संगठित व सशक्त हिंदू समाज ही भारत की सुरक्षा और स्वर्णिम भविष्य का आधार है — मृत्युंजय दीक्षित
विजयादशमी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्थापना के सौवें वर्ष में प्रवेश किया, जो राष्ट्र सेवा में समर्पित किसी भी सामाजिक संगठन के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक उपलब्धि है। यही कारण था कि इस वर्ष न केवल संघ के स्वयंसेवक और अनुषांगिक संगठन वरन पूरा मीडिया, राजनैतिक जगत और विश्व के कई देश भी इस अवसर पर होने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी के वार्षिक उद्बोधन को सुनने के लिए उत्सुक थे।भाषण के आरम्भ में डॉ भगवत ने विभिन्न उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्र अब उन्नति की सही दिशा में चल चुका है अतः मैं प्रमुख रूप से समाज के समक्ष खड़ी चुनौतियों की चर्चा करुंगा ।
डा. मोहन भागवत ने सर्वप्रथम बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का उल्लेख करते हुए हिंदुओं को चेताया। उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोसी बांग्लादेश में जो हुआ उसके कुछ तात्कालिक कारण हो सकते हैं लेकिन उस अराजकता के कारण हिंदुओं पर अत्याचार करने की परंपरा वहां पर दोहराई गई । उन्होंने कहा कि पहली बार वहां हिंदू एकजुट हुए और अपनी रक्षा के लिए सड़कों पर उतरे इससे कुछ बचाव हो पाया। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक क्रोध में आकर अत्याचार करने की यह कट्टरपंथी प्रवृत्ति रहेगी तब तक न केवल हिंदू अपितु सभी अल्पसंख्यक खतरे में रहेंगे। वर्तमान समय में पूरे बांग्लादेश के हिन्दुओं को सम्पूर्ण उदारता, मानवता तथा सद्भाव के पक्षधर सम्पूर्ण विश्व के हिंदुओं की सहायता की आवश्यकता है और विशेष रूप से भारत की सहायता की आवश्यकता है ।
डा. भागवत ने संभावित खतरे के प्रति सावधान करते हुए बताया कि बांग्लादेश, अब पाकिस्तान जो भारत का प्रत्यक्ष शत्रु है अब उसके साथ मैत्री करना चाहता है । बांग्लादेश से भारत में होने वाली अवैध घुसपैठ व उसके कारण उत्पन्न जनसंख्या असंतुलन गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है । देश में आपसी सद्भाव व देश की सुरक्षा पर भी इस अवैध घुसपैठ के कारण प्रश्न खड़ा हो रहा है। सरसंघचालक ने स्पष्ट कर दिया है कि हिन्दुओं का असंगठित रहना व दुर्बल रहना, यह दुष्टों के द्वारा अत्याचारों को निमंत्रण देना है। इसी सन्दर्भ में आगे बढ़ते हुए उन्होंने हिंदुओं पर बार- बार कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में होने वाले हमलों का सन्दर्भ लेकर कहा कि अभी गणेशोत्सव के दौरान पत्थरबाजी हुयी, हमारे दुर्गा पंडालों पर हमले हो रहे हैं, ये गहरी चिंता का विषय है यदि हिंदू समाज एकजुट होकर आगे आ जाए तो यह सब कुछ तत्काल बंद हो जायेगा। उन्होंने परोक्ष रूप से हिंदू समाज को अपने आयोजनों की ऐसी सुरक्षा करने का सन्देश दिया कि कोई भी उन पर हमला करने का दुस्साहस न कर सके।
डा भागवत ने पहली बार स्पष्ट रूप से डीप स्टेट, वोकिज्म, कल्चरल मार्क्सिस्म जैसे विषयों पर बात की जो भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित शत्रु हैं। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मूल्यों, परम्पराओं तथा जहां- जहां जो भी भद्र या मंगल माना जाता है उसका समूल उच्छेद करना, उसको दूषित करना इस समूह की कार्य प्रणाली का अंग है। समाज की मनोवृत्ति बनाने वाले तंत्र व संस्थानों जैसे शिक्षा तंत्र व शिक्षा संस्थान, संवाद माध्यम, बौद्धिक संवाद आदि को अपने प्रभाव में लाना तथा उनके द्वारा समाज का विचार, संस्कार तथा आस्था को नष्ट करना यह इस कार्यप्रणाली का प्रथम चरण होता है। समाज के किसी एक घटक को उसकी किसी वास्तविक या कृत्रिम रीति से उत्पन्न की गई विशिष्टता के आधार पर अलगाव के लिए प्रेरित किया जाता है।उनमें अन्यायग्रस्त की भावना उत्पन्न की जाती है। असंतोष को हवा देकर उस घटक को शेष समाज से अलग व्यवस्था के विरुद्ध उग्र बनाया जाता है। विविधता को अलगाव का रूप दिया जाता है ।
