आवश्यक है त्योहारों के मूल उद्देश्य से स्वयं को जोड़ना डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

प्रत्येक त्योहार किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति का सन्देश लेकर आता है, जिसे समझे बिना उसे मनाना निरर्थक ही कहा जायेगा| विजयदशमी असत्य पर सत्य तथा बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देता है| अर्थात कोई भी व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अन्याय और अत्यचार के मार्ग का अनुसरण अन्ततोगत्वा उसे पतन के धरातल पर लाकर खड़ा कर देता है| अपने कर्तव्य के प्रति सदैव सजग रहकर न्याय, परोपकार और सदाचार के मार्ग का अनुसरण करने वाला साधारण व्यक्ति भी एक न एक दिन अति विशिष्ट बनकर सर्वत्र लोकप्रिय बन सकता है| परन्तु समाज की वर्तमान दशा और दिशा देखकर सहज ही यह कहा जा सकता है कि हम इन त्योहारों से कुछ भी सीखने की अपेक्षा विपरीत आचरणों को ही आत्मसात करने की ओर निरन्तर बढ़ रहे हैं| प्रति वर्ष रावण के लाखों पुतले जलाकर भी हम भ्रष्टाचार के रावण का बाल भी बांका नहीं कर पा रहे हैं| श्रीराम को हम अपना आदर्श भले ही मानते हों परन्तु जब चरित्र के अनुकरण की बात आती है तब हम सब रावण के मार्ग पर ही खड़े दिखाई देते हैं| अपने बच्चों को हम उच्च शिक्षित तो बनाना चाहते हैं परन्तु उन्हें सदाचरण के मार्ग पर ले जाने की कोई भी शिक्षा नीति हमारे पास नहीं है|
विजयदशमी के बाद एक और महत्वपूर्ण पर्व करवा चौथ आता है| यह त्योहार दाम्पत्य जीवन की तटस्थता एवं अखण्डता का द्योतक है| लेकिन पारिवारिक न्यायालयों में उमड़ती भीड़ इस त्योहार की मूल भावना को सर्वथा आहत करती है| जो दामपत्य जीवन आपसी समझ और विश्वास के धरातल पर खड़ा होना चाहिए उसे तीसरे पक्ष के माध्यम से भला कैसे सुदृढ़ बनाया जा सकता है| लाखों रुपये खर्च करके वैवाहिक सबन्ध जोड़ा जाता है| परन्तु विवाह के साथ ही विवाद का बीजारोपण भी अधिकांशतया देखने को मिलता है| ऐसी परिस्थितियां परिवार नामक संस्था के भविष्यगत अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाती हुई दिखाई देती हैं|
भारतवर्ष का सबसे बड़ा तथा समृद्ध त्योहार दीपावली है| इसे प्रकाश पर्व भी कहते हैं| जो वाह्य जगत को प्रकाशित करने से कहीं अधिक अन्तर्मन को प्रकाशित करने का सन्देश देता है| कटुता, दम्भ, पाखण्ड, छल, अन्याय और असत्य के मूल में व्याप्त अज्ञान रुपी अन्धकार को हटाकर ज्ञानरुपी प्रकाश से अन्तर्मन को प्रकाशित करना ही इस महापर्व का मूल उद्देश्य है| यह एक ऐसा पर्व है जो व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह से मनाया जाता है| इसलिए इसे सामाजिक और धार्मिक सौहार्द का पर्व भी कहा जाता है| दीपावली का पर्व मात्र भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिडाड और टोबैगो, नीदरलैण्ड, कनाडा, ब्रिटेन, सयुक्त अरब अमीरात तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हर्षोल्लास से मनाया जाता है| भारतीय मूल के लोगों की तादात विश्व के विभिन्न देशों में जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे-वैसे इस त्योहार का वैश्विक विस्तार हो रहा है| भारत की बहुसंख्यक आबादी दीपावली को विजय पर्व के रूप में मनाती है| ऐसी मान्यता है कि रावण का वध करके श्रीराम जब अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने ख़ुशी के उत्साह में घी के दिये जलाकर अमावस्या की काली रात को रोशनी से जगमग कर दिया था| तभी से कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा| कुछ विद्वानों का मानना है कि द्वापर युग में पाण्डव जब 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत करके लौटे थे तब हस्तिनापुरवासियों ने घी के दिये जलाकर प्रसन्नता व्यक्त की थी और तभी से दीपावली मनायी जाने लगी| किवदन्ती यह भी है कि कार्तिक मास की अमावस्या को भगवन विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह हुआ था| उसके बाद लक्ष्मी जी विष्णु जी के साथ बैकुण्ठ आ गयी थीं| इसी ख़ुशी में दीपावली का त्योहार होता है| इस दिन जो लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, वे पूरे वर्ष शारीरिक तथा आर्थिक कष्टों से दूर रहते हैं| उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी की जगह काली जी की पूजा की जाती है| यहाँ के लोग इसे काली पूजा का त्योहार कहते हैं| कुछ विद्वानों का मत है कि समुद्र मन्थन से इस दिन लक्ष्मी जी एवं आयुर्वेद के प्रणेता धन्वन्तरि जी का प्राकट्य हुआ था| वहीं कुछ विद्वान इस दिन को भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप के वध से भी जोड़ते हैं| श्रीकृष्ण के भक्तों का मानना है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था| जिसकी प्रसन्नता में ही अगले दिन अर्थात अमावस्या को लोगों न घी के दिये जलाये थे| अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास सन 1577 में दीपावली के ही दिन हुआ था तथा सिक्खों के छठवें गुरु हरगोविन्द सिंह को सन 1619 में दीपावली के दिन ही जेल से छोड़ा गया था| इन दोनों ही कारणों से सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए दीपावली का महत्व कई गुना अधिक बड़ा है| जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी को दीपावली के ही दिन मोक्ष प्राप्त हुआ था तथा उनके शिष्य गौतम गणधर को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी| अतएव जैन धर्मावलम्बियों के लिए दीपावली विशेष महत्व रखती है| दीपावली से पूर्व धनतेरस और छोटी दीपावली स्वच्छता एवं नवीन सृजन की द्योतक है| वहीँ प्रतिपदा को होने वाली गोबर्धन पूजा गौ संरक्षण का सन्देश देती है| जबकि भाई-दूज भाई-बहन के पवित्र और दृढ प्रेम की अभिव्यक्ति है| अतः आवश्यक है कि पर्वों को मानने और मनाने के साथ हम उनके मूल उद्देश्य से भी स्वयं को जोड़ने का प्रयास सतत रूप से करते रहें| तभी इन त्योहारों की सार्थकता सिद्ध होगी|