लोकतंत्र के चारों स्तंभों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन बिना किसी दबाव के स्वतंत्रता पूर्वक आम जनता की भलाई में करना समय की मांग-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
वैश्विक स्तरपर न्यायपालिकाओं के पर कतरने में नया अध्याय -जुड़ा पाकिस्तान में 26 वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित-न्याय व्यवस्था के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी
लोकतंत्र के चार स्तंभों विधायिका कार्यपालिका, न्यायपालिका व प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपने जिम्मेदारियों के निर्वहन में स्वतंत्रता ज़रूरी
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर दशकों से हर लोकतांत्रिक देश की नींव के चार स्तंभ विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका व मीडिया होते है, जिसपर उस देश की पूरी व्यवस्थाएं खड़ी होती है। हर स्तंभ पारदर्शिता से अपनी- अपनी जवाबदेही जवाबदारी व अपने कर्तव्य का निर्वहन सटीक रूप से करते आ रहे हैं, परंतु हम कुछ दशकों से देख रहे हैं कि कार्यपालिका का रुतबा बाकी के तीन स्तंभों से कुछ बढ़ता हुआ महसूस किया जा रहा है। हम देखते हैं कि कार्यपालिका यांनें जिसकी सत्ता होती है वह विधायिका में भी जुगाड़ जंतर से अनेक विधेयकों को पारित करवा लेते हैं, किसी ना किसी तरह मीडिया पर भी नियंत्रण हो जाता है और न्यायपालिका द्वारा पारित आदेश को नए अध्यादेश निकालकर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया जाता है, जो हम दिल्लीवाले केस सहित अनेको मामलों में देख चुके हैं, या फिर लोकतंत्र के दोनों सदनों में न्यायिक सुधार बिल पारित कर न्यायपालिका के पर कतरने व नकेल कसने का अधिकार भी सुरक्षित कर लिया जाता है। आज हम इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मीडिया के माध्यम से हमने देखे व सुने कि किस तरह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने आनन फानन में रविवार दिनांक 20 अक्टूबर 2024 को देर रात्रि 11.26 बजे 26 वाँ संविधान संशोधन विधेयक सदन में चर्चा के लिए रखा व लंबी चर्चा के बाद रविवार सुबह 5 बज़े यह बिल 225/336 मतों से पारित कर आनन फानन में राष्ट्रपति की साइन करा लिया और वह बिल अब कानून बन चुका है। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के ऊपर नकेल कसने के लिए किया गया है, जिसकी चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। बता दें ऐसा कानून इजराइल व भारत में ज्यूडिशल रिफॉर्म्स एक्ट के नाम से लाया गया था परंतु दोनों देशों की सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें खारिज कर दिया। यानें अब सवाल उठता है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका को अपने नियंत्रण में क्यों लेना चाहती है,यह गंभीर प्रश्न पूरी दुनियाँ में उठा हुआ है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,वैश्विक स्तरपर न्यायपालिकाओं के पर कतरने में नया अध्याय जुड़ा पाकिस्तान में 26 वां संविधान संशोधन विधेयक पारित,न्याय व्यवस्था केताबूत में आखिरी कील साबित होगी,व लोकतंत्र के चार स्तंभों न्यायपालिका कार्यपालिका विधायिका, प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपने कार्यों को निर्वहन करने में स्वतंत्रता ज़रूरी है।
साथियों बात अगर हम पाकिस्तान में सोमवार दिनांक 21 अक्टूबर 2024 सुबह 5 बजे 26 वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित कर राष्ट्रपति क़े हस्ताक्षर होने की करें तो पाकिस्तान की संसद ने विवादास्पद संविधान संशोधन विधेयक सदन में पारित कर दिया है, जिसके बाद वहां के चीफ जस्टिस का कार्यकाल 3 साल का हो जाएगा,इस विधेयक को पास कराने के लिए वहां सदन की बैठक रविवार-सोमवार की आधी रात को चली, जिसके बाद सोमवार की सुबह 5 बजे इस बिल पर मुहर लग गई। दरअसल पाकिस्तान ने अपना 26वां संविधान संशोधन किया है। इस विधेयक को पास कराने के लिए 336 सदस्यों वाले सदन में पक्ष में 225 वोट पड़े, जबकि सदन में विधेयक को पारित कराने के लिए केवल 224 वोटों की जरूरत थी।पाकिस्तान के अपर हाउस ने इसे 65-4 से पास कर दिया। सीनेट में इस बिल को पास कराने के लिए 64 वोटों की आवश्यकता थी। इसके बादपाकिस्तान के राष्ट्रपति ने विधेयक पर अपनी सहमति दे दी और उनके हस्ताक्षर के बाद ये कानून बन गया।मीडिया के हवाले से आई खबर में कहा गया है कि इस विधेयक को सदन के पटल पर कानून मंत्री ने रखा था।उन्होंने सीनेट में बिल पेश करते हुए कहा कि इस नए आयोग में मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश दो सीनेटर और दो नेशनल असेंबली सदस्य शामिल होंगे। जिनमें से प्रत्येक में एक मेंबर विपक्ष का होगा।इस विधेयक पर विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि पूरी कवायद का उद्देश्य, मौजूदा सीजेपी फैज ईसा कीसेवानिवृत्ति पर न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह को मुख्य न्यायाधीश बनने से रोकना है।बता दें कि पाकिस्तान पीटीआई और एसआईसी ने नेशनल असेंबली में इस संशोधन का विरोध किया। वहीं पीटीआई के समर्थन से बैठे 6 इंडिपेंडेंट सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया है।पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम इस बिल को पास कराने के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे थे, आखिरकार वो समय आ गया, जिसका हम लंबे समय से इंतजार कर रहे थे निर्दलीय उम्मीदवारों ने विधेयक का किया समर्थन।