बहुदलीय प्रजातांत्रिक प्रणाली में सत्ता प्राप्त करने हेतु दलों की स्पर्धा चलती है। अगर समाज में विद्यमान छोटे स्वार्थ परस्पर सद्भावना अथवा राष्ट्र की एकता अखंडता से अधिक महत्वपूर्ण हो गये अथवा दलों की स्पर्धा में समाज की सद्भावना व राष्ट्र का गौरव व एकात्मता गौण माने गये तो ऐसी दलीय राजनीति में पर्यायी राजनीति के नाम पर अपनी उच्छेदक कार्यसूची को आगे बढ़ाना इनकी कार्यपद्धति है और हमारे देश में कुछ दल ऐसे हैं जो इनकी सहायता कर रहे हैं।उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि तथाकथित अरब स्प्रिंग से लेकर पड़ोस के बांग्लादेश में जो घटित हुआ वहां तक इस पद्धति को काम करते हुए देखा गया है। भारत में चारों ओर विशेषकर सीमावर्ती तथा जनजातीय जनसंख्या वाले प्रदेशों में इसी प्रकार के कुप्रयास हो रहे हैं ।
डा. मोहन भागवत ने हिंदू समाज को सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से संगठित व सशक्त बनने का संदेश दिया ताकि कोई उन पर हमला करने का साहस न कर सके। उनके संबोधन में यह भी संदेश था कि किस प्रकार आज ओटीटी आदि प्लेटफार्म भारतीय समाज में विकृतियां पैदा कर रहे हैं व हिंदू आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हमें उनका भी डटकर मुकाबला करना है। उन्होंने युवा पीढ़ी में जंगल में आग की तरह फैल रही नशे की आदत पर भी गहरी चिंता व्यक्त की है।
डॉ. मोहन भागवत जी ने इस वर्ष निराश हिंदुओं के मन में एक नई ऊर्जा भरने वाला संबोधन दिया है। उन्होंने अपने उद्बोधन में वह सब कुछ बोला जो एक आम हिंदू नागरिक के ह्रदय को आंदोलित करता है।
डॉ. मोहन भागवत जी का यह वार्षिक उद्बोधन भारतीय राजनीति के आगामी वर्षों की रूपरेखा बनाने वाला भी कहा जायेगा क्योंकि इस उद्बोधन पश्चात यह तो निर्धारित ओ गया है कि आगे आने वाले दिनों में विपक्ष की जातिवादी राजनीति का उत्तर संगठित हिंदू की राजनीति से और “हिंदू बटेंगे तो कटेंगे“ जैसे नारों से ही दिया जायेगा। डॉ भगवत से पूर्व हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार से हिंदू एकता सम्बन्धी वक्तव्य दिये हैं उससे राजनैतिक विश्लेषकों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा क्या जादू हो गया कि न केवल भाजपा वरन एनडीए के नेता भी संगठित हिंदू की आवाज बुलंद कर रहे हैं। हरियाणा का, “हिंदू बटेंगे तो कटेंगे” का नारा अब बिहार भी पहुंच गया है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बिहार विधानसभा का आगामी चुनाव भाजपा हिन्दू एकता के आधार पर ही लड़ेगी। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा 18 अक्टूबर से प्रारम्भ होने जा रही है।इस यात्रा का उद्देश्य हिंदु समुदाय को संगठित और सुरक्षित करना है। यह यात्रा मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से गुजरेगी और भागलपुर से आरम्भ होकर किशनगंज में समाप्त होगी।
विजयादशमी के दिन अपने वार्षिक उद्बोधन में डा. मोहन भागवत ने न केवल हिंदू समाज को वरन हिंदू विरोध की राजनीति करने वालों को भी स्पष्ट संदेश दिया है । इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने संघ के शताब्दी वर्ष में प्रवेश की बधाई देते हुए अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से सभी से डा.मोहन भागवत जी के भाषण को सुनने और पढ़ने की अपील करके भाजपा और संघ के बीच मतभेद के दुष्प्रचार को भी निष्प्रभावी बना दिया ।