आस्था में लोग मनोरंजन की मिलावट कर रहे है ,आप इस बात से कितने सहमत हैं? लेखिका-सुनीता कुमारी पूर्णियां बिहार
वर्तमान समय में हमारे चारों तरफ, एक चीज हर क्षेत्र में हर जगह देखने को मिल रही है कि, लोग बहुत ही जोर शोर से प्रत्येक त्यौहार मनाते हैं अपना पूरा एनर्जी इन त्योहारों को मनाने में लगा देते हैं। और मनाना भी चाहिए हमारी सनातन संस्कृति हमारी परंपरा हमें दुनिया में सबसे आगे रखती है।
हमारी सनातन संस्कृति ही थी जब पुरा संसार अज्ञानता के अंधकार में डुबा हुआ था तो हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति विकसित थी धनवैभव सबकुछ हमारे पास था।
मगर कहते हैं न उत्थान के बाद पतन निश्चित है वैसे ही हमारे देश की भी स्थिति हुई और इसका एक मात्र कारण यह रहा की हम अपनी विरासत को हम संभाल नहीं पाए??जिसका खामियाजा हमें कई सौ सालों की गुलामी के रूप में भुगतना पड़ा।
आजादी से पहले देश के विद्वानों और नौजवानों ने मिलकर उसी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को ढाल बनाकर आजादी की लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की ।
रामलीला, रासलीला, कृष्णलीला , रासलीला, रामायण पाठ, आदि न जाने कितने ही अध्यात्म के माध्यम से लोग अपनी ईश्वर के प्रति श्रद्धा और आस्था प्रकट करते हैं अपनी सुरक्षा की देश की सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा की करतें हैं
मगर अब माहौल बदल रहा है,अब इन सब में आस्था जगह मनोरंजन लेने लगा है।
कुछ लोग धार्मिक कार्यों को श्रद्धा से मनाते हैं वहीं कुछ लोग इसे मनोरंजन के तौर पर मानने लगे हैं ?अभी हाल ही में नवरात्रि का त्योहार बीता है देश भर में जगह-जगह पर गरबा और डांडिया का आयोजन किया गया , रामलीला का मंचन किया गया।
इन आयोजनों में आस्था की जगह मनोरंजन का पूरा ध्यान लोगों ने रखा ,खूब झूमे गाए, मगर कितना आस्थावान रहे इस पर प्रश्न चिन्ह लगता है??
इन आयोजनों में खासकर कपड़ों की जो रौनक दिखाई दी ऐसा लगता था जैसे लोग त्योहार में नहीं कपड़ों की प्रदर्शनी में आए हैं? फैशन के नाम पर रंग बिरंगे कपड़ों की जैसे प्रदर्शनी लगी हों?
स्त्रियों की अर्धनग्नता और पुरुषों की पैनी नजर हर पूजा पंडाल की आम बात थी।जो हमारी संस्कृति पर कठोर प्रहार करती है,इन सब चीजों पर पाबंदी लगाई जानी जरूरी है मंदिर और डिस्को में कैसे कपड़े पहनने है इसका अंतर हर किसी को समझान जरूरी है
ऐसा कहीं नहीं लग रहा था कि लोग ईश्वर की आराधना करने जा रहे हैं बल्कि, ऐसा लग रहा था कि लोग मेले में एंजॉय करने जा रहे हैं?
वैसे हमारा सनातन रंग भगुआ है और सारे लोग इस कपड़े में आते तो एकरूपता का रंग पूरे देश में फैलता।
नवरात्रि शुरू होने से कई महीना पहले लोग तैयारी शुरू कर देते हैं किस दिन क्या पहनना है क्या करना है सारा प्रोग्राम बना लेते हैं इस पर हजारों का खर्च करते हैं मगर मंदिरों के बाहर अभी
भीख मांगते भूखे नंगे बच्चे घूमते रहते हैं जहां लोग हजारों हजार रुपए अपने ऊपर खर्च करते हैं वहां पर 5 ₹10 रूपया गरीब बच्चों को देने से कतराते हैं
वर्तमान समय में धर्म का स्वरूप ही बदल गया
सोशल मीडिया लोगों को हर चीज में मनोरंजन ढूंढना सिखा रहा हैं और जैसे मनोरंजन करना ही एकमात्र उद्देश्य जीवन का रह गया हो।
सोशल मीडिया पर तरह-तरह के गुरु और गुरुमां ज्ञान देते हुए मिल जाते हैं और लोग उनके ज्ञान को फॉलो करते हुए सिर्फ और सिर्फ खुद के ऊपर ध्यान देते हैं ,घर में जो बड़े बुजुर्ग होते हैं उनकी अनदेखी कर सिर्फ और सिर्फ अपनी खुशी देखते हैं धर्म वह नहीं है जो आज के समय में दिखता है धर्म वह है जो हम करते हैं
धर्म का अर्थ भगवान पर फूल और बेलपत्र अर्पण करना नहीं बल्कि, भगवान के ऊपर नित्य कर्म में शुद्ध मन और शुद्ध तान के साथ फूल बेलपत्र अर्पण करने के साथ-साथ समाज सेवा भी है।
समाज सेवा हमारे घर से ही शुरू होती है हम मंदिर जाए ना जाए मगर हमारे घर में जो बूढ़े बुजुर्ग हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, अगर हम मंदिर जाते भी हैं तो पहले घर के सभी सदस्यों की जरूर को ध्यान में रखते हुए मंदिर जाना चाहिए और भगवान का ध्यान करना चाहिए
सांसारिक लोगों के लिए “कर्म है हमारी पूजा है। ”
इस नवरात्रि मे पूजा के दिन मेरी एक परिचित मेरे घर आई और उनके बच्चे भी उनके साथ आए,तो मैंने पूछा कि बच्चे इतने कमजोर क्यों लग रहे हैं
तो उसने कहा दीदी नवरात्रि चल रहा है इस नवरात्रि में पूजा की अधिकता के कारण मैं खाना नहीं बन पा रही हूं बच्चों को एक टाइम में ही खाना बनाकर खिला रहे हैं, हम दोनों पति-पत्नी नवरात्रि के उपवास में है और बच्चों के लिए खाना पकाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि व्रत का खाना भी बनाना होता है और बच्चों के लिए अलग से भी बनाना होता है इसलिए थोड़ी दिक्कत आ
रही है।
मुझे सुनकर बड़ा अजीब लगा कि बच्चों से बढ़कर कौन सा फास्ट कौन सी आस्था कौन सा पूजा
छोटे बच्चों के भूखे रखकर कौन सी पूजा सफल होगी। भक्ति उतनी ही जरूरी है कि, हमारे रूटीन लाइफ में हमारे रोज की जिंदगी में घर के किसी सदस्य को खाने के लिए परेशान ना होना पड़े ,किसी को भूखा न रहना पड़े एक मां की आराधना करते हैं वहीं दूसरी ओर एक मां होते हुए अपनी मां संबंधी जिम्मेदारियां को दरकिनार कर देते हैं।
सांसारिक लोगों के लिए हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारा घर परिवार है और पूजा भक्ति हमारे जिंदगी का अहम हिस्सा है मगर यह उतना ही होना चाहिए जितना हमारे घर में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो आस्था हो मगर दिखावा और देखादेखी न हो। आस्था में सिर्फ भक्ति हो मनोरंजन न हो। हमारी सनातन संस्कृति हमें शांत और संयमित रहना सिखाता है हुल्लड़बाजी नहीं।

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