जीव-जंतु और ज्ञान परंपरा — डॉ. नीरज भारद्वाज
ज्ञान कभी भी, कहीं भी मिल सकता है। हमारी गलतियाँ भी हमें ज्ञान देती हैं। सही मायनों में ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। विचार करें तो गुरू ज्ञान, अध्यात्मिक ज्ञान आदि लेने की एक परंपरा है। भारतीय ज्ञान परंपरा में सृष्टि के हर एक अंग को लिया गया है, इसमें सभी कुछ आते हैं- पेड़-पौधे, फल-फूल, जीव-जंतु, नभ-जल आदि। इसी ज्ञान परंपरा में जीव-जंतुओं पर ध्यान दें तो हमारे देवी-देवता के पास भी जीव-जंतु हैं। मनुष्य भी जीव-जंतुओं के साथ रहते हैं और इस सृष्टि में वह हम सभी के सहभागी हैं। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं- मम माया संभव संसार, जीव चराचर विविधि प्रकारा।। अर्थात भगवान कहते हैं कि मैंने इस सृष्टि पर विविध प्रकार के जीव बनाए हैं। सभी मुझे प्यारे भी हैं।
रामचरितमानस की कथा में आता है कि भगवान गरुड़ रामकथा सुनने के लिए भगवान काकभुशुंडी के पास जाते हैं- निज अनुभव अब कहउँ खगेसा।। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा।। गरूड़ जी कहते हैं कि हे पक्षीराज बिना हरि भजन के अंदर का कलेश मिटने वाला नहीं है। भगवान वाल्मीकि ने भी रामायण कथा का आरंभ क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को निहारते हुए ही किया, ऐसा हमें बताया-पढ़ाया गया है। विचार करें तो पक्षियों ने हरि अर्थात् भगवान की कथा सुनी है। वह इन कथाओं को सुनकर भवसागर से पार उतर गए हैं। आवागमन के चक्कर से मुक्त हो गए हैं। श्रीमद्भागवत कथा में भी तोता ही भगवान शंकर के द्वारा कही अमरकथा को सुन लेता है और अमर हो जाता है। कथा सुनकर जीव-जंतु, पशु-पक्षी अमर तो हो ही गए हैं, साथ ही वह भगवान के साथ भी रहते हैं, उनके परिवार का अंग भी हैं।
भगवान शंकर के परिवार में भी चूहा, मोर, सर्प, नंदी सभी हैं। भगवान श्रीराम के जीवन को जब हम पढ़ते और जानते हैं कि भगवान श्रीराम वन में जब गए हैं तो वहां वानर, भालू, गिलहरी, गिद्धराज जटायु आदि कितने ही जीव-जंतुओं से मिलते हुए उनका उद्धार करते हुए चलते हैं। यह सभी जीव भगवान श्रीराम के जीवन और रामकथा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र को पढ़ते और समझते हैं तो हम पाते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने गऊघाट पर गायों को चराया है और बाललीला की है। मोर पंख से सजा मोर मुकुट अपने सिर पर सजाया है।
भगवान युधिष्ठिर की बात करें तो मुक्ति मार्ग पर अंतिम समय में भगवान युधिष्ठिर के साथ कुत्ता जाता है। कुत्ते को बड़े बुजुर्ग बिन झोली का फकीर भी कहते हैं। माता शेरावाली की बात करें तो इनकी सवारी शेर की है। मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है। पौराणिक कथाओं को जब हम सुनते हैं तो उन कथाओं में एक हाथी की कथा आती है। हाथी के पैर को मगरमच्छ पकड़ लेता है और हाथी भगवान हरि अर्थात विष्णु की पूजा करते हैं, भगवान विष्णु उस मगरमच्छ का वध अपने सुदर्शन चक्र से करते हैं, कथा पूर्ण होती है। विचार करें तो भगवान जीव रक्षा के लिए हमेशा आगे आ जाते हैं। कहा भी गया है- ईश्वर के सब अंश है, कीरी कुंजर दोय अर्थात सभी ईश्वर के अंश हैं। चींटी से लेकर हाथी तक सृष्टि में सभी ईश्वर की रचना के अंग है। हमें ईश्वर की संरचना को भंग नहीं करना बल्कि ईश्वर की इस रचना में सभी के साथ रहना है। अपनी रक्षा के साथ-साथ इन सभी की रक्षा करनी है। सृष्टि के हर एक जीव की कथा पर लंबा चिंतन हो सकता है। अभी बस इतना ही।

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