उपदेश टाइम्स न्यूज़

69वें फिल्मफेयर अवार्ड्स साउथ 2024 में ‘बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर (तेलुगु)’ जीता, मुंबई (अनिल बेदाग) : श्रीराम चंद्र भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक ऐसे व्यक्तित्व... Read More
भगवान शिव, पार्वती को कहते हैं कि गिरिजा मुझे हरि अर्थात भगवान श्रीराम का चरित्र बहुत सुहाता है। हमारे वेदों-शास्त्रों ने हरि के निर्मल चरित्रों,... Read More
होमियोपैथिक डॉक्टर व सामाजिक कार्यकर्ता आजकल आए दिन सुनने एवं होने वाली तमाम बीमारियों में से एक बहुत ही आम बीमारी जो करीब करीब सभी... Read More
हिन्दी गीत खुद भटके संग संग भटकाता चंचल पल को ठहर न पाता लगता है बंजारा मन आहट बिन पदचिह्न के छोड़े गति असीमित चहुँदिश दौड़े घुमे है जग सारा मन … लगता है बंजारा मन न कोई सीमा न कुछ बंधन कभी न रूकता रोके से मन उधर  चले  ये जहां चाह है मतवाले   की  वहीं  राह है गैरों से कब खुद ही खुद से जीत जीतके हारा मन … लगता है बंजारा मन बाट   जोहे  आकंठ  उदासी कितनी भूखी कब से प्यासी आड़ी – तिरछी ठहरी नेह से पलको पलकों में दृग देह से सहज सरल उस परछाई से जब सहमा बेचारा मन … लगता है बंजारा मन अपनी धुन में  हो आनंदित चिंतन चिंतित या मर्यादित विनम्र विचार बड़े या छोटे अंतस्  बोल अधर से लौटे बात नहीं  जब सुनता कोई... Read More
मानवाधिकार दिवस (10 दिसम्बर) मानवाधिकार मनुष्य के मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं, जिससे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। 10 दिसंबर 1948 को यूनाइटेड नेशन्स की जनरल एसेम्बली ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इस ऐतिहासिक कार्य के बाद ही एसेम्बली ने सभी सदस्य देशों से अपील की कि वे इस घोषणा का प्रचार करें और देशों या प्रदेशों की राजनीतिक स्थिति पर आधारित भेदभाव का विचार किए बिना विशेषतः स्कूलों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में इसके प्रचार, प्रदर्शन और व्याख्या का प्रबंध करें। इस घोषणा में न सिर्फ मनुष्य जाति के अधिकारों को बढ़ाया गया बल्कि महिला और पुरुषों को भी समान अधिकार दिए गए। मानवाधिकार विश्व भर में मान्य व्यक्तियों के वे अधिकार हैं जो उनके पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यावश्यक हैं इन अधिकारों का उदभव मानव की अंतर्निहित गरिमा से हुआ। इस उद्घोषणा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति और समाज का प्रत्येक अंग इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान जागृत करेगा और अधिकारों की विश्वव्यापी एवं प्रभावी मान्यता और उनके पालन को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। मानव अधिकारों की सामान्य की परिभाषा इस रूप में समझी जा सकती है-दृढ़तापूर्वक रखे गये दावे, अथवा वे जो होने चाहिए, अथवा कभी-कभी उनको भी कहा जाता है जिनकी विधिक रूप से मान्यता है और उन्हें संरक्षित किया गया है जिनका प्रयोजन प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यक्तित्व आध्यात्मिक, नैतिक और अन्य स्वतंत्रता का अधिक से अधिक पूर्ण और स्वंतंत्र विकास सुनिश्चित करने को है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अनुसार मानवाधिकार का इस प्रकार समझा जा सकता है। मानव अधिकार से प्राण, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति की गरिमा से संबंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत हैं जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किये गए हों या अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सन्निविष्ट और भारत में न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं। जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार के कुछ तत्त्व मानवाधिकारों में निहित है। आज के समय में, जब हम विकास और प्रगति की बात करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानवाधिकार और महिला संरक्षण हमारे समाज के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। महिलाएं हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें समान अधिकार और अवसर प्रदान करना हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन आज भी महिलाएं कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं, जैसे कि लिंग भेदभाव, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, और आर्थिक असमानता। यह हमारे समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है और हमें इसे हल करने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा। इसी प्रकार सरकार और सामाजिक संगठनों को महिला संरक्षण के लिए ठोस काम करना होगा। इसके लिए महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना प्रमुख है। हमें महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करना होगा ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें। हमें यह भी याद रखना होगा कि मानवाधिकार और महिला संरक्षण केवल महिलाओं के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। जब हम महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान करते हैं, तो हम अपने समाज को अधिक समृद्ध और विकसित बनाते हैं। हम सब एकजुट होकर मानवाधिकार और महिला संरक्षण के लिए काम करें और एक समान और न्यायपूर्ण समाज बनाएं। मानवाधिकार और महिला अधिकार संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर हमें चिंतन कर कार्य करने की आवश्यकता है। महिला शक्ति हमारे समाज की विशिष्ट पहचान है, उन्हें समान अधिकार और अवसर प्रदान करना हमारी जिम्मेदारी बनती है। इनके अधिकारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, समानता, और सुरक्षा शामिल हैं। लेकिन आज भी बहुत सी महिलायें अनेक चुनौतियों का सामना करती हैं, जैसे कि लिंग भेदभाव, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, और आर्थिक असमानता। मानवाधिकार संरक्षण के लिए हमें महिलाओं को शिक्षा और जागरूकता प्रदान करनी होगी ताकि वे अपने अधिकारों के बारे में सचेत हो सकें। इसके साथ महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करना, महिलाओं को सामाजिक समर्थन प्रदान करना ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें। हमें महिला अधिकारों और मानव अधिकार संरक्षण के लिए एकजुट होकर काम करना होगा... Read More
गीता जयन्ती 11 दिसम्बर पर विशेष गीता केवल हमारे लिए नहीं, सम्पूर्ण विश्व के लिए है। मानवमात्र की हित चिंतक है गीता। उसे किसी काल विशेष से भी बांधा नहीं जा सकता क्योंकि सर्वकालीन है गीता। हर युग, हर देश, हर परिवेश, हर समाज, हर आयु वर्ग के समक्ष चुनौतियां अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती हैं। कुछ लोग इन चुनौतियांे के समक्ष घुटने टेक देते हैं परंतु अधिकांश उनसे पार पाने का प्रयास करते हैं। न जाने क्यों, कर्म करने का उतना तनाव नहीं, जितना कर्म फल का होता है।  कुछ तनावग्रस्त होते हैं तो कुछ तनावों पर नियंत्रण करते हुए केवल कर्म करते रहने के संकल्प पर दृढ़ रहते हैं। एक विद्यार्थी के लिए भी गीता का महत्व है। आज की शिक्षा प्रणाली में किसी भी विद्यार्थी की योग्यता, प्रतिभा को मांपने का एकमात्र तरीका परीक्षा में प्राप्त अंक हैं। अतः यह स्वाभाविक ही है कि परीक्षा, विशेष रूप से बोर्ड की परीक्षा में पहली बार भाग लेने वाले छात्रों की दशा अर्जुन जैसी होती है। पहली बार अपने विद्यालय से दूर, बिल्कुल अलग परिवेश, चारों ओर औपचारिकता जैसी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक निश्चित समय में अधिकतम अंक प्राप्त करने की लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे एक किशोर की व्यथा को समझना मुश्किल नहीं है। नये तरह के ढेरो प्रश्न। अधिकांश के उत्तर वह जानता है लेकिन उलझ जाता है कि किसे पहले? लेकिन कैसे आदि-आदि। उसे स्वयं की स्मरण शक्ति और क्षमता पर संदेह होने लगता है। तनावग्रस्त छात्र परेशान होता है क्योंकि वह नहीं जानता कि महात्मा गांधी ने कहा है, ‘जब शंकाएं मुझ पर हावी होती हैं, और निराशाएं मुझे घूरती हैं, आशा की कोई किरण नजर नहीं आती, तब मैं गीता की ओर देखता हूं।’ प्रतियोगिता, परीक्षा और तनाव के संबंध में सभी जानते हैं। सबने अपने अपने समय में इसका अनुभव अवश्य किया है। तनाव होना तब तक सामान्य बात है जब तक तनाव का स्तर सामान्य रहे। असामान्य तनाव का अर्थ है- हमारी अपनी बुद्धि ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हो जाये। बस इस संतुलन को बरकरार रखने की कला हमें गीता से ही मिल सकती है। वह शिक्षा व जीवन में व्यावहारिक बनने की प्रेरणा देती है। आज के प्रतियोगी जीवन में हमें एक प्रेरक चाहिए। जो हमें समय प्रबंधन सिखाये, तनाव नियंत्रण के गुर बताये। श्रीकृष्ण एक महान प्रेरक हैं। और उनके श्रीमुख से प्रवाहित गीताज्ञान अज्ञान के अंत के लिए ही है। सोशल मीडिया, स्मार्ट फोन, इंटरनेट आदि की तकनीकी तो अभी आई हैं लेकिन महाभारत काल में भी इसकी झलक मिलती है। परिस्थितियां प्रमाण है कि ‘टेलीपैथी’, ‘दिव्यदृष्टि’ प्राप्त की जा सकती है अगर हम अपने कर्तव्यों को लेकर गंभीर रहें, आत्मविकास करें। यही बात एक विद्यार्थी को समझनी है कि गीता हमें स्मार्ट बनना सिखाती है। ऐसा होकर ही हम अपने जीवन की मूर्खताओं को पहले ढकते हैं और फिर अनुभव से उनसे छुटकारा पाते हैं। कृष्ण कोई और नहीं, बल्कि हमारी चेतना है और तनावों, शंकाओं, विकारों से घिरा हमारा मन अर्जुन है। जो प्रश्न तब थे, वही अब भी हैं। हमारे हर सवाल का जवाब हमारे विवेक के पास है लेकिन विवेक सोया है, तो जवाब नहीं मिल सकता। गीता विवेकवान बनाती है। जिसका विवेक जागृत हो जाता है, उसका जीवन सफलता और प्रेरणा का गीत बन जाता है। श्रीमद्भगवद् गीता हमें स्वयं में विश्वास और ईश्वर में आस्था की प्रेरणा देते हुए सिखाती है कि हमें मैदान छोड़कर भागना नहीं है, बल्कि रचनात्मक बनना है। परिणाम का तनाव छोड़कर अपने कर्तव्य पथ पर चलते रहने वाला ही जीवन का आंनद प्राप्त करता हैं। तकनीक के विकास को अपना विकास मानने के कारण ही तो हम अपना आंतरिक विकास करना भूल गये है। इसी कारण किशोर छात्र के सामने काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर और अहंकार रूपी भाव तो हैं ही, अपसंस्कृति, नशा, कामुकता, विदेशी शक्तियों के भ्रमजाल, देशद्रोही विचारधारा जैसे अनेक शत्रु प्रलोभन और आकर्षण के साथ विद्यमान हैं। आज भी एक अपरिपक्व युवा उस अर्जुन की तरह उन्हें अपना मानते हुए उनसे युद्ध करने को सहज तैयार नहीं है। उसे इस फिसलन भरे वातावरण से निकलने और बचाने का काम श्रीमद् भागवत गीता ही कर सकती है। विश्व के श्रेष्ठ ग्रंथों में शामिल गीता, न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी, बल्कि कही और सुनी भी जाती