महात्मा गांधी,लालबहादुर शास्त्री के साथ महाशय मसुरियादीन पासी का जन्मोत्सव पासी समाज के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ मनाया
उपदेश टाइम्स
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,पूर्व प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री जी के साथ महाशय मसुरियादीन पासी का जन्मोत्सव पासी समाज के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ जगह जगह मनाया।
आज़ाद भारत में अंग्रेज़ों द्वारा लगाए गए जरायम पेशा कानून को हटवा कर 31अगस्त 1952 से सम्मान पूर्वक जीने की आज़ादी दिलाने वाले महान व्यक्तित्व के धनी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,संविधान सभा के सदस्य और 4 बार सांसद रहे महाशय बापू मसुरियादीन पासी जी को आज पूरे देश ने उनके अप्रतिम योगदान के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व पूर्व प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री के साथ नमन किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश की सामाजिक,आर्थिक स्थिति पर दृष्टिपात किया जाए तो बड़ी आसानी से देखा जा सकता है कि ज़रायम पेशा अधिनियम का काला क़ानून से पीड़ित जातियों की आर्थिक दशा बड़ी दयनीय थी, लोगों के पास न रहने के लिए ठीक से आवास था, न खाने के लिए भोजन और न पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे, ब्रिटिश सरकार ने इनका सब कुछ छीन कर भिखारी बना डाला था। मंथन करने का विषय यह है कि एक समय इस देश पर शासन कर चुकी पासी जाति की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक दशा इतनी ख़राब हो गयी कि वह जंगल में रहने और जंगली जानवरों के मांस पर जीवनयापन करने को बाध्य हो गयी। आगे यह पहचान बनी की ये आदिवासियों की श्रेणी में रख दिए गए, ज़र ज़मीन सब इनका सरकार द्वारा ज़ब्त कर लिया गया। अंत में सरकार ने इन्हें सन 1935 में तैयार की गयी अनुसूचित जाति एवं जनजाति की सूची में शामिल कर दलित पीड़ित घोषित कर दिया। एक समय ऐसा भी था ज़ब पासी राजा हुआ करता था, और एक समय ऐसा आया ज़ब पासी समाज राजा से भिखारी हो गया। इस राजा से रंक बनने की कहानी की समीक्षा की जाए तो जो तथ्य निकल कर सामने आते हैं कि क्या सरकार की नज़र में ये पासी लोग ही ज़रायम पेशा के लायक थे…? ऐसा नहीं था कि आज़ादी की लड़ाई में बहुत सारी जातियों ने विद्रोह नही किया था, लेकिन पासी को ही काले क़ानून के द्वारा नेस्तनाबूत क्यों किया गया…?? इसका साफ़ साफ़ कारण था कि यह शासक जाति रह चुकी थी, जो समझौता करने को तैयार नहीं थी, इसलिए ब्रिटिश हुकूमत ने ही नहीं, इस देश के भीतरी दलाल भी पासी समाज के विरोधी थे जो नहीं चाहते थे कि पासी समाज पुनः उभर कर खड़ा हो जाए और सत्ता का भविष्य में दावेदार बन जाए, इसलिए अंग्रेज़ों के दलालों, सेठ, साहूकारों ज़मीनदारों ने पासी की हस्ती को अंग्रेज़ों से मिल कर मिट्टी में मिलाने का काम किया था। देश की गुलामी से लेकर आज़ादी के बाद तक बहुत सी जातियां अंग्रेज़ों की दलाली करती रही और अपनी स्थिति मज़बूत बनाए रखी जो बाद में देश चलाने के लिए विधायक सांसद मंत्री बन कर देश पर राज करने लगे और जो देश के लिए संघर्ष किए उन्हें दलित, वंचित, ग़रीब कह कर एवं उन्हें आयोग्य घोषित कर ख़ुद को काबिल बताने लगे हैं।
200 से अधिक स्वाभिमानी और विद्रोही जन जातियों को आज़ाद भारत में अंग्रेज़ों द्वारा लगाए गए जरायम पेशा कानून को हटवा कर 31अगस्त 1952 से सम्मान पूर्वक जीने की आज़ादी दिलाने वाले महान व्यक्तित्व के धनी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,संविधान सभा के सदस्य और 4 बार सांसद रहे महाशय मसुरियादीन जी को आज पूरा देश उनके अप्रतिम योगदान के लिए देशभक्त समुदाय नमन करता है।