हमारे प्राचीन लिखित माध्यम — डॉ. नीरज भारद्वाज
भारत का इतिहास अत्याधिक प्राचीन है। इसकी कालावधि के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। पौराणिक भोजपत्रों, शिलालेखों आदि के माध्यम से ही अनुमान लगाया गया है कि पहले मानव सभ्यता और उसके लिखित माध्यम क्या थे। हमारे चिंतक और विचारक ऋग्वदे को विश्व का प्राचीनतम साहित्य मानते हैं। वेदों के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि इनको किसने लिखा है, इसके बारे में कोई नहीं बता सकता। यह तो देवताओं के भी पहले से हैं। संस्कृत भाषा हमारी प्राचीन भाषा है। हमारी लिखित भाषा के प्रमाण सबसे पहले संस्कृत भाषा से ही हैं। हमारे वेद, पुराण, शास्त्र आदि को ताड-पत्रों पर लिखा माना गया है क्योंकि वेद के अनेक मंत्र याद न रहने के कारण लुप्त हो गए और मंत्र तथा श्लोक धीरे-धीरे कम होने लगे। माना यह जाता है कि कश्मीर निवासी ब्राह्मणों ने वेदमत्रों के लुप्त हो जाने के डर से प्रथम बार वेद को अर्थ सहित लिखने का कार्य किया।
वेद, शास्त्र, पुराण आदि लिखने के स्थल पहाड़ों की गुफाओं में या फिर दूर एकांत में मंदिर आदि होते थे। लेखन के अधिक सुरक्षित माध्यम न होने के कारण ऋषि-मुनि आदि ताड-पत्रों पर लिखते थे जिसके कुछ प्रमाण भी मिलते हैं। इस प्रकार लिखना और अपनी अभिव्यक्ति को जनसाधारण तक पहुँचाना तथा उनके बाद पढ़ने वालों के बारे में सोचकर लिखना यह परम्परा युगों-युगों से चली आ रही है।
प्राचीन काल में मानव नदियों के किनारे, पहाड़ों को काटकर गुफाओं में रहता था। तन ढ़कने के लिए वह पत्तों या वृक्षों की छाल का प्रयोग करता था। कच्चा-पक्का भोजन करके अपना पेट भरता। गुफाओं आदि को बनाने के लिए वह पत्थरों के टुकड़ों और लकड़ी आदि को तराशकर औजारों के रूप में इस्तेमाल किया करता था। इन्हीं औजारों की सहायता से वह खोदने, काटने आदि का काम किया करता था। पुरापाषण और मध्यपाषण युग के समय मानव जहाँ भी रहा, वहाँ वह पत्थरों और लकड़ी के इन औजारों के माध्यम से चित्र भी बनाता रहा। ऐसी ऐतिहासिक कलाकृतियाँ भारत के अनेक स्थानों में पाई जाती हैं। भारत के मध्य प्रदेश का भीम बेटका स्थल अद्भूत है। इसमें ऐसी ही चित्रित गुफाएँ हैं, जिनमें मानव की अद्भूत कला-कृतियों का पता चलता है तथा उनके वहां रहने की प्रमाणिकता मिलती है। इसके साथ ही आरंभिक पुरापाषण युग के कुछ स्थल पंजाब और सोअन या सोहन नदी की घाटी में भी पाए जाते हैं। कई स्थल कश्मीर और थार मरूस्थल में मिलतें हैं। इनमें पाए जाने वाले दुर्लभ चित्र ही मानव के वहाँ होने के प्रमाण देते हैं तथा उनके रहन-सहन और संस्कृति को भी बताते हैं। यही चित्रित गुफाएँ आदिकाल के लिखित माध्यम रहे हैं और वहीं से लिखित माध्यमों को प्राण तत्व मिला है। लेखन के प्रमाण हमें ताड-पत्रों, शिलालेखों, स्तंभों तथा गुफाओं आदि से भी मिलते हैं।शिलालेखों पर खुदे, अंकित शब्द समय की गति के साथ अमिट खड़े रहे हैं या फिर दबे मिले हैं। भारत में ऐतिहासिक तथ्यों को सुरक्षित रखने का कालपरक आरंभ मौर्यकाल से माना जाता है। वस्तुतः ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से लेकर हिन्दू शासन बारहवी (12वीं) शताब्दी तक बना रहा। इसलिए मौर्यकाल में अशोक, शुंग काल में पुष्पमित्र, कुषाण काल में कनिष्क, गुप्तकाल के समुद्र गुप्त और चंद्रगुप्त तथा मध्यकालीन के कई राजाओं के नाम आते हैं। इन राजाओं के काल में जो भी उन्नति हुई, उनके अवशेष अब तक सुरक्षित हैं, जो प्राचीन मंदिरों, स्तूपों आदि अभिलेखों में बंद हैं।
शिलालेख पर्वतों, चट्टानों पर अंकित सन्देश व जानकारियाँ हैं, जिससे उस काल की विभिन्न जानकारियाँ हमें प्राप्त होती हैं। अभी तक अशोक के शिलालेखों की संख्या सबसे अधिक हैं। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उसके प्रचार के लिए अनेक स्तूपों, स्तंभों, गुफाओं एवं आवासीय भवनों का निर्माण भी करवाया। सांची स्तूप इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। इनके अधिकतर शिलालेख ब्रह्मी लिपि में लिखे मिलते हैं, कुछ खरोष्ठी, यूनानी आदि लिपियों में भी मिलते हैं। इस प्रकार समझा जा सकता है कि सम्राट अशोक लिखित माध्यमों के जरिए जनता में अपने सन्देश, सूचना तथा जानकारियाँ आदि भेजते रहते थे और उनके शासन में हर वर्ग, जाति, धर्म सभी का ध्यान रखा जाता था।
देश के सबसे पुराने अभिलेख ईसा-पूर्व तीसरी सदी के अशोक के शिलालेख हैं। चौदहवीं सदी में फिरोजशाह तुगलक को अशोक के दो स्तंभ लेख मिले हैं ऐसा इतिहासकारों ने माना है। इस प्रकार मौर्यकाल से लेकर जयचंद्र के समय तथा उसके बाद भी कितने ही शिलालेखों के माध्यम से मानव सम्यता और संस्कृति को उजागर किया गया है। अशोक के शिलालेखों के माध्यम से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि उस समय भी लिखित माध्यम थे और ये लिखित माध्यम (शिलालेख) जनता के बीच अपना कार्य करते थे साथ ही इन शिलालेखों से हमें लिपिबद्ध लेखन होने का बोध होता है जो धीरे-धीरे विकसित होता हुआ वर्तमान समाज तक पहुँच गया है।