बच्चों में कुपोषण और बाल विवाह पर समग्र उदासीनता चिंताजनक ?
निश्चित तौर पर बच्चे देश के भविष्य होते हैl यदि देश का भविष्य ही कुपोषित कमजोर और अविसित रहेगा, निर्बल रहेगा तो सशक्त विकसित भारत की कल्पना करना बेमानी होगाl भारत में बच्चों के भुखमरी,कुपोषण और बाल विवाह एक बड़े अभिशाप की तरह सामने आ रहे हैं, बच्चों के कुपोषण और बाल विवाह देश के लिए एक बड़ी कमजोर कड़ी साबित हो रही है। यह देश की एक प्रमुख समस्या भी हैl देश में कुपोषण से बच्चे यानी आने वाले कल के जिम्मेदार नागरिकों की हालत बहुत ज्यादा चिंताजनक हैl सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के 34 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में 33 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार है और इनमें 50% बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित होकर बीमारी को झेल रहे हैंl देश में भले ही जोर शोर से बाल दिवस हर साल मनाया जाता है और उसी पर करोड़ों खर्च कर दिया जाता हैl देश में एक महिला तथा बाल विकास मंत्रालय की स्थापना भी की गई है, पर बच्चों के कुपोषण पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका हैl ऐसी क्या वजह है की नौनिहालों के पोषण के लिए केंद्र या राज्य सरकार के पास इतने संसाधन होने के बावजूद धन मुहैया नहीं हो पाता हैl मलेरिया, टीबी और ना जाने अन्य कितनी बीमारियों पर भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अरबों रुपए खर्च कर दिए हैं, पर जो भारत की मुख्य रीढ़ की हड्डी है यानी कि आने वाले कल के नागरिक वर्तमान के बच्चे यदि कुपोषित हैं तो यह अत्यंत चिंतनीय सोचनीय तथा विचारणीय पहलू हैl
इसी तरह बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू होने के पश्चात भी बाल विवाह के प्रकरण हजारों की संख्या में सामने आए हैं। निश्चित तौर पर देश में शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण यह भयावह स्थिति बनी है। दक्षिण के राज्यों में जहां शिक्षा का प्रतिशत काफी अच्छा है पर बाल विवाह के मामले में दक्षिण के राज्य कर्नाटक तथा तमिलनाडु शीर्ष पर मौजूद हैं यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। चिंताजनक लड़कियों के मामले में और ज्यादा है है क्योकि उनका भविष्य उनकी शिक्षा दीक्षा उनका शारीरिक विकास सब कुछ बाल विवाह से अवरुद्ध हो जाता है। बाल विवाह को रोकने के लिए समस्त रूप से प्रयास किए जाने चाहिए इस विषय में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बाल विवाह रोकने पर और उनके संरक्षण पर काफी प्रयास काफी प्रयास किया है। उनकी जानकारी के अनुसार देश में बाल विवाह तथा लैंगिक मतभेद एक चिंताजनक बड़ा पहलू है जिसे हर संभव प्रयास कर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और इसे केवल सरकारी प्रयासों पर छोड़ देना ना काफी है इसे सामाजिक आंदोलन के रूप में लेकर शिक्षा तथा जागरूकता को भी काफी बढ़ावा देना होगा। इसी तरह देश में कुपोषण के मामले में सरकारी एजेंसियों द्वारा एक आर,टी,आई के जवाब में बताया गया कि 34 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों संकलित आंकड़ों के मुताबिक 34 लाख बच्चे कुपोषित पाए गए हैंl इनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र बिहार गुजरात और मध्यप्रदेश हैl विगत दिनों करोना संक्रमण के कारण भी बच्चे कुपोषित हुए हैं और आने वाले कल के दिन में भी और बच्चों के कुपोषण कथा मृत्यु की आशंका बढ़ गई हैl सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 18 लाख बच्चे बहुत ज्यादा कुपोषित है एवं शेष 16लाख बच्चे अल्प कुपोषित हैंl जब अरबों रुपए अन्य बीमारियों के संक्रमण में लगाए जा सकते हैं तो एक अभियान के तहत बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए भी मैराथन प्रयास किए जाने चाहिए ।