सरकारी विद्यालय और आत्मकथ्यांश
“निजी विद्यालयों में शोषण बहुत है।”
“कोई बात नहीं। अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाइए।”
“क्या सरकारी विद्यालय के विद्यार्थी सफल होते हैं?”
“मैं अपनी सफलता का श्रेय सरकारी विद्यालयों को ही देता हूं। मेरी प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई गांव के प्राथमिक पाठशाला अमवा बाजार में संपन्न हुई। मेरे घर के ठीक सामने जो प्राथमिक विद्यालय है उसमें तब भी पूरे मनोयोग से पढाई होती थी और अब भी। मेरे जीवन के मधुबन में स्वर-व्यंजन का स्वर यहीं से गूंजना शुरू हुआ। सुबह-सुबह मैं विद्यालय में सबसे पहले पहुंच जाता था और बोरा बिछाकर शांत वातावरण में पीपल के नीचे बैठकर पढ़ता था। यह वही पीपल का पेड़ है जो अपनी विशालता और पवित्रता के लिए पूजा जाता है, जिसे मेरे बाबा स्मृति शेष वंशराज चौरसिया जी ने लगाया था। इस प्राथमिक पाठशाला में घंटी के अनुसार पढ़ाई नहीं होती थी लेकिन पढ़ाई की घंटी जीवन के उपवन में आज भी गूंज रही है। मैंने अपनी किस्मत की कहानी कठिन परिश्रम से कलम-दवात से लकड़ी की चमकदार पटरी पर लिखी है।
कक्षा छठवीं से आठवीं तक की पढ़ाई भी खेत और गांव में स्थित सरकारी विद्यालय (महात्मा गौतम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नरकूटोला) में संपन्न हुई। प्रकृति गोद में स्थित इस विद्यालय में भी पढ़ाई लिखाई की सरिता अनवरत प्रवाहित होती थी और अब भी होती है। प्रतिकूल मौसम में दोपहर के पश्चात् अक्सर विद्यालय में विद्यार्थी नाम मात्र के बचते थे। तब हम पूज्य गुरुजन के पास अकेले में बैठकर पढ़ते थे और वह हमें स्नेह भाव से पढ़ाते थे। बूंद – बूंद से घड़ा भरता है। एक-एक दिन के परिश्रम से सफलता मिलती है। यदि पढ़ने-लिखने में रुचि हो तो कोई भी विद्यार्थी किसी भी विद्यालय में कहीं भी रहकर पढ़ सकता है और जीवन में आगे बढ़ सकता है। संघर्ष के बल पर वह सफलता अर्जित कर सकता है।
मैंने अपने साथियों के देखा-देखी में कक्षा नौवीं में पढ़ने हेतु एक निजी विद्यालय में नामांकन करा लिया और ट्यूशन भी करने लगा। अपने स्तर पर वहां भी पढ़ाई अच्छी ही होती थी लेकिन वहां के शिक्षकों से मेरा मन संतुष्ट नहीं रहता था। वहां मेरे जिज्ञासु प्रश्नों के उचित जवाब नहीं मिलते थे। चुंकि उस समय निजी विद्यालय सिर्फ विद्यालय हुआ करते थे; कॉपी, किताब, कपड़े और जूते की दुकान नहीं। वहां नकल के नाम पर सुविधा शुल्क की बात होती थी। मैंने सोचा, “जब हम कठिन परिश्रम करके पढ़ रहे हैं तो फिर नकल क्यों करें? नकल के नाम पर सुविधा शुल्क क्यों दें?”
ऊंची दुकान फीकी पकवान मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। किसी तरह निजी विद्यालय में एक वर्ष पढ़कर मैंने कक्षा दसवीं में पुनः उसी सरकारी विद्यालय में नामांकन करवा लिया। कक्षा दसवीं में मैंने सरकारी विद्यालय में पढ़कर विद्यालय को टॉप किया।
अभिभावक बड़ी उम्मीद से अपने बच्चों को विद्यालय में भेजते हैं। इसलिए शिक्षकों को पूरी ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा के साथ राष्ट्र हित में अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
कक्षा 11वीं और 12वीं की पढ़ाई जनता इंटर कॉलेज रामकोला में पूरी हुई। वहां के समस्त सम्माननीय शिक्षकगण ने जो शिक्षा एवं संस्कार का बीज मेरे जीवन के उपवन में बोया है उसके लिए मेरे मन में उनके प्रति विशेष सम्मान का भाव है और आजीवन रहेगा। आदरणीय घनश्याम तिवारी एवं राधे गोविन्द शाही जी से मैंने हिन्दी पढ़ी। वहां पर भी उस समय दोपहर के बाद गिने-चुने विद्यार्थी ही विद्यालय में बचते थे फिर भी पढ़ाई होती थी। मैं विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों के साथ भी हिन्दी पढ़ता था और अपने मानविकी वर्ग के कालांश में तो पढ़ता ही था। वहां पर भी कई बार मैं कक्षा में अकेला बचता था तो शिक्षकवृंद अकेले ही पढ़ाते थे लेकिन पढ़ाते अवश्य थे। पढ़ाई के दौरान मैंने हिंदी, अंग्रेजी और भोजपुरी में अनगिनत कविताएं भी रचीं। शिक्षकों ने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया और जीवन में प्रगति करते रहने का आशीर्वाद दिया।
सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई होती है क्योंकि सरकारी शिक्षक का बौद्धिक स्तर उच्च होता है। सफल शिक्षण हेतु शिक्षार्थियों एवं अभिभावकों के मन में शिक्षक एवं विद्यालय के प्रति सम्मान भाव होना चाहिए तथा शिक्षकों के मन में भी अपने विद्यार्थियों के प्रति स्नेह भाव अत्यावश्यक है। गुरु-शिष्य का संबंध पावन होता है।
मैंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत जैसे सरस विषयों से सरकारी कॉलेज (बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर) से बीए किया। उत्तम परीक्षा परिणाम के कारण मुझे स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। इसी दौरान मेरा प्रथम काव्य संग्रह ‘स्वर्ग’ प्रकाशित हुआ। हिन्दी विषय से मैंने एम ए किया। सौभाग्य से बीएड के लिए सरकारी कॉलेज श्री हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय वाराणसी मिल गया। कुल मिलाकर सरकारी विद्यालयों में पढ़कर मेरा जीवन खिल गया।
मैंने सदैव सादगी , सहजता एवं स्वाध्याय पर विशेष बल दिया है। स्वाध्याय ही सफलता का मूल मंत्र है। सफल इसलिए हूं क्योंकि मैं खुश हूं, प्रसन्न हूं, आनन्दित हूं, आह्लादित हूं,परिपूर्ण हूं। मुझे एक से अधिक सरकारी नौकरियां प्राप्त हुईं। मेरी सफलता का भावार्थ है ‘सरकारी विद्यालयों की सफलता’। सरकारी विद्यालयों में पढ़कर सरकारी विद्यालय में सरकारी नौकरी करना… यही मेरी ज़िन्दगी की सफलतम कहानी है।”
सुनील चौरसिया ‘सावन’