अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: लोकतंत्र की रीढ़ उमेश कुमार सिंह
डिजिटल युग में प्रेस की भूमिका और जिम्मेदारियां
अभिव्यक्ति की आज़ादी मानव समाज की प्रगति और लोकतंत्र की आत्मा मानी जाती है। यह न केवल व्यक्ति को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता देती है बल्कि समाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व भी सुनिश्चित करती है। प्रेस यानी मीडिया, इसी अभिव्यक्ति की सबसे अहम कड़ी है। विश्व के विभिन्न हिस्सों में तानाशाही और सत्ता के दमनकारी रवैये के कारण प्रेस की स्वतंत्रता हमेशा खतरे में रही है। प्रेस कर्मियों को दबाने और उनके कार्य में हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति दुनिया भर में लंबे समय से देखी जाती रही है।
भारत में जब तक ब्रिटिश राज था, तब तक प्रेस पर कड़े प्रतिबंध लागू थे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लगभग न के बराबर थी। यदि कोई पत्रकार या लेखक सरकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाता, तो उसे जेल में डाल दिया जाता या मार दिया जाता था। अंग्रेजों का मकसद था कि जनता तक सच्चाई न पहुंचे और वे अपनी सत्ता को बिना किसी विरोध के चलाते रहें।
हालांकि, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता को मान्यता दी गई। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिसमें प्रेस भी शामिल है। स्वतंत्र भारत में प्रेस ने अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी और समाज में बदलाव की आवाज बनने लगा।
भारत में प्रेस को भले ही संवैधानिक आज़ादी मिली हो, लेकिन समय-समय पर सरकारें और सत्ताएं इसे नियंत्रित करने का प्रयास करती रहीं। जैसे ही पत्रकारों ने सरकारों की नीतियों और फैसलों की आलोचना करनी शुरू की, वैसे ही उन पर दबाव बनाने और सेंसरशिप लागू करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। यह लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बन गया।
विश्व स्तर पर भी प्रेस स्वतंत्रता को लेकर आवाजें बुलंद होती रहीं। प्रेस की आज़ादी सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने गंभीर कदम उठाए। सबसे अहम पहल 3 मई 1991 को की गई जब यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाने की घोषणा की। इस दिन का उद्देश्य है सरकारों को प्रेस की स्वतंत्रता का सम्मान करने और उसे बनाए रखने की याद दिलाना, साथ ही लोगों में प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
1991 में अफ्रीका के विंडहोक शहर में एक ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें स्वतंत्र प्रेस के सिद्धांतों को रेखांकित किया गया। विंडहोक घोषणा ने वैश्विक स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक मजबूत नींव रखी। यह घोषणा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 19 पर आधारित थी, जिसमें कहा गया है:
“सभी को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है; इसमें बिना हस्तक्षेप के अपनी राय रखने और किसी भी माध्यम से सीमाओं की परवाह किए बिना जानकारी और विचार प्राप्त करने और देने की स्वतंत्रता शामिल है।”
पत्रकारों की सुरक्षा: एक गंभीर मसला
यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2020 के बीच लगभग 1200 से अधिक पत्रकारों की हत्या हुई। इनमें से लगभग 90% मामलों में अपराधी सजा से बच निकले। यह स्थिति लोकतंत्र और समाज के लिए अत्यंत चिंताजनक है। पत्रकार न केवल खबरों के वाहक होते हैं बल्कि समाज के सच को उजागर करने वाले प्रहरी भी होते हैं। उनके खिलाफ हमले लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करते हैं।
यूनेस्को और अन्य संगठनों ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए लगातार पहल की है। 2 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय पत्रकार सुरक्षा दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है ताकि दुनियाभर में पत्रकारों पर हो रहे अत्याचारों और अनसुलझे मामलों के खिलाफ आवाज उठाई जा सके। ‘द वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज पब्लिशर्स’ (वान-इफरा) जैसे संगठन प्रेस की आज़ादी और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वान-इफरा ने विश्व स्तर पर लगभग 18,000 से अधिक प्रकाशनों का प्रतिनिधित्व किया है और यूनेस्को व संयुक्त राष्ट्र को कई अहम सुझाव दिए हैं।
आज के डिजिटल युग में प्रेस की परिभाषा बदल रही है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ने खबरों के प्रसार को नई दिशा दी है। हालांकि, इसके साथ-साथ फेक न्यूज़ और गलत सूचनाओं की चुनौती भी बढ़ी है। ऐसे में प्रेस की जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो गई है कि वे सत्य, निष्पक्षता और पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस केवल पत्रकारों के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की असली ताकत तभी कायम रह सकती है जब प्रेस स्वतंत्र, निडर और निष्पक्ष रहे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रेस पर किसी भी प्रकार का अंकुश न लगे और पत्रकार सुरक्षित रह सकें।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं सहित, सभी पत्रकारों और अभिव्यक्ति के सच्चे प्रहरी को सलाम!

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