भारत-रूस मित्रता को जीवंतता देने का सार्थक प्रयास – ललित गर्ग –
भारत-रूस की मैत्री को नये आयाम देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्रपति पूतिन ने न केवल मैत्री के धागों एवं द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती दी है, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को नये शिखर देने का प्रयास किया है। उनकी यह यात्रा दोनों देशों के लिये एक नए सोच के साथ नये सफर का आगाज है। एक ऐसे समय में, जबकि यूक्रेन-रूस युद्ध को पश्चिमी देशों के विरोध के कारण रूस दुनिया में अलग-थलग है, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में पहले विदेश यात्रा के लिये रूस का चयन करके जता दिया है कि भारत-रूस की मैत्री अक्षुण्ण है और किसी भी तरह के दुनिया के दबाव में यह दोस्ती कमजोर नहीं पड़ने वाली है। भारत ने जहां मैत्री को प्रगाढ़ बनाने की दिशा में उल्लेखनीय उपक्रम किये हैं, वहीं अपने मित्र देश को युुद्ध के खिलाफ और शांति के पक्ष में अपना स्पष्ट रुख भी जताया है। मोदी की इस यात्रा की एक बड़ी निष्पत्ति यह है कि रूस में अब दो नये वाणिज्यिक दूतावास खुलने जा रहे हैं, जिससे हमारी आर्थिक गतिविधियां तेजी से एवं ज्यादा बढ़ेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस रूस यात्रा को लेकर पश्चिमी देशों ने विरोध जताया है। लेकिन प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भारत के लिए रूस की मैत्री बहुत महत्वपूर्ण है। भारत अपने मैत्री-मूल्यों को किसी भी दबाव में कमतर नहीं होने देगा। भले ही यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस यात्रा पर अपनी निराशा जाहिर करते हुए इसे शांति प्रयासों को झटका तक बता चुके हो या अमेरिका ने भी यात्रा को लेकर अपनी चिंता जता दी हो। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अपनी युद्ध विरोधी सोच के चलते ही यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस नहीं गए थे। दोनों देशों के बीच होने वाली सालाना द्विपक्षीय शिखर बैठक भी 2022 के बाद से नहीं हो पाई थी। इससे रूस के कुछ हलकों में यह धारणा बनने लगी थी कि भारत अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रभाव में रूस से दूरी बनाए रखना चाहता है। दुनिया में बन रही इस नई धारणा को तोड़ना जरूरी था, इसी दृष्टि से इस यात्रा के पीछे जहां द्विपक्षीय रिश्तों को संदेहों और अविश्वासों से मुक्त करने का ध्येय था, वहीं अंतरराष्ट्रीय हलकों में यह स्पष्ट संदेश भेजना था कि भारत को किसी तरह के दबाव के जरिए इस या उस पक्ष में झुकाना संभव नहीं है।
खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी राष्ट्रपति पूतिन के साथ बातचीत में इसका जिक्र किया कि उनके रूस आने पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं। दुनिया भर में इस यात्रा को गहरी उत्सुकता से देखा जा रहा है। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय हालात को ध्यान में रखें तो यह कोई अचरज वाली बात भी नहीं है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का जोर इस बात पर रहा है कि भारत रूस से अपनी करीबी खत्म करे। भारत अब एक स्वतंत्र ताकत है, दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, बड़े शक्तिशाली देशों के लिये भी भारत एक बाजार है। इसलिये भारत किसी भी दबाव में न आते हुए शुरू से ही यह स्पष्ट कर रखा है कि वह अपने राष्ट्रहित पर आधारित स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम रहेगा। रूस समर्थकों ने भले ही यह दर्शाना चाहा हो कि मोदी की यात्रा से भारत ने पश्चिम को चुनौती दी है और इससे पश्चिमी देश ‘ईर्ष्या से जल रहे हैं’, परंतु असल में भारत ऐसा कोई मंतव्य नहीं रखता है।
यह यात्रा अनेक कारणों एवं दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण रही, यात्रा के दौरान दोनों देशों में सहयोग बढ़ाने के समझौते तो हुए ही, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मित्र राष्ट्र को मै़त्रीपूर्ण सलाह देते हुए पूरी बेबाकी से कहा, ‘युद्ध के मैदान से कोई हल नहीं निकलता।’ यह प्रधानमंत्री मोदी का वैसा ही बयान है जैसा दो साल पहले समरकंद में पूतिन से बातचीत के दौरान उन्होंने दिया था कि ‘यह युद्ध का दौर नहीं है’। असल में भारत हमेशा से शांति के उजालों एवं युद्ध के अंधेरों से मुक्ति का ही समर्थक रहा है। भारत की स्पष्ट मान्यता है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। भारत नेे बम-बंदूक के बजाय शांति-वार्ता के जरिये समाधान की बात दोहराई। मोदी ने साहस एवं निर्भयता से पुतिन कोे दो टूक कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं। चूंकि भारतीय प्रधानमंत्री की मास्को यात्रा के मौके पर ही रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव में बच्चों के अस्पताल को भी निशाना बनाया, इसलिए उन्होंने बिना किसी संकोच यह भी कह दिया कि युद्ध या संघर्ष अथवा आतंकी हमलों में जब मासूम बच्चों की मौत होती है तो हृदय छलनी हो जाता है। देखना यह है कि यूक्रेन युद्ध पर भारतीय प्रधानमंत्री की फिर से खरी बात पर रूसी राष्ट्रपति कितना ध्यान देते हैं, लेकिन भारत को रूस के साथ अपनी मित्रता जारी रखते हुए यह स्पष्ट करते रहना होगा कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को यथाशीघ्र समाप्त होते हुए देखना चाहता है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व शांति के भी हित में है। इसी के साथ भारत ने अपने मित्र देश को अपनी तकलीफ को साझा करते हुए यह एहसास दिलाने की भी कोशिश की गई कि चीन के साथ उसकी नजदीकी परोक्ष रूप से पाकिस्तान को उत्साहित करती है, जो भारतीय जमीन पर आतंकी गतिविधियों को खाद-पानी मुहैया कराने का काम करता है।
रूस भारत के सहयोग के लिये तत्पर रहता है, इसबार भी यह खबर भी सुकून देने वाली है कि रूस ने भारत के आग्रह पर न केवल रूसी सेना के सपोर्ट स्टाफ के रूप में भारतीयों की नियुक्ति रोकना स्वीकार कर लिया है बल्कि नियुक्त किए जा चुके युवाओं को स्वदेश भेजने पर भी मान गया है। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा सफल कूटनीति के एक उत्तम उदाहरण के रूप में याद रखी जाएगी। भारतीय हितों की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्व मानवता की बात करना इसी रणनीति का हिस्सा था। अन्य पहलू है, इस द्विपक्षीय रिश्ते में कौन-कौन से नए क्षेत्र शामिल किए जा सकते हैं, ताकि यह संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंच सके। विज्ञान-प्रौद्योगिकी और ‘पीपुल-टु-पीपुल कॉन्टैक्ट’ यानी आम लोगों के स्तर पर आपसी संबंध को आगे बढ़ाने पर रजामंदी को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से आने वाली दिक्कतों को दूर करना। भुगतान की टिकाऊ व्यवस्था पर जोर इसकी एक बानगी है। अच्छी बात यह भी रही कि ईंधन के मामले में भारत को स्थिरता प्रदान करने में रूसी योगदान की प्रधानमंत्री मोदी ने खुलकर सराहना की, जो उचित भी था, क्योंकि अब हम खाड़ी देशों के बजाय सबसे अधिक तेल रूस से ही आयात करने लगे हैं।
भारत-रूस की मैत्री का व्यापक महत्व है। यह पुराना मित्र देश का भारत की ताकत रहा है, मार्गदर्शक रहा है, हर सुख-दुःख का साथी रहा है। नेहरु युग से ही भारत-रूस के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। दोनों देशों की संस्कृति, संगीत, कला, साहित्य के बीच भी गहरा आत्मीय लगाव रहा है। भारतीय फिल्में रूस में बड़े चाव से देखी जाती रही है। कश्मीर के मसले पर भारत जब-जब अलग-थलग पड़ता रहा, तब तब रूस ने भारत का साथ दिया। 1955 में रूस के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने कश्मीर पर भारतीय संप्रभुता के लिए समर्थन की घोषणा करते हुए कहा था, ‘हम इतने करीब हैं कि अगर आप कभी हमें पहाड़ की चोटियों से बुलाएंगे तो हम आपके पक्ष में खड़े होंगे।’ आश्वासन सिर्फ मुंहजबानी नहीं था बल्कि सोवियत संघ ने 1957, 1962 और 1971 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उन प्रस्तावों को वीटो कर दिया था, जिसमें कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की बात कही गई थी। भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष के दौरान भी जब पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका भारत पर लगभग आक्रमण करने ही वाला था, तब रूस द्वारा भारत के पक्ष में भेजी गई सैन्य सहायता ने ही अमेरिका को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया था। भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में भी रूस का अनूठा योगदान रहा है। रूस ने ही भारत को सैन्य हथियारों व अन्य साजोसामान की आपूर्ति करके अपने दुश्मनों का सफलतापूर्वक सामना करने में समर्थ बनाया है। ऐसे भरोसेमंद देश के साथ जब बीच के दौर में आर्थिक कारणों व वैश्विक दबावों के चलते दूरी आने लगी थी तो दोनों ही देशों की जनता ने मांग उठायी कि ऐसे विश्वसनीय सहयोगी को खोना उचित नहीं होगा। मोदी की यात्रा से भारत-रूस संबंधों एवं मित्रता की नई इबारत लिखी गयी है, जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम सुखद होने वाले हैं।