अदृश्य अवरोध: अमेरिकी राष्ट्रपति पद और महिलाओं का संघर्ष गजेंद्र सिंह
अमेरिका में 2024 तक एक विचित्र विरोधाभास बना हुआ है – एक ऐसा देश जो समानता का समर्थक है लेकिन जिसने कभी महिला राष्ट्रपति नहीं देखी । जहाँ महिलाएं कॉरपोरेट जगत में शीर्ष पदों पर पहुंच रही हैं, खेल में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, प्रमुख मीडिया संस्थानों का नेतृत्व कर रही हैं, यहाँ तक कि उपराष्ट्रपति भी बन रही हैं, वहीं राष्ट्रपति का पद अभी भी उनकी पहुंच से दूर है।
आंकड़े चौंकाने वाले हैं – अमेरिका के 248 वर्षों के इतिहास में केवल दो महिलाएं प्रमुख दलों से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनीं। 2016 में हिलेरी क्लिंटन, जिन्होंने साहस के साथ चुनाव लड़ा और कमला हैरिस जो भविष्य में ओवल कार्यालय की संभावित दावेदार मानी जाती हैं । दुर्भाग्यवश, दोनों का सामना डोनाल्ड ट्रम्प से हुआ जो अदृश्य अवरोध तोड़ने की बजाय परंपरागत राजनीतिक नियमों को तोड़ने में अधिक रुचि रखते थे ।
विश्व का परिदृश्य बिल्कुल अलग है । भारत में इंदिरा गांधी दशकों पहले प्रधानमंत्री बनीं और लंबे समय तक देश का नेतृत्व किया। पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो ने दो बार प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली। बांग्लादेश में खालिदा जिया और शेख हसीना ने बारी-बारी से सत्ता संभाली। श्रीलंका में सिरिमावो भंडारनायके ने विश्व की पहली महिला प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रचा। हाँ, इनमें से कई को परिवार का नाम और राजनीतिक विरासत मिली पर कम से कम उन्होंने शीर्ष पद संभाला और सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। महिला उम्मीदवारों को विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । उन्हें न केवल अपनी नीतियों और योजनाओं को लेकर, बल्कि अपनी व्यक्तिगत छवि, पहनावे, बोलने के लहजे और यहां तक कि पारिवारिक जीवन को लेकर भी निरंतर आलोचना का सामना करना पड़ता है। मीडिया कवरेज में अक्सर उनके व्यक्तित्व पर नीतिगत मुद्दों से अधिक ध्यान दिया जाता है।
अमेरिका में स्थिति जटिल है। यहाँ की राजनीति में महिला उम्मीदवारों से विरोधाभासी अपेक्षाएं की जाती हैं। वे सक्षम हों पर बहुत अधिक नहीं ताकि पुरुष मतदाताओं को असहज न करें। मुखर हों, पर आक्रामक नहीं ताकि ‘अतिआत्मविश्वासी’ न लगें। अनुभवी हों पर बहुत अधिक नहीं ताकि ‘स्थापित व्यवस्था’ का हिस्सा न मानी जाएं। यह एक जटिल संतुलन है जिसे बनाए रखना लगभग असंभव है। युवा पीढ़ी में बदलाव की आशा दिखाई देती है। नए मतदाताओं में लैंगिक समानता को लेकर अधिक जागरूकता है। वे नेतृत्व क्षमता को लिंग के बजाय योग्यता से आंकते हैं। सर्वेक्षण बताते हैं कि मिलेनियल्स और जेन-जेड में महिला राष्ट्रपति की स्वीकार्यता अधिक है।

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