नायक जगबीर सिंह चौहान कीर्ति चक्र (मरणोपरान्त)
वीरगति दिवस विशेष
कुछ दशक पहले तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर के पास से होकर बहने वाली नदी के बीहड़ों में डाकुओं का बोलबाला था । चंबल के बीहड़ों को बागियों की धरती भी कहा जाता था । यह वह धरती है जिसके बागियों ने देश की सियासत के भी हाथ खड़े करवा दिए थे । आपसी रंजिश में गाँव के भोले भाले युवक किसी के उत्पीडन से तंग होकर या आपसी दुश्मनी के चलते बदले की भावना से बागी बनकर बीहड़ों में चले जाते थे और अपना गिरोह बनाकर या किसी के गिरोह में शामिल होकर बदला लेने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते थे । अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए यह लोग अपहरण और डकैती जैसी घटनाओं को भी अंजाम देते थे ।
एक ऐसे ही घटना 15 /16 मार्च 1970 की रात में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के गांव औरंध में घटी जिसमें अपने गाँव में वार्षिक अवकाश पर आये नायक जगबीर सिंह चौहान को डाकुओं का सामना करना पड़ा और अपने गाँव के बचाव में बदूक उठाकर ललकारना पड़ा । 15 /16 मार्च 1970 की रात लगभग 23:00 बजे,15 से 16 हथियारबंद डकैतों के गिरोह ने उनके एक पड़ोसी के घर पर डकैती करने के लिए धावा बोल दिया। लोगों को डराने के लिए डाकू फायरिंग कर रहे थे । गोलियों की आवाज नायक जगबीर सिंह अपनी 12 बोर की बंदूक लेकर अपने घर से बाहर निकले और ग्रामीणों को इकट्ठा किया । डकैतों को पकड़ने के लिए उन्होंने लोगों को तीन दलों में बांटा और मुख्य समूह का नेतृत्व स्वयं करने लगे । गांव के लोगों ने डाकुओं को घेर लिया । अपने को घिरा देखकर डाकू भागने लगे । नायक जगबीर सिंह ने भाग रहे डकैतों पर धावा बोल दिया और उनमें से एक को पकड़ लिया। एक डाकू को पकडे हुए देखकर , गिरोह के बाकी सदस्य भाग खड़े हुए लेकिन उनमें से एक ने नायक जगबीर सिंह पर गोली चला दी जिसके परिणाम स्वरूप वह वीरगति को प्राप्त हो गए।
इस कार्यवाही में नायक जगबीर सिंह चौहान ने उच्च कोटि के साहस, नेतृत्व क्षमता और वीरता का परिचय दिया। उनकी इस सूझ बूझ और साहस के आगे लूट के इरादे से आये हुए डाकुओं को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा । उनके इस साहस और वीरता के लिए उन्हें 15 मार्च 1970 को मरणोपरान्त “कीर्ति चक्र” से सम्मानित किया गया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि एक सैनिक हमेशा अपनी ड्यूटी पर होता है, चाहे वह साधारण जिन्दगी में हो या किसी मिशन पर हो। सैनिक का काम सिर्फ एक विशिष्ट समय पर यानी कि युद्ध में ही नहीं होता बल्कि उसे हर परिस्थिति से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना पड़ता है। अपने देश और समाज की रक्षा के लिए, कभी-कभी उन्हें अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को भी पीछे रखना पड़ता है क्योंकि उसके लिए देश प्रथम होता है।
नायक जगबीर सिंह चौहान का जन्म 02 अगस्त 1942 को जनपद मैनपुरी के गांव औरन्ध में श्रीमती राम बेटी चौहान और श्री फूल सिंह चौहान के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गांव के स्कूल से पूरी की और 27 जुलाई 1961 को भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गये। राजपूत रेजिमेंटल सेंटर में अपना प्रशिक्षण पूरा करने के उपरान्त वह 20 राजपूत रेजिमेंट में पदस्थ हुए। नायक जगबीर सिंह चौहान का विवाह श्रीमती शकुन्तला देवी से हुआ और इनके दो पुत्रियां हुईं – श्रीमती निर्मला और उर्मिला , जिनकी अब शादी हो चुकी है। नायक जगबीर सिंह चौहान की पत्नी श्रीमती शकुन्तला देवी का भी निधन हो चुका है। उनके गांव औरन्ध में नायक जगबीर सिंह चौहान के दो भाइयों के परिवार रहते है ।
नायक जगबीर सिंह चौहान की बेटी श्रीमती उर्मिला देवी का कहना है कि स्थानीय प्रशासन ने इनके पिताजी के साहस, वीरता और बलिदान को अक्षुण बनाये रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाया । स्थानीय प्रशासन से उनका कहना है कि उनके पिताजी के नाम पर उनकी एक प्रतिमा उनके गांव में स्थापित की जानी चाहिए और उनके ग्राम में स्थित पंचायत भवन का नामकरण उनके पिताजी के नाम पर किया जाना चाहिए ताकि आसपास के गांव की युवा पीढ़ी के जेहन में उनके पिताजी के शौर्य और वीरता की बात बनी रहे।
– हरी राम यादव
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