आओ तारीफ़ और प्रशंसा कर हौसला बढ़ाएं-निष्ठाहीन प्रशंसा चापलूसी को छोड़ें तारीफ़ और प्रशंसा रूपी फूल की सुगंध रूपी सार्थक शक्ति से मनुष्य की सोई... Read More
उपदेश टाइम्स न्यूज़
तेरा हुआ हमें अहसास का ये सुख सभी ने पाया
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कविता – हे ईश्वर तुने हमें यह जहांन नसीब कराया, हे सूरज तुने हमें रौशनी व ऊर्जा प्रदान की, हे चन्द्रमा तूने शीतलता दी प्यार... Read More
क्या आपको पता है कि प्रथम मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम ने 712 ई में भारत के सिंध प्रांत पर आक्रमण किया और काफी उत्पात... Read More
किसानों का मार्च एक बार फिर — डॉ0 रमेश ठाकुर
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अन्नदाताओं की समस्याओं का समाधान आखिर कब होगा? क्या उनकी मांगे भविष्य में कभी पूरी हो भी पाएंगी या नहीं? केंद्र में सरकार चाहे कांग्रेस... Read More
6 दिसम्बर, संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर विशेष आज हमारा देश भारत पूरे विश्व में आर्थिक दृष्टि से एक सशक्त राष्ट्र बनकर... Read More
पूरब से उत्तर तक फैला हूँ उत्तुंग शिखरों से सुशोभित हूँ वन-सम्पदाओं का खान हूँ खनिजों से परिपूर्ण हूँ जीव-जंतुओं से आह्लादित हूँ, मैं हिमालय... Read More
अमेरिकी मूल्यों से लबरेज़ परोकार,बेहतरीन टीम के साथ व्हाइट हाउस में आ रहे हैं ट्रंप….!प्रशासन में भारतवंशियों का दबदबा! ट्रंप की बेहतरीन टीम में शामिल... Read More
आओ एक और एक ग्यारह बनें-बटेंगे तो कटेंगे एक हैँ तो सेफ़ हैं,पूरे भारत के परिपेक्ष में सकारात्मक सोचें हम सभ भारतीय एक ही दिशा... Read More
विकास का सूचक और अर्थव्यवस्था का आधार बनता बढ़ता मशीनीकरण आज आधुनिक जीवन के हर क्षेत्र को संचालित कर रहा है । आधुनिक जीवन मशीनों... Read More
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आर्थिक विरासत को कुचलने की चेष्टाएं अतीत से लेकर वर्तमान तक होती रही है। बहुत बड़ा सच है कि... Read More

तारीफ़ और प्रशंसा औषधि का काम करती है जो हमारे व्यक्तित्व में मिठास,कानों से होते हुए मन के द्वारा हृदय में घुल जाती है – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कट ऑफ डेट पर उठते हुए सवालों का जवाब आखिर कौन देगा –कमलेश पांडेय
डॉ.भीमराव अम्बेडकर की नजर में भारत का आर्थिक दृष्टिकोण — डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी
मैं हिमालय हूँ @ डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस, जिलाधिकारी, जौनपुर, यूपी
पर्यावरण की चिंता बनता बढ़ता औद्योगिक कचरा( विवेक रंजन श्रीवास्तव)
सांस्कृतिक पहचान को कुचलने की कुचेष्टाएं कब तक? -ललित गर्ग-