सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए — डॉ. नीरज भारद्वाज
भगवान शिव, पार्वती को कहते हैं कि गिरिजा मुझे हरि अर्थात भगवान श्रीराम का चरित्र बहुत सुहाता है। हमारे वेदों-शास्त्रों ने हरि के निर्मल चरित्रों, भक्ति, भजन का गान किया गया है। हरि कथा बताने-गाने-जपने में जो आनंद है, वह कहीं ओर नहीं है। इसका जाप निरंतर करते रहो। रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने लिखा है- हरि व्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होय मैं जाना।। भगवान प्रेम में बंधकर कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। हर जगह, हर क्षण वही उपस्थित हैं, बस उन्हें देखने वाले नेत्र चाहिए। उनके प्रति हमारा भाव चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने दर्शन के लिए दिव्य नेत्र देते हैं- दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्च मे योगवमैश्वरम्।। सही मायनों में भगवान को देखने वाले नेत्र होने चाहिए, आपका दृष्टि और दृष्टिकोण दोनों बदल जायेंगे, दुनिया बदलते देर नहीं लगती है।
भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र पर जब भी पढ़ने और चिंतन करने बैठता हूं। तो स्वयं मां सरस्वती एक नया विषय मन मस्तिष्क में उतार देती है भजन करने भी जब बैठता हूं तो भगवान श्रीराम का आदर्श अपने आप रोम-रोम को सुनाई देना शुरू हो जाता है। भगवान श्रीराम नर रूप में इस धराधाम पर आए। हम सभी के कल्याण के लिए भगवान ने पारिवारिक, सामाजिक, वैश्विक आदि सभी रूपों को आत्मसात कर हमें जीवन का संदेश दिया।
भगवान श्रीराम के एक-एक वचन कार्यकलाप और आदर्श, सृष्टि के हर एक जीव को अपना बना लेने वाले हैं। भगवान की लीला को स्वयं भगवान ही जानते हैं। वह हमें जगाने-समझने इस धराधाम पर आए। भगवान के नाम पर चर्चा-ध्यान योगी, मुनि, साधु, संत, महात्मा आदि कर सकते हैं। हम व्यसनों में उलझे लोग, भगवान की कथा सुनने और उसे सुने हुए को धारण कर जीवन में सुधार के लिए प्रयास कर सकते हैं। भगवान और उसकी भक्ति महसूस करने का विषय है। कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कितना ही बड़ा क्यों ना हो जाए, लेकिन संकट के समय केवल एक ही सहारा है और वह राम नाम का। भगवान के भजन की शक्ति के बिना कुछ भी नहीं है। भगवान सर्वत्र और सर्वव्यापक है।
भगवान श्रीराम ने इस धराधाम पर, इस सृष्टि के सभी जीवों, पेड़ों, लता, पत्ते आदि से बात की है। वह वचन को पूरा करने और वचन को निभाने वाले सच्चे व्यक्तित्व हैं। पिता के वचन को पूरा करने के लिए वनवास में आते हैं। एक गुरु द्वारा अपनी शिष्या को दिए वचन को पूरा करने के लिए भीलनी (शबरी) से मिलने जाते हैं। इतना ही नहीं भगवान श्रीराम शबरी से मिलने के बाद उन्हें नवधा भक्ति का उपदेश भी देते हैं। उनके झूठे बेर भी खाते हैं। इतनी सरलता, सहजता, केवल भगवान में ही हो सकती है। भगवान को भाव चाहिए, आदर्श तो व्यक्ति के अंदर फिर भगवान स्वयं ही बना देते हैं। भगवान को भजन चाहिए, भगवत प्राप्ति तो हो ही जाएगी। भगवान को नाम जप चाहिए, पार तो उतर ही जाएंगे। हरि भजन करते रहो, जीवन में आगे बढ़ते रहो। सीताराम सीताराम सीताराम कहिए, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए।

शहर जहां सौन्दर्य, संभावनाएं एवं संवेदनाएं बिछी हो -ललित गर्ग-
नया सैन्य गठजोड़ भारत के लिये चुनौती -ललित गर्ग-
नमो बुद्धाय: करुणा, समता और शांति का संदेश
हवा को जहर बनाता दिल्ली का आत्मघाती प्रदूषण -ललित गर्ग-
बिहार में तेजस्वी के नाम पर मुहर मजबूरी भरी स्वीकृति -ललित गर्ग-
पुलिस की पीड़ा : एक संतुलित दृष्टिकोण 