हीरोज ऑफ़ फ्रीडम फाइटर
देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा में हुआ था उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी तिवारी था। भावरा में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई और उच्च शिक्षा के लिए वे उत्तर प्रदेश के संस्कृत पाठशाला वाराणसी चले गए। वे बहुत कम उम्र में ही क्रांति कारी गतिविधियों* *में शामिल हो गए थे वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के समर्थन में देशभर में धरना-प्रदर्शन हो रहे थे। तब चंद्रशेखर काशी विद्यापीठ के छात्र थे। वे अपने कुछ साथी छात्रों को लेकर दशाश्वमेध घाट रोड पर विदेशी वस्त्र की दुकान के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। इसकी सूचना पर पहुंची पुलिस ने लाठियां भांजी। लाठियों से बचते हुए उनके मित्र इधर-उधर फैल गये लेकिन आजाद अपनी जगह पर खड़े रहे। एक दरोगा लोगों पर बेरहमी से डंडे बरसाने लगा। चंद्रशेखर आजाद से यह देखा नहीं गया और उन्होंने दरोगा को पत्थर मारा जिससे वह घायल होकर गिर पड़ा। इस जुर्म में उनको पुलिस*
*गिरफ्तार कर लिया और थाने ले गई दूसरे दिन चंद्रशेखर को कोर्ट में पेश किया गया। जब मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद, माता का नाम धरती और पिता का नाम स्वतंत्रता घर को जेलखाना बताया। मजिस्ट्रेट उनके इस तेवर से नाराज होकर 15 कोड़े लगाए जाने की सजा सुना दी। उन्हें सेंट्रल जेल ले जाया गया। जेलर आजाद की पीठ पर कोड़े बरसाता रहा और वह भारत माता के जयकारे लगाते रहे आखिर में सजा भुगतने के एवज में उन्हें तीन आने दिए गए, जो वह जेलर के मुंह पर फेंक आए थे। इस घटना के बाद से ही चंद्रशेखर*
*क्रांतिकारी गतिविधियों की सुर्खियों में आ गए*
*बचपन से ही जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ आ चुका था कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बात से नहीं बल्कि बंदूक से निकलने वाली पीतल की गोली से मिलेगी शुरुआत में गांधी के अहिंसात्मक गतिविधियों में शामिल हुए, लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस ले लिया गया तो, आजाद का कांग्रेस से मोह भंग हो गया और फिर उन्होंने बनारस का*
*रुख किया बनारस उन दिनों भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। बनारस में वह देश के महान क्रांतिकारियो के संपर्क में आए और क्रांतिकारी दल ‘हिन्दु स्तान प्रजातंत्र संघ’ के सदस्य बन गए।इसके बाद इस दल का उद्देश्य केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचा। कर अपनी क्रांति कारी गतिविधियों को अंजाम देने का काम किया जाता था इस*
*इस दौरान दल के सदस्यों ने* *अंग्रेजों को खुली चुनौती देते हुए* *काकोरी ट्रेन लूट को अंजाम दिया था इस कांड के लिए देश के महान क्रांतिकारियों में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, और ठाकुर रोशन सिंह जैसे कई क्रांतिकारी साथियों को फांसी*
*की सजा सुनाई गई थी इस घटना के बाद दल के ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए और दल बिखर गया। इसके बाद आजाद के सामने एक बार फिर दल खड़ा करने का संकट आ गया हालांकि, अंग्रेज सरकार आजाद को पकड़ने की कोशिश में लगी हुई थी, लेकिन वह छिपते-छिपाते दिल्ली पहुंच*
*गए और भगत सिंह से मिलकर एक नए दल का गठन किया और* *दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में सभी बचे हुए क्रांतिका रियों की गुप्त सभा आयोजित की इस सभा में आजाद के साथ ही महान क्रांतिकारी भगत सिंह भी शामिल हुए थे। इस सभा में तय किया गया कि दल में नए सदस्य जोड़े जाएंगे और इसे एक नया नाम दिया जाएगा। बाद में इस दल का नया नाम ‘हिन्दुस्तान सोश लिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ रखा गया। आजाद को इस दल का कमांडर इन-चीफ बनाया गया। इस दल के गठन के बाद कई ऐसी गतिविधियों को जन्म दिया गया सांडर्स की हत्या और असेंबली में बम कांड जैसी गतिविधियों की वजह से अंग्रेजी हुकूमत उनके पीछे पड़ गई । 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय की मौत हो गई. इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु ने उनकी मौत का बदला लेने का फैसला किया। इन लोगों ने 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स के दफ्तर को घेर लिया और राजगुरु ने सांडर्स पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई इस जुर्म में उनको फांसी की सजा सुनाई गई फांसी*
*की सजा से प्रभावित होकर भगत सिंह ने दिल्ली असेंबली में बम फोड़ने का निश्चय किया, जिसमें आजाद ने उनका साथ दिया। इन घटनाओं के बाद अंग्रेज सरकार ने इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत लगा दी और आरोप में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई इसके बाद चंद्र शेखर आजाद काफी आहत हुए*
*और उन्होंने भगत सिंह के साथ साथ अन्य क्रांतिकारी साथियों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। दल के लग भग सभी लोग गिरफ्तार हो चुके थे, लेकिन फिर भी काफी समय तक चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश सरकार को चकमा देते रहे और बचते रहे और आजाद ने ठान भी लिया था कि वो जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगे अंग्रेज सरकार* *से राजगुरु, भगतसिंह और सुखदेव की सजा को किसी तरह कम या उम्रकैद में बदलने के लिए चंद्रशेखर आजाद दिल्ली से इलाहाबाद पहुंचे। मुखबिरी के चलते हुए अंग्रेजी हुकूमत को इसकी भनक लग गई कि आजाद अल्फ्रेड पार्क में मौजूद हैं। उस पार्क को हजारों पुलिस वालों ने घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए कहा, मगर चंद्रशेखर आजाद आत्म समर्पण करने के बजाय चंद्रशेखर अकेले अंग्रेजों का सामना करने के बाद बुरी तरह से घायल हो गए। आजाद ने लड़ते हुए शहीद हो जाना ठीक समझा। इसके बाद आजाद ने 27 फरवरी 1931 को अपनी रिवाल्वर से ही अपनी बची हुई एक गोली से कनपटी में दाग कर अपनी प्राण त्याग दिए और भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम दर्ज कर हमेशा हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की निछावर करने वाले ऐसी सपूत को सभी देशवासियों की तरफ से सत सत नमन*
(इन बीर सपूतों के इतिहास को दोहराने की जरूरत इसलिए पड़ रही है कि जिन अंग्रेजों के खिलाफ इन सपूतों ने अपना सब कुछ निछावर कर दिया आज की युवा पीढ़ी इनको भूलकर अंग्रेजो की अंग्रेजी भाषा को महत्व ज्यादा दे रहे हैं)
शोध की मदद से पुनरावृति
जागेश्वर फौजी वरिष्ठ संवाददाता