साथियों बात अगर हम 26 वें संविधान संशोधन विधेयक को समझने की करें तो,अधिनियम 2024 को मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का अधिकार संसद के हाथ में देने के लिए लाया गया है। संशोधन पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल को तीन साल तक सीमित करता है। इससे पहले न्यायिक नियुक्तियों में योग्यता और अनुभव के आधार पर संभावित रूप से लंबे कार्यकाल की इजाजत मिलती थी। वहीं चीफ जस्टिस की नियुक्ति के लिए एक 12सदस्यीय आयोग की स्थापना की गई है। इस आयोग में वर्तमान मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जज, दो सीनेटर और नेशनल असेंबली के दो सदस्य शामिल होंगे, जिनमें विपक्ष का एक सदस्य भी शामिल है। संशोधन का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को कम करना है। इस संविधान संशोधन में जजों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए उन्हें नंबर भी मिलेंगे। इसके लिए एक प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली शुरू की गई है। पीटीआई नेता ने संशोधन को न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर घातक प्रहार करार दिया और बताया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार सरकार को देने से न्यायपालिका का राजनीतिकरण होगा।
साथियों बात अगर हम इज़राइल ज्यूडिशल रिफॉर्म बिल पारित होने व सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज़ करने की करें तो,जुलाई में सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिसे अब तर्कसंगतता विधेयक के नाम से जाना जाता है।इससे इजराइल के सर्वोच्च न्यायालय और निचली अदालतों के पास सरकार के उन निर्णयों को रद्द करने की शक्ति समाप्त हो गई, जिन्हें वे अत्यंत अनुचित मानते थे।इस कानून ने व्यापक आक्रोश और विभाजन पैदा कर दिया, जिसके कारण सैकड़ों हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर सुधारों को रद्द करने और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इस्तीफ़े की मांग की। आयोजकों ने कहा किसाप्ताहिक विरोध प्रदर्शन इज़रायल के इतिहास में सबसे बड़ा सड़क प्रदर्शन था।1 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट ऑफ जस्टिस के रूप में अपनी भूमिका में 8-7 मतोंसे इस विधेयकको खारिज कर दिया न्यायाधीशों ने 12-3 मतों से यह भी फैसला सुनाया कि न्यायालय के पास मूल कानूनों को पलटने का अधिकार है।
साथियों बात अगर हम भारत मेंज्यूडिशियल रिफॉर्म बिल पास करने व सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने की करें तो, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के ज्यूडिशियिल रिफॉर्म के प्रयास को यह कहते हुए झटका दिया था कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तब नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन को असंवैधानिक करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के फैसले में कलेक्टिव विजडम के सिद्धांत पर जोर दिया। इसका मतलब यह था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति का निर्णय केवल मुख्यन्यायाधीश पर निर्भर न होकर,सर्वोच्च न्यायालय के अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सामूहिक सहमति पर आधारित होना चाहिए। इस फैसले के तहत कॉलेजियम सिस्टम की स्थापना की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्चन्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। ये पांचों न्यायाधीश सामूहिक रूप से हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और प्रमोशन का निर्णय लेते हैं।केंद्र में सरकार और एनजेएसी का गठनवर्ष 2014 में लोकसभा के चुनाव हुए और 2014 में ही नैशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन एक्ट संसद से पारित करवा दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया और कॉलेजियम प्रणाली को बहाल रखा,और सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को कर दिया रद्द सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के लाए एनजेएसी एक्ट को असंवैधानिक करार दे दिया।
साथियों बात अगर हम लोकतंत्र के चार स्तंभों की करें तो (1)विधायिका-संसद,विधानसभाएं। इनका कार्यकानून बनाना है।(2) कार्यपालिका- मंत्रिपरिषद। इनका कार्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन कराना है।(3) न्यायपालिका- सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों के उच्च न्यायालय।इनका कार्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता की विवेचना करना है। कार्यपालिका द्वारा उन कानूनों के पालन करने में मनमानी को रोकना है।(4)प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया- इसका काम भी उपरोक्त तीनों स्तंभों के कार्यों पर नजर रखना हैलोकतंत्र में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जनमत। मीडिया जनमत निर्माण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य करता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि वैश्विक स्तरपर न्यायपालिकाओं के पर कतरने में नया अध्याय जुड़ा-पाकिस्तान में 26 वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित-न्याय व्यवस्था के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी।लोकतंत्र के चार स्तंभोंविधायिका कार्यपालिका,न्यायपालिका व प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपने जिम्मेदारियों के निर्वहन में स्वतंत्रता ज़रूरी।लोकतंत्र के चारों स्तंभों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन बिना किसी दबाव के स्वतंत्रता पूर्वक आम जनता की भलाई में करना समय की मांग है।