जिससे बच्चे तो कम से कम कुपोषित ना हो वैसे भारत कुपोषण के मामले में वैश्विक स्तर पर बांग्लादेश तथा पाकिस्तान से भी पीछे है उसका नंबर 101वां है, ऐसे हालात में महिला तथा बाल विकास को महिलाओं तथा बच्चों के लिए ही एक विशेष अभियान चलाकर उन्हें कुपोषित होने से बचाना होगाl पोषण ट्रैकर के हवाले से बताया गया कि सिर्फ महाराष्ट्र में ही कुपोषित बच्चों की संख्या छह लाख दर्ज की गई है जिनमें 1,57 लाख बच्चे अल्प कुपोषित तथा 4,58 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। दूसरे नंबर पर बिहार प्रदेश आता है जहां 5लाख कुपोषित बच्चे और तीसरे नंबर पर गुजरात प्रदेश होता है जहां 3:30 लाख बच्चे कुपोषित हैंl महाराष्ट्र बिहार गुजरात और मध्य प्रदेश बहुत सक्षम और देश के बड़े राज्य हैं, यहां पर स्वास्थ्य विभाग पर अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं, फिर ऐसी क्या वजह है कि बच्चों के कुपोषण की दर इतनी ज्यादा तथा चिंताजनक हो गई हैl कुपोषित बच्चे भी बड़े होते हैं तो वह कई बीमारियों को लेकर धीरे-धीरे बढ़ते हैं और इससे उनकी लंबाई तथा स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है देश के 34% कुपोषित बच्चों का कद औसत कद से बहुत कम हो जाता हैl 21% बच्चे जो कुपोषण के कारण यदि वह बच भी जाते हैं तो उनका वजन अत्यंत कम हो जाता हैl
ऐसे कम लंबाई तथा कम वजन के बेचारे बच्चे देश का क्या भविष्य बना पाएंगे या देश में अपना योगदान क्या दे पाएंगे। इसीलिए भारत सरकार राज्य सरकारों को कम से कम बच्चों की तरफ तो ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता होगीl वैश्विक भूख सूचकांक( ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के आंकड़ों के हिसाब से 2021 में भारत 116 देशों में 101 वें स्थान पर पहुंच गया है इस मामले में वह अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल से काफी पीछे हैl इस मामले में भारत 2020 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार 94 वें स्थान में था, और आज की स्थिति में 101 वे स्थान में पहुंच गया है। इसका सीधा सीधा मतलब है कि हर वर्ष कुपोषण से शिकार बच्चों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। कुपोषण के मामले में भारत की राजधानी दिल्ली भी पीछे नहीं है दिल्ली प्रदेश की स्थिति भी चिंताजनक है अधिकारी और मंत्री भले बड़े-बड़े दावे करने में पीछे नहीं हटते हैं पर बच्चों की स्थिति चिंताजनक है,दिल्ली में ही 2लाख बच्चे कुपोषित हैं, आंध्र प्रदेश में 2,70लाख बच्चे कुपोषित हैं, कर्नाटक में 2,5 लाख बच्चे उत्तर प्रदेश में 19लाख बच्चे,तमिलनाडु में 1,80लाख ,असम में 1,80लाख और तेलंगाना में 1,60 लाख बच्चे कुपोषण की स्थिति में जी रहे हैं। इस देश में जहां अरबों रुपए सरकार के 40 से ज्यादा विभागों में सालाना खर्च किए जा रहे हैं, तो यह स्वास्थ्य विभाग में विशेष तौर पर बच्चों के लिए खर्च करने रिसर्च करने और उन पर विशेष ध्यान देने में कोताही क्यों बरती जा रही है। यह तथ्य न सिर्फ चिंतनीय है बल्कि स्वास्थ विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी महिला तथा बालकों के विकास के लिए विशेष अभियान चलाकर उनके स्वास्थ्य की रक्षा हेतु निर्देशित किया है। वैश्विक आंकड़े भी यही बताते हैं कि बच्चों को जो कि किसी भी देश का भविष्य होते हैं कुपोषण से हर तरह से सुरक्षित किया जाना सुनिश्चित करना होगा ,अन्यथा ये कुपोषित बच्चे ही आगे चलकर देश के नागरिक नागरिक बनेंगे। ऐसे में आप स्थिति की कल्पना कर सकते हैं
देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए बच्चों के कुपोषण की दर जरूर कम है, लेकिन हर साल इनके कुपोषण की दर की वृद्धि चिंताजनक परिणाम देने वाली ना हो इस पर हम सबको ध्यान देना होगा।
संजीव ठाकुर