नाथ मत का केन्द्र योग और तप है जबकि गुरमति ने सेवा को अपनाया है

– उ.प्र.पंजाबी अकादमी ने आयोजित की “गुरमति और नाथ मत तुलनात्मक विश्लेषण विषयक संगोष्ठी
लखनऊ 28 अगस्त। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी की ओर से “गुरमति और नाथ मत तुलनात्मक विश्लेषण विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन गुरुवार 28 अगस्त को अशोक मार्ग स्थित इन्दिरा भवन परिसर में किया गया। संगोष्ठी में संदेश दिया गया कि नाथ मत मुख्यत: योग और तपस्या की ओर उन्मुख रहा, वहीं गुरमति ने भक्ति, सेवा और समता के आदर्शों को अपनाया। संगोष्ठी के समापन पर अकादमी निदेशक ओम प्रकाश सिंह ने संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानों को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।
संगोष्ठी में वरिष्ठ पंजाबी विद्वान दविन्दर पाल सिंह बग्गा ने कहा कि नाथ संप्रदाय का विकास भारत की प्राचीन योग परम्पराओं से जुड़ा है जबकि गुरमति विचारधारा गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं पर आधारित एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन बनकर उभरी। नाथ मत मुख्यत: योग और तपस्या की ओर उन्मुख रहा, वहीं गुरमति ने भक्ति, सेवा और समता के आदर्शों को अपनाया। नाथ मत आत्म साक्षात्कार के लिए हठयोग और कुण्डलिनी जागरण को मार्ग मानता है, जबकि गुरमति में नाम सिमरन और गुरु की वाणी को आत्मा की मुक्ति का साधन बताया गया है।
वरिष्ठ पंजाबी विद्वान नरेन्द्र सिंह मोंगा ने कहा कि 15वीं शताब्दी में उदित गुरुनानक का ‘गुरुमत’ 9वीं शताब्दी में सृजित नाथमत के उत्तरोत्तर विकास का ही परिणाम था। तमाम समानताओं के बावजूद दोनों में भिन्नताएं भी विद्यमान थीं। नाथ मत एक आत्म केंद्रित त्यागमय, शरीर-साधना का मार्ग था। इसका लक्ष्य अपनी चेतना को संसार से अलग करके व्यक्तिगत मुक्ति प्राप्त करना है। इसके विपरीत गुरमति एक प्रभु-केंद्रित, गृहस्थ मार्गी, सेवा और सिमरन का पंथ है। इसका लक्ष्य अपने सभी के भले के लिए संसार में सक्रिय रहते हुए अहंकार को मिटाकर गुरु की कृपा से, उस सर्व-व्यापी, कृपालु कर्ता पुरुष में विलीन होना है।
नवयुग कन्या महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष मेजर मनमीत कौर सोढी ने कहा कि गुरमत्ति गुरु नानक देव जी से आरंभ हुआ, जिसका मूल उद्देश्य ईश्वर की भक्ति, मानवता की सेवा, समानता और नैतिक आचरण पर आधारित समाज का निर्माण करना है, गुरमति में स्वीकार किया गया है कि सच्चा योग संसार से भागना नहीं बल्कि प्रभु स्मरण करते हुए धर्मपूर्ण जीवन जीना है। नाथ मत मध्यकालीन भारत की एक महत्वपूर्ण साधन परंपरा है जिसकी नींव गोरखनाथ जी ने रखी थी। इसमें परम तत्व को योग और ध्यान से अनुभव करने की बात कही गई है।
वरिष्ठ विदुषी डॉ.रश्मि शील ने गुरमति की सामाजिक चेतना के संदर्भ में कहा कि गुरु नानक देव जी ने जातिवाद, ऊंच-नीच और धार्मिक आडम्बर का विरोध किया, वहीं नाथ योगी सामाजिक व्यवस्था से अलग रहकर साधना करते रहे। कार्यक्रम में अरविन्द नारायण मिश्र मीना सिंह, महेन्द्र प्रताप वर्मा, रवि यादव, अंजू सिंह उपस्थित रहीं।
– अरविन्द नारायण मिश्र