रीय संगठन मंत्री, एसके मिश्रा राष्ट्रीय प्रचार मंत्री , श्याम कुशवाहा सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारणी , प्रदेश अध्यक्ष राजबहादुर धुरिया ,प्रदेश उपाध्यक्ष पंकज सिंह निषाद प्रदेश उपाध्यक्ष अनंत त्रिवेदी जिला अध्यक्ष कानपुर जितेंद्र कमल महामंत्री शिवा गौड़ उपाध्यक्ष राहुल निषाद उपाध्यक्ष आकाश वर्मा मुकुल आनंद ललित कुमार प्रेम कुमार निषाद श्री राम निषाद व क्लब के सभी सहयोगियों के साथ सरसैया घाट में गंगा मेला के पावन पर्व पर एक कैंप लगाकर पत्रकार साथियों जनप्रतिनिधियों सहित कानपुर की जनता का अभिवादन करते हुए उन्हें गंगा मेला पर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दीं।
कानपुर नगर में होली के बाद सात दिन तक बराबर अबीर गुलाल और रंग खेला जाता है इसके बाद सातवें दिन गंगा मेले का आयोजन किया जाता है। गंगा मेला के पीछे स्वतंत्रता आंदोलन की रोचक कहानी है। इस तथ्य को बहुत कम लोग जानते हैं कि यह परंपरा पहले से थी। गंगा मेला के विषय में बहुत कब लोग ही जानते हैं। गंगा मेला पर होली खेलने की कहानी 1942 से शुरू होती है लेकिन यह परंपरा काफी पुरानी है। अगर गंगा मेला की बात करें तो यह आजादी के आंदोलन के क्रांतिकारियों से जुड़ी है हटिया को शहर का दिल माना जाता था हटिया में लोहा कपड़े और गल्ले का कारोबार करने वाले व्यापारी दुर्धरा से आते थे। हटिया में ही क्रांतिकारियों का जमावड़ा रहता था। एक अंग्रेजी अक्षर में होली के दिन रंग खेलने से मना कर दिया था ऐसे मौके पर लोगों ने इसका विरोध किया और एक बड़े सेठ को गिरफ्तार भी कर लिया गया इससे गुस्सा आए लोगों में पंडित मुंशी राम शर्मा सॉन्ग बालकृष्ण शर्मा नवीन श्यामलाल गुप्त पार्षद बुद्ध लाल मेहरोत्रा जागेश्वर त्रिवेदी हामिद खां आदि ने जबरदस्त विरोध किया जिसके फलस्वरूप इन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और सरसैया घाट स्थित जेल में डाल दिया गया। इतिहास के पन्नों में रंग पंचमी तक होली खेलने की प्रक्रिया का जिक्र है यह परंपरा लगभग 100 साल पुरानी है 1870 में लिखी किताब तवारीख में 7 दिन तक होली खेलने का जिक्र भी था। लोगों की गिरफ्तारी को लेकर आम जनमानस में काफी गुस्सा था लोगों ने जबरदस्त विरोध किया जिसके चलते उपरोक्त सभी लोगों को छोड़ना पड़ा इसके बाद हटिया से भैंस ठेला निकाला गया। होरियारे पूरे रास्ते भर रंग अबीर गुलाल खेलते हुए सरसैया घाट तक पहुंच गए वहां जमकर होली खेली गई तभी से गंगा मेला की यह परंपरा आज तक अनवरत चल रही है।