बेहतर दुनिया बनाने के लिये मन को स्वस्थ करना जरूरी – ललित गर्ग-
मन की स्वस्थता शरीर की स्वस्थता से भी ज्यादा जरूरी है, क्योंकि जीवन की पूर्णता, सार्थकता एवं सफलता मानसिक स्वास्थ्य पर ही निर्भर है। मन से स्वस्थ व्यक्ति ही दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति हो सकता है। मन स्वस्थ रहे एवं आगे से आगे मानसिक स्वास्थ्य बढ़ता जाये, इसी उद्देश्य से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर साल 10 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। यह दिवस मानसिक स्वास्थ्य पर प्रकाश डालने, मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने वाले लोगों का समर्थन करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिवस का महत्व मानसिक स्वास्थ्य को वैश्विक प्राथमिकता बनाने के अपने मिशन में निहित है। यह दिन मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पहल को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2024 के लिए थीम ‘कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य’ की घोषणा की है। मानसिक स्वास्थ्य मानसिक तंदुरुस्ती की एक ऐसी स्थिति है जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, अपनी क्षमताओं को पहचानने, अच्छी तरह से सीखने और काम करने तथा अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाती है। यह स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती का एक अभिन्न अंग है जो निर्णय लेने, संबंध बनाने और जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे आकार देने की हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक क्षमताओं को रेखांकित करता है।
सुरक्षित, मनोरम, हास्यवर्द्धक, भाररहित, सहायक कार्य वातावरण मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में सुरक्षात्मक भूमिका निभाते हैं। हालाँकि भेदभाव, उत्पीड़न, असुरक्षित और खराब कार्य स्थितियों जैसी अस्वस्थ स्थितियाँ मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकती हैं। ये चुनौतियाँ जीवन की समग्र गुणवत्ता, कार्य भागीदारी और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को ताजा करने और एक स्वस्थ और खुशहाल कार्य वातावरण बनाने की ज्यादा अपेक्षा है। शोध के अनुसार, 6 व्यक्तियों में से 1 व्यक्ति कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करता है और हर साल 12 बिलियन कार्य दिवस अवसाद, तनाव और चिंता के कारण बर्बाद हो जाते हैं। देश में कार्यस्थलों में बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता की स्पष्ट आवश्यकता है, जिससे न केवल व्यक्ति को बल्कि संगठन को भी लाभ होगा। वास्तव में, जो कर्मचारी खुश रहते हैं वे 13 प्रतिशत अधिक उत्पादक होते हैं, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करना व्यावसायिक रूप से समझदारी है। मानसिक स्वास्थ्य व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकता है। जैसे शरीर की सफाई दिन में कई बार आवश्यक है, वैसे ही मन की सफाई कई बार होनी चाहिए। मिल या अन्य औद्योगिक ईकाइयों में काम करने वालों का कपड़ा थोड़ा-थोड़ा करके शाम तक खराब हो जाता है, वैसे ही मन भी कार्यस्थलों पर तरह-तरह के संकटों, तनावों एवं परेशानियों से खराब होता है। इसके लिये लंबी, गहरी सांस से मानसिक स्वास्थ्य की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। मन से लड़े नहीं, बल्कि उसे समझाएं। प्रमोदभाव-गुणात्मक दृष्टि का विकास करें। मन को वॉचमैन बनाकर रखिये। क्योंकि जीने का वास्तविक अर्थ है हर पल स्वयं के द्वारा स्वयं का निरीक्षण। देखना है कि मन कब राग-द्वेष, तनाव, अवसाद, विकास एवं कुंठाग्रस्त हो रहा है।
कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है। कार्यस्थल पर बढ़ते तनाव और उससे जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ, नियोक्ताओं के लिए अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को पहचानना और उसे प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। अध्ययनों से पता चला है कि कार्यस्थल पर ज्यादा से ज्यादा कर्मचारी दबाव और तनाव महसूस कर रहे हैं और इसकी संख्या बढ़ती जा रही है। 55 प्रतिशत कर्मचारियों को लगता है कि उनका काम ज्यादा तीव्र और मांग वाला होता जा रहा है। इसके अलावा, शोध से पता चलता है कि ब्रिटेन के पाँच में से एक कर्मचारी ने कार्यस्थल पर तनाव और दबाव को प्रबंधित करने में असमर्थता महसूस की। लगभग ऐसी ही स्थितियां भारत में भी देखने को मिल रही है। भारी कार्यभार, तंग समय सीमा और सहायता की कमी जैसे तनाव कर्मचारियों में चिंता, तनाव, अवसाद और बर्नआउट का कारण बन सकते हैं। कई कर्मचारी कमजोर समझे जाने, संभावित रूप से अपनी नौकरी खोने या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी परेशानियों के कारण मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से डरते हैं। नियोक्ता अपने कर्मचारियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की आम बात को तेजी से पहचान रहे हैं और कर्मचारियों को उनके मानसिक स्वास्थ्य को समझने और प्रबंधित करने में मदद करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज के आँकड़ों के अनुसार, ज्ञान की कमी, मानसिक बीमारी के कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों की वजह से 80 प्रतिशत से अधिक लोगों की देखभाल सेवाओं तक पहुँच नहीं है। वर्ष 2012-2030 के दौरान मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को प्रायः कलंकित किया जाता है और गलत समझा जाता है। कई व्यक्ति एवं परिवार सामाजिक भेदभाव के डर और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मदद लेने से झिझकते हैं। स्त्रियों एवं पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य में असमानताओं में उनके लैंगिक भिन्नताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में महिलाओं को अवसाद, चिंता और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है तथा उनके पास मदद मांगने हेतु स्वायत्तता अक्सर सीमित होती है। गरीबी और आर्थिक असमानता मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वृद्धि में योगदान देती है। वित्तीय अस्थिरता के चलते तनाव और शैक्षिक अवसरों की सीमितता भी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती है।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य के समान रूप से महत्वपूर्ण घटक हैं। उदाहरण के लिए, अवसाद कई प्रकार की शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं, विशेष रूप से मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी दीर्घकालिक स्थितियों के जोखिम को बढ़ाता है। इसी तरह, पुरानी स्थितियों की उपस्थिति मानसिक बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकती है। प्रतिकूल बचपन के अनुभव, जैसे आघात या दुर्व्यवहार का इतिहास उदाहरण के लिए, बाल दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न, हिंसा देखना, आदि। अन्य चल रही दीर्घकालिक चिकित्सा स्थितियों से संबंधित अनुभव, जैसे कि दर्दनाक मस्तिष्क की चोट, कैंसर, या मधुमेह। मस्तिष्क में जैविक कारक या रासायनिक असंतुलन, शराब या नशीली दवाओं का उपयोग, अकेलेपन या अलगाव की भावना होना आदि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। मन को बीमार करने के ये कुछ कारण है। मन हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है। मन अच्छा है तो मानव अच्छा है। मन बुरा है तो मानव बुरा है। हम दुनिया से भाग सकते हैं, उसे वश में कर सकते हैं, परन्तु मन से भागना और उसे वश में करना कठिन है। मन की सरलता सुख है और उसकी कुटिलता दुख है। मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति मन को धैर्य के साथ, आत्मीयता के साथ समझे, उसे शांत करें। मन को सीरियस रोगी न बनायें। बाहरी प्रदूषण को मिटाने का प्रयास प्रशासन कर सकता है, किन्तु मन के प्रदूषण को मन का शासन, खुद पर खुद का शासन ही मिटा सकता है।
भारत में वृद्धों की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि को देखते हुए उनके लिये बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। अकेलापन, अवसाद और मनोभ्रंश अधिक उम्र के वयस्कों के बीच आम चिंताएँ हैं। प्राकृतिक आपदाओं तथा अन्य दर्दनाक घटनाओं का मानसिक स्वास्थ्य पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है। भारत बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के प्रति काफी संवेदनशील है, इसके कारण मानसिक आघात तथा अभिघात-उपरांत तनाव विकार हो सकता है। विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में अधिक मानसिक स्वास्थ्य क्लीनिक और सुविधाओं के निर्माण में निवेश करना चाहिये। मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं सहित अधिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना और उनकी भर्ती करना जरूरी है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विषमता को पाटने तथा पहुँच बढ़ाने के लिये टेलीमेडिसिन एवं ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना चाहिये।