जम्मू-कश्मीर में महका लोकतंत्र: सरकार से बड़ी उम्मीदें -ललित गर्ग –
आखिरकार जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की धूप खिल ही गयी, पांच साल बाद केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर को निर्वाचित सरकार मिल गयी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के बाद केन्द्र शासित प्रदेश में यह पहली चुनी हुई सरकार है, जो नई उम्मीदों के नये दौर का आगाज है। उमर अब्दुल्ला पहले भी एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उनकी यह पारी हर तरह से खास है। नई सरकार के मुखिया के तौर पर उमर अब्दुल्ला के सामने आम लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कठिन चुनौती भी है। जनता ने विकास और शांति की आकांक्षा के साथ दिल खोलकर मतदान किया और अपनी उम्मीदों की सरकार चुनी है। घाटी में दशकों तक अब्दुल्ला परिवार के शासन के अनुभव के मद्देनजर घाटी के लोगों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर भरोसा जताया। तमाम ऊहापोह, सुरक्षा चुनौतियों तथा विदेशी दखल की तमाम आशंकाओं को निर्मूल करते हुए जम्मू-कश्मीर के जनमानस ने स्पष्ट सरकार बनाने का जनादेश दिया है। इस भूमिका तक पहुंचाने में भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास महत्वपूर्ण रहे हैं। कश्मीर में विकास, पर्यटन में भारी वृद्धि, शांति एवं सौहार्द का वातावरण बनना ऐसे ही प्रयासों की सार्थक निष्पत्ति है। नई सरकार को विकास की चल रही योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए आतंकमुक्त कश्मीर के संकल्प को मंजिल तक पहुंचाना होगा।
जम्मू एवं कश्मीर में लोकतांत्रिक सरकार का गठन अनेक दृष्टियों से न केवल राजनीतिक दशा-दिशा स्पष्ट करेगा बल्कि राज्य के उद्योग, पर्यटन, रोजगार, व्यापार, रक्षा, शांति आदि नीतियों तथा राज्य की पूरी जीवन शैली व भाईचारे की संस्कृति को प्रभावित करेगा। बहरहाल, ऐसे में नवनिर्वाचित सरकार और केंद्र का दायित्व है कि घाटी के लोगों ने जिस मजबूत लोकतंत्र की आकांक्षा जतायी है, उसे पूरा करने में भरपूर सहयोग करें। एक समय राज्य में मतदाता डर कर मतदान करने हेतु नहीं निकलते थे। मतदान का प्रतिशत बेहद कम रहता था। इस बार मतदाता निर्भीकता के साथ मतदान करने निकले। जनता ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के संकल्प को सकारात्मक समर्थन दिया है। यद्यपि लोकसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को कामयाबी नहीं मिल पायी थी, लेकिन जनता ने उन्हें राज्य में सरकार चलाने का स्पष्ट जनादेश दिया है। वहीं दूसरी ओर, इस भारी मतदान व स्पष्ट बहुमत का एक निष्कर्ष यह भी है कि लोग घाटी में शांति और सुकून, अमन एवं विकास, सौहार्द एवं सद्भावना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर प्रयास करना होगा कि इस क्षेत्र में शांति कायम होने के साथ विकास की नई बयार चले। जिसमें आम नागरिक खुद को सुरक्षित अनुभव करते हुए राष्ट्रीय विकास की धारा के साथ-साथ कदमताल कर सके।
निश्चित ही उमर के सामने चुनौतियां बड़ी हैं, आम लोगों को भी उनकी कठिनाइयों का अंदाजा है, वहीं खुद उमर ने भी व्यावहारिक नजरिया अपनाने का संकेत दिया है। चुनाव के दौरान अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर कड़ा रुख अपनाने वाले उमर ने चुनाव नतीजे आने के बाद इस मसले पर अपना रुख नरम कर लिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं, जिनमें इस मुद्दे पर जोर देने का किसी को कुछ फायदा होगा। उम्मीद बढ़ाने वाली बात यह भी है कि चुनावी कड़वाहट को पीछे छोड़ते हुए सभी पक्षों ने सहयोग का रुख अपनाने का संकेत दिया है। न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने नई सरकार के साथ मिलकर काम करने का संकेत दिया है बल्कि खुद उमर ने भी उपराज्यपाल से टकराव की बजाय आपसी समझ एवं सकारात्मकता से शासन करने की मंशा जतायी है, जो जहां जम्मू-कश्मीर की जनता के हित में है वही उमर की राजनीतिक सूझबूझ, परिपक्वता एवं विवेक का परिचायक है। चाहे उपमुख्यमंत्री पद जम्मू संभाग से चुने गए विधायक सुरिंदर चौधरी को स्थान देने की बात हो या कांग्रेस के लिए कैबिनेट में स्थान खाली रखने की, उमर अब्दुल्ला यह संकेत दे रहे हैं कि वह सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। कांग्रेस ने फिलहाल सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात कही है, लेकिन इसका कारण राज्य का दर्जा न मिलने को बताया है। उमर को हर कदम सावधानी से उठाने होंगे ताकि कोई भी स्थिति मंत्री पदों की संख्या का या इंडिया गठबंधन के घटक दलों में मतभेद एवं टकराव का न बन जाए। उमर के एक-एक फैसले पर कैबिनेट और उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र का मसला सामने आ सकता है। ऐसे में देखना होगा कि इन सबके बीच जम्मू-कश्मीर की नई सरकार उमर के नेतृत्व में कितने सधे कदमों से आगे बढ़ती है। क्योंकि सरकार को अपना दायित्व इस बात को ध्यान में रखकर निभाना होगा कि केंद्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल के पास व्यापक अधिकार हैं।
केंद्र शासित प्रदेश में एक दशक बाद हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का खासा उत्साह लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूती दे रहा है। कहीं न कहीं जनता ने स्पष्ट संदेश भी दिया कि वे हिंसा, अस्थिरता, आतंकवाद व अलगाववाद से छुटकारा चाहते हैं। जाहिरा तौर पर नई सरकार के सामने व्यापक जनाकांक्षाओं को पूर्ण करने की चुनौती होगी। इसलिये जम्मू-कश्मीर में नई सरकार को व्यापक जनाकांक्षाओं को पूर्ण करते हुए बदली हुई शासन व्यवस्था के साथ भी साम्य स्थापित करना है। इस बात का अहसास उमर अब्दुल्ला को भी है कि शासन चलाने में अब पहले जैसी स्वतंत्रता नहीं होगी। विश्वास किया जाना चाहिए कि कम से कम सीमावर्ती घाटी की संवेदनशीलता को देखते हुए इस केंद्रशासित प्रदेश में वैसा टकराव देखने को नहीं मिलेगा, जैसा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और एलजी के बीच देखने को मिलता रहा है। विश्वास करें कि नई सरकार को प्रशासनिक मामलों में नौकरशाही का पर्याप्त सहयोग मिलता रहेगा। नीति-नियंताओं को ध्यान रखना होगा कि सरकार चलाने में किसी भी तरह का अनावश्यक व्यवधान कालांतर अशांति का वाहक बनेगा। उम्मीद करें कि यथाशीघ्र पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की विसंगतियां दूर की जा सकेंगी।
राज्य ने साम्प्रदायिकता, आतंकवाद तथा अस्थिरता के जंगल में एक लम्बा सफर तय किया है। उसकी मानसिकता घायल है तथा जिस विश्वास के धरातल पर उसकी सोच ठहरी हुई थी, उसमें नई उम्मीदों को पंख लगे हैं। अलगाव से बाहर निकलने का नया विश्वास जगा है। पाकिस्तानी आतंकी सोच के नुकसान को प्रांत ने झेला और महसूस किया है। गुलाम कश्मीर के लोगों की दुर्दशा को देखा जा रहा है। इसीलिये इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर के लोग सक्रिय रूप से भाग लेकर और बड़ी संख्या में मतदान कर लोकतांत्रिक सरकार बनायी है, जो शांति और विकास के नये द्वार उद्घाटित करते हुए युवाओं के लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करे एवं आतंकमुक्ति का एक नया अध्याय रचे। आज सबकी आंखें एवं कान उमर की भविष्य के शासन एवं नीतियों पर टिकी है। निश्चित ही इस नई सरकार से उम्मीद जगी है कि उसके प्रयासों से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक विकास और शांति-समृद्धि-स्थिरता का नया दौर शुरू होगा। ऐसा होना ही नई सरकार एवं उमर के नेतृत्व की सार्थकता है।