मेजर रणवीर सिंह वीर चक्र (मरणोपरांत)

वीरगति दिवस पर विशेष
क्रांति धरा मेरठ का नाम सुनते ही मन में देश प्रेम की एक ज्वाला उठ खड़ी होती है। अनजाने में ही वह, सब कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है जिसके कारण इस धरती के अगणित वीरों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया और लिख दिया ऐसी वीर गाथा , जिसके समक्ष हर एक भारतीय का माथा गर्व से भर उठता है। मेरठ की धरती पर जन्में वीरों ने वीरता और बलिदान की वह बेजोड़ कहानियां लिखीं हैं जिनका सैन्य इतिहास में कोई सानी नहीं है। इसी क्रांति धरा मेरठ की धरती पर जन्मे, पले बढ़े मेजर रणबीर सिंह ने 21 सितंबर 1965 को अपने वीरता और बलिदान से वह अमर गाथा लिखी जिसका वर्णन आज जनपद मेरठ के गांवों में सुनायी जाती हैं।
अगस्त 1965 के दौरान मेजर रणबीर सिंह की यूनिट 19 पंजाब को जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया था। पड़ोसी देश पाकिस्तान ने अगस्त 1965 में ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ शुरू कर दिया। उसने देश को अस्थिर करने के लिए हजारों घुसपैठियों को भेजा । घुसपैठियों के साथ पहली झड़प 7 अगस्त 1965 को सुंदरबनी क्षेत्र में हुई। 9/10 अगस्त की रात को मेजर रणबीर सिंह के नेतृत्व में एक गश्ती दल को उरी सेक्टर में घुसपैठियों को खदेडने के लिए भेजा गया। जहां पर घुसपैठियों ने दो जगहों से गश्ती दल पर गोलीबारी शुरू कर दी। अपनी दो टुकड़ियों को कवर फायर देने का आदेश देकर, मेजर रणबीर सिंह ने एक टुकड़ी का स्वयं नेतृत्व किया और उस टुकड़ी को दुश्मन के पीछे ले गये और तीव्र गति से दुश्मन सेना पर हमला बोल दिया । इस हमले कई घुसपैठियों को इनकी टुकड़ी ने ढेर कर दिया।
21 सितंबर 1965 को, मेजर रणबीर सिंह को जम्मू-कश्मीर में एक और लक्ष्य पर कब्ज़ा करने का आदेश मिला। जब वे लक्ष्य के पास पहुंचे तब उन्हें दुश्मन की भारी गोलाबारी का सामना करना पड़ा और उनके दोनों पैर घायल हो गए। घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। आगे बढ़ने के क्रम में दुश्मन की एक गोली उनके सीने में आ लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। घाव गहरा होने के कारण युद्ध क्षेत्र में ही वह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके सैनिकों ने दुश्मन के साथ लड़ाई जारी रखी और शीघ्र ही लक्ष्य पर अधिकार जमा लिया।
मेजर रणबीर सिंह एक कुशल नेतृत्व करने वाले और दृढ़ निश्चयी अधिकारी थे। उनके अदम्य साहस, असाधारण नेतृत्व और दुश्मन के समक्ष प्रदर्शित वीरता के लिए युद्ध काल के तीसरे सबसे बड़े सम्मान “वीर चक्र” से मरणोपरांत अलंकृत किया गया।
मेजर रणबीर सिंह का जन्म जनपद मेरठ के नांगल गांव में 30 अगस्त 1938 को सूबेदार मेजर राम सिंह के यहां हुआ था। अब इनका यह बागपत जिले में आता है।उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा जाट हीरोज स्कूल, बड़ौत और के जी स्कूल, बैंगलोर से पूरी की। सैनिक परिवार से होने के कारण वह बचपन से ही सैन्य जीवन के प्रति आकर्षित हो गये और अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने का मन बना लिया । स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उनका चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़कवासला के लिए हो गया। 14 दिसंबर 1958 को 20 वर्ष की आयु में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में उन्होंने 19 पंजाब बटालियन में कमीशन लिया।
मेजर रणबीर सिंह की वीरांगना सुरेंद्र कुमारी अपने बेटे डॉ. राजीव सिंह के साथ मेरठ में रहती हैं। नांगल गांव के लोगों ने अपने गांव के वीर योद्धा की स्मृति में लगभग 12.50 लाख रुपये एकत्र कर 2022 में शहीद द्वार का निर्माण कराया, जिस के ऊपर उनकी प्रतिमा लगाई गई है। यह कार्य उनके गांव के सेवानिवृत्त सैनिक जगपाल सिंह की देख-रेख में पूरा किया गया। मेजर रणबीर सिंह के पुत्र डॉ. राजीव सिंह ने अपने पिता जी के सैन्य जीवन के ऊपर 2015 में एक फिल्म भी बनावायी है जिसका नाम “एक सैनिक कभी नहीं मरता ” है । इस फिल्म में भारत की आजादी से लेकर 1948, 1962, 1965 के युद्ध को दिखाते हुए उनके बचपन को भी दर्शाया गया है।
मेजर रणबीर सिंह की वीरता और बलिदान की यादों को बनाए रखने के लिए उनके नाम पर उनके गांव नांगल में एक अस्पताल बनाया गया था, लेकिन प्रशासन की अनदेखी के कारण यह अस्पताल अब खंडहर में बदल चुका है। इस अस्पताल का शिलान्यास 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पत्नी श्रीमती गायत्री देवी ने किया था।
– हरी राम यादव
सूबेदार मेजर (आनरेरी)
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