शांति तथा साहित्य का नोबेल पुरस्कार एशिया की झोली में
(मानवीय संवेदनाओं का सम्मान)
विश्व का अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार इस बार शांति के लिए जापान की संस्था निहोंन हीडांक्योँ और साहित्य के लिए दक्षिण कोरिया की युवा साहित्यकार हांन कांग को प्रदान किया गया है।
इस तरह शांति और साहित्य का नोबेल पुरस्कार फिर एशिया की झोली में आ गया है। एशिया में सर्वप्रथम भारत के रविंद्र नाथ टैगोर को 1913 में साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उसके पश्चात 1930 में सर सीवी रमन को विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। अब तक एशिया के 90 विशिष्ट लोगों को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है इनमें 9 भारतीय शामिल हैं इनमें उन भारतीयों को शामिल नहीं किया गया है जो भारत में तो जन्म लिया है किंतु विदेशी नागरिकता प्राप्त है । 1924 का शांति का नोबेल पुरस्कार जापान के छोटे शहर हिबा कुशा की ऐसी संस्था निहोंन हीडांक्योँ को दिया गया है जिसमें कुछ लोग परमाणु बम के हमले से बच गए और उन्होंने 1954 में अपना एक संगठन बनाया जो समस्त विश्व को परमाणु हथियारों और उसके विध्वंस से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयासरत रहकर परमाणु हथियारों का विरोध करती है। उनके इन प्रयासों को सम्मान देते हुए स्वीडिश अकादमी ने उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया है। साहित्य का नोबेल पुरस्कार दक्षिण कोरिया की साहित्यकार हान् कांग को प्रदत्त किया गया है। हांन कांग एशिया की पहली महिला साहित्यकार हैं जिन्हें यह सम्मानजनक एवं प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया गया। अब यह पुरस्कार दक्षिण कोरिया की साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर हान कांग को उनकी गहरी काव्यात्मक समझ एवं मानवीय संवेदनाओं को अपनी शैली में लिखने के लिए प्रदान किया गया है। 53 वर्ष की युवा साहित्यकार लेखिका ने अद्वितीय मानवीय संवेदनाओं पर सार -गर्भित जो साहित्य रचा है वह विश्व में अद्वितीय है। वैश्विक स्तर पर किसी भी भाषा साहित्य में इतना संवेदनशील और मानवता से जुड़े साहित्य का सृजन अब तक नहीं किया गया जिसके ही परिणाम स्वरूप उन्हें यह नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने से पहले उन्हें 1916 में प्रसिद्ध बुकर इंटरनेशनल सम्मान से भी नवाजा गया था । यह पुरस्कार उन्हें अपनी पुस्तक वेजीटेरियन के लिए दिया गया जो मनुष्य कि मस्तिष्क की बीमारियों के लिए प्रदान किया गया था।यह तो तय है की उनका साहित्य वैश्विक दुनिया में मानवी संवेदनाओं सहजता और मानव जाति के लिए एक शीतल लहर लेकर आया है स्वीडिश अकादमी ने पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा कि उन्हें यह नोबेल सम्मान उनकी सूक्ष्म गहरी एवं उनके गद्य के प्रागैतिहासिक संदर्भों एवं मनुष्य के नाजुक पहलुओं के दर्शन को रचनात्मक अभिव्यक्ति के प्रतिनिधित्व के लिए दिया गया है। लेखिका ने अपना साहित्य एक सफर वर्ष 1993 से प्रारंभ किया उनका पहला कथा संग्रह लव आफ बेसुई 1995 में प्रकाशित हुआ था। साउथ कोरिया के तमाम समाचार पत्रों में एवं दुनिया के समाचार पत्रों में उनकी अनुवादित रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रही हैं उनके रचनात्मक प्रयास अनथक जारी रहा उनकी कृति ब्रेथ फाइटिंग, ग्रीक लेसन किताबें प्रकाशित हुई थी जिसने पाठकों की काफी प्रशंसा भी प्राप्त की थी एवं इन किताबों ने दुनिया का ध्यान लेखिका की तरफ आकर्षित किया था। इन किताबों के लेखन के बाद दक्षिण कोरिया की यह युवा लेखिका हान् कांग देश के साहित्य का सितारा बन गई एवं दुनिया भर के पाठकों की चहेती लेखिका भी बन गई थीं। विशिष्ट शैली में रचा गया। वेजीटेरियन उपन्यास दुनिया के हर कोने में अनुवादित कर बार-बार पढ़ा जाने लगा और लेखिका पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त कर चुकी थी। उसके पश्चात लेखिका ने योर कोल्ड हैंड,संग सांग,ब्रेथ फाइटिंग आदि किताबों की रचना कर वैश्विक स्तर पर पाठकों के हृदय में अपना स्थान बनाना शुरू किया। उनके लेखन को पढ़कर यह हमेशा महसूस किया जाता रहा है कि समकालीन साहित्यकारों में श्रेष्ठ हैं एवं उनकी संवेदनाएं मानवीय पहलुओं को छूकर एक नई शीतल हवा के प्रवाह में सक्षम रही हैं। लेखिका के अनुसार वर्तमान संदर्भ में दुनिया तथा मनुष्य के पारिस्थितिक संबंध जरूर भौतिकवाद की ओर परिवर्तित हो गए हैं पर साहित्य सदैव शाश्वत रहा है और गद्य और पद्य सदैव अक्षुण् रहेगा, जीवन की विसंगतियां आम जानकी संवेदनाएं सामाजिक विडंबनाएं एवं सामाजिक संरचना के महीन एवं बारीक संदर्भों को समेटे हुए उनकी रचनाएं अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है निसंदे मानवीय संवेदनाओं को दर्शित करने वाला साहित्य वर्षों तक जीवित रहेगा ।
संजीव ठाकुर,