राष्ट्र का स्वाभिमान है हमारा संविधान — डॉ विनोद बब्बर
जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ तो संविधान बनाने के लिए डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के प्रबुद्ध लोगों की समिति बनाई गई। अस्थाई अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा तो उपाध्यक्ष डॉ हरेंद्र कुमार मुखर्जी और श्री वीटी कृष्णा मचारी रहे जबकि संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर थे। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे इनमें से 208 कांग्रेस के प्रतिनिधि, 93 रियासतों के, 73 मुस्लिम लीग के तो 15 अन्य सदस्य थे। लेकिन अंत तक सक्रिय रहे 299 और जब संविधान बनकर तैयार हो गया तो 284 सदस्यों ने उस पर हस्ताक्षर किए ।
संविधान सभा में इस बात पर गंभीर चिंतन मनन हुआ कि आखिर किस प्रकार ऐसा संविधान बनाया जाए जो भारतवासियों की अपेक्षाओं के अनुरूप हो। शासन व्यवस्था ऐसी हो जो देश के नागरिकों के प्रति उत्तरदायी तो हो ही हर वर्ग के हितों की रक्षा करने वाली भी हो।
हमारे संविधान निर्माताओं ने दुनिया के सभी संविधानों की गहरी छानबीन की। गंभीर विमर्श, सार्थक बहस के बाद संविधान में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, समानता के अधिकार सहित मौलिक अधिकार, सरकार के लिए नीति निर्देशक तत्व तथा दायित्व निर्धारित किए।
संविधान निर्माताओं ने व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के दायित्व और अधिकार तय किये। भारत संघ राज्य है । यहां राज्य सरकारों और केंद्र के बीच टकराव न हो यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य क्षेत्र को केंद्र सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में बांटा गया। इस प्रकार हमारे संविधान निर्माताओं ने देश को एक प्रभावी प्रमाणित और उत्तरदायी संविधान प्रदान किया जो केवल कानूनी ही नहीं बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज भी है क्योंकि यहां बिना किसी वर्ग, वर्ण, जाति, धर्म का भेद किये सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए हैं तो कुछ सामान कर्तव्यों की भी चर्चा है।
समय-समय पर संविधान में अनेक संशोधन भी हुए लेकिन संविधान की मूल धारणा बनी रही। यह देश के जन-गण की सजगता है कि कोई भी शासक हमारे संविधान को अपनी सुविधा के अनुसार विकृत नहीं सका है। संविधान को ऐसी मजबूती प्रदान करने के लिए यह राष्ट्र सभी संविधान निर्माताओं का आभारी है ।
यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि 9 सितंबर 1946 को संविधान लेखन कार्य आरंभ हुआ। 4 जनवरी 1948 को संविधान का पहला प्रारूप तैयार किया गया। इस पर 32 दिन तक चर्चा चली। हस्तलिखित अंग्रेजी का प्रारूप 6 माह में पूरा हुआ। 22 भागों में 395 अनुच्छेदो को समेटे 8 अनुसूचियों वाले हमारे संविधान को विश्व का सबसे सशक्त संविधान माना जाता है । 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा प्रारूप को स्वीकार किया गया।
यह सर्वज्ञात है कि भारतरत्न बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे। उन्होंने तुष्टिकरण को अस्वीकार किया। इसीलिए संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में शीघ्र से शीघ्र समान कानून लागू करने की बात शामिल की गई।
अंग्रेजी में इसे श्री प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हंस लेखन में लिखा तो हिंदी हस्त लेखन श्री वसंत कृष्ण वैद्य ने किया। संविधान की मूल प्रति को श्री नंदलाल बोस और उनके सहयोगी श्री ब्यौहर राम मनोहर सिन्हा ने 28 चित्र और 234 कलात्मक चौखटों में सजाया । संविधान की मूल प्रति जब चित्रांकन के बाद तैयार हो गई तो 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने उस पर हस्ताक्षर किए जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
समय-समय पर संविधान में अनेक संशोधन भी हुए लेकिन कुछ मामलों को छोड़कर अधिकांश में संविधान की मूल भावना कायम रखी गई। लेकिन वक्फ अधिनियम बनाने से शाहबानो मामले तक उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को दरकिनार किया गया। संविधान में स्पष्ट प्रावधान के बावजूद स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद आज तक देश की एकमात्र सम्पर्क भाषा हिंदी को राजभाषा नहीं बनाया गया। आपातकाल में एक व्यक्ति को बचाने के लिए संविधान में किए गए परिवर्तन दुर्भाग्यपर्ण है।
संविधान की मूल प्रति पर राम, कृष्ण, शिवाजी जैसों चित्रों की उपस्थिति उसे भारत की आत्मा से साक्षात्कार कराने वाला सर्वोपरि ग्रन्थ है।

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