सावन साहित्य सेवा सदन में वेद-विमर्श

आज जो हम डी.एन.ए.जांच करवाने के लिए बड़ी बड़ी मशीनों का प्रयोग करते हैं। यह पद्धति हजारों साल पहले वेदों में लिख दिया गया है। उस समय जांच करने की प्रक्रिया कुछ और थी और आज की प्रक्रिया मशीनरी है। कुल मिलाकर देखा जाए तो हमारी आधुनिक चिकित्सा प्रणाली वैदिक चिकित्सा पद्धति की नींव पर खड़ी है और वेद आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की आत्मा हैं। उक्त बातें सावन साहित्य सेवा सदन, अटल नगर (अमवा बाजार), रामकोला, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में आयोजित साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कर्ता डॉ. सुनील चौरसिया सावन के एक प्रश्न के जवाब में असलम अली उर्फ आचार्य असलम चतुर्वेदी ने वेद के संदर्भ में विस्तार से बताते हुए कही।
वेद-विमर्श के दौरान उन्होंने बताया कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में वेदों का विशेष महत्व है। वेदों के बिना आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती। विभिन्न रोगों के इलाज हेतु हमारे वेदों में वायु चिकित्सा,जल चिकित्सा, सूर्य चिकित्सा,हवन चिकित्सा, मानसिक चिकित्सा का वर्णन किया गया हैं। वेदों में ऐसे चिकित्सकों का उल्लेख किया गया हैं,जो आज हम वेदों में पढ़ते हैं। ऋग्वेद में विभिन्न रोगों के निदान हेतु सैकड़ों जड़ी बूटियों का उल्लेख किया गया है। सर्पो का विष उतारने का मंत्र ऋग्वेद के मंडलों में उल्लेख किया गया है।आज के आधुनिक विज्ञान में जिस प्रकार विभिन्न अंगों के डाक्टर होते हैं।इस तरह के डाक्टरों का उल्लेख हमारे वेदों में हो चुका है। शरीर के विभिन्न अंगों के रोग विशेषज्ञ के रूप में अलग-अलग ऋषि हुआ करते थे। शैल्य चिकित्सकों में ऋषि सुश्रुत का नाम पहले आता है। आज के समय में जो शरीर के अंगों को चिर कर आंतरिक और बाह्य बीमारियों को ठीक किया जा रहा है।यह प्रणाली हम हजारों वर्ष पहले प्रयोग कर चुके हैं। छोटी-छोटी बीमारियों से लेकर बड़ी बीमारियों तक का इलाज हमारे मनीषियों ने वेदों में लिखकर अमर हो गए। उन मनीषियों में ऋषि चरक का नाम आता है। अथर्ववेद में भी अनेक असाध्य रोगों को ठीक करने के लिए अनेक प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान का वर्णन किया गया है। सिर को धड़ से अलग कर, फिर सिर को धड़ से जोड़ देना हमारे वेदों में देखने को मिलता है। जो आज का चिकित्सा विज्ञान नहीं कर पाएगा। वैदिक चिकित्सा विज्ञान को समझने में आज की युवा पीढ़ी को अभी समय लगेगा। जैसा कि पुराणों में भी वर्णित है कि भगवान शिव ने अपने पुत्र का सिर काट कर हाथी का सिर लगा दिया।