बाबा साहेब सामाजिक क्रांति के अग्रदूत
गरीब एवं अज्ञानी की सेवा करना प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति का फर्ज
सदी के महानायक संविधान निर्माता, महान समाज सुधारक भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के 134वीं जयंती मनाई जा रही है। भारत को लोकतांत्रिक एवं प्रगतिशील संविधान देने वाले महामानव, समतामूलक समाज के प्रणेता, भारत रत्न, बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने हमें भेदभाव से उठकर मनुष्यता को समग्रता से अपनाने की सीख दी है। उन्होंने कहा था कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्राथमिक शिक्षा की नींव को मजबूत करना होगा। इसके बाद उच्च शिक्षा में स्वतः सुधार हो जाएगा। हमारे सामाजिक दुखों पर शिक्षा ही एकमात्र औषधि है। अपने गरीब एवं अज्ञानी भाइयों की सेवा करना प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति का फर्ज है। कोई तुम्हें अधिकार देने नहीं आएगा, इसके लिए खुद लड़ों और छीन लो। हजार तलवारों से ज्यादा ताकत एक कलम मे होती है। शिक्षा शेरनी का वह दूध है, जो इसे पियेगा वह गुर्रायेगा। शिक्षित बनों, संगठित रहो, संघर्ष करो। अपना दीपक स्वयं बनों।
वे सामाजिक क्रांति के संघर्षशील अग्रदूत थे। उन्होंने भारतीय समाज को परिवर्तित करने हेतु अतुलनीय कार्य किया। भगवान बुद्ध, संत कबीर, महात्मा फुले जैसी महान आत्माओं के पदचिन्हों को ध्येय मार्ग मानकर सामाजिक क्रांति के उद्बोधक व पोषक डॉ. अम्बेडकर का व्यक्तित्व, कृतित्व और विचार बहुआयामी है। भारतीय राष्ट्रीय राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक पहलू पर उनकी पैनी दृष्टि रही है और उन्होंने इसे प्रभावित भी किया है। एक निष्ठ कर्मयोगी की भांति भारत रत्न बाबा साहेब ने मृत्यु पर्यन्त भारतीय समाज को परिवर्तित करने का अतुलनीय कार्य किया है। उनका कर्मयोग, संघर्ष एवं सुधारवाद आत्म सम्मान का प्रतीक है। उनके चिन्तन में दलित, शोषित, वंचित समाज से संबंधित प्रश्न सदैव ही प्रमुखता में रहे।
बाबा साहेब अपने समकालिक लोगों में सर्वाधिक शिक्षित व्यक्ति थे। उन्होंने कठोर परिश्रम से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। परन्तु जीवन के प्रारम्भिक वर्षों से ही उन्होंने समाज में व्याप्त अमानवीय कुरीतियों, छूआछूत, विभेद, तिरस्कार और जातिगत आधार पर उपेक्षा और अपमान की स्थितियों को स्वयं भोगा था। डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि व्यक्तिगत स्वार्थ राष्ट्र की तुलना में सदैव पीछे रहना चाहिए। इसलिए उन्होंने बहुत स्पष्टता के साथ कहा है, ”इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मैं अपने देश को बहुत प्यार करता हूं। मेरे अपने हित और देश के हित के साथ टकराव होगा तो मैं अपने देश को सदैव प्राथमिकता दूंगा।”
विषमताओं और सदियों से संघर्षरत अम्बेडकर को अनेकानेक स्वार्थी राजनीतिकों ने अपनी क्षुद्र राजनीति में कैद कर दिया। संविधान निर्माण का सारा भार अकेले डॉ भीमराव आंबेडकर को ही उठाना पड़ा। इससे आंबेडकर की कर्मठता प्रमाणित होती है। यह बताने की जरूरत नहीं। आंबेडकर ने देखा था कि उपेक्षा से बचने के लिए अस्पृश्य समाज तरह-तरह से अपने नाम बदलकर अपनी जाति छिपाने का प्रयास करता है। अंबेडकर ने कहा कि इस तरह नाम बदलने की अपेक्षा धर्म बदलना अधिक सम्मानजनक है।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना विशाल एवं बहुआयामी है कि उसे एक लेख में समेटना संभव नहीं है इसलिए कुछ अन्य उपयोगी राष्ट्र निर्माण में सहायक विषयों का सांकेतिक उल्लेख ही संभव है, लेकिन राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में इनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। भाषायी आधार पर राज्यों के गठन का विरोध, हिंदी की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापना, संस्कृत भाषा की शिक्षा और गुणवत्ता, धारा 370 का विरोध, मत परिवर्तन पर उनके विचार, धर्म की उपयोगिता का विचार, श्रम नीति, सुधार, शहरीकरण का महत्व, उनके द्वारा महाड सत्याग्रह, समान नागरिक संहिता एवं हिन्दू कोड बिल, श्रीमद् भगवद्गीता को प्रदत्त महत्व आदि अनेक अनेक ऐसे विचार हैं, जिनसे उनकी राष्ट्रीय दृष्टि का ज्ञान होता है। इसलिए बाबा साहेब का समग्रता में अध्ययन करने की आवश्यकता है। उन्होंने राष्ट्र के ऊपर असीम उपकार किया है। वे ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति हैं कि उनसे उऋण होना कठिन है।” इस महामानव ने भारतीय हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने, परिवर्तित करने और दलितों, वंचितों के उत्थान, समानता एवं सम्मान के लिए जिस निष्ठा और समर्पण भाव से संघर्ष एवं प्रयास किया, वह अनुकरणीय है। आज उनके संदेशों को आत्मसात करने और किसी भी प्रकार के नशा से दूर रहने की जरूरत है।
डॉ नन्द किशोर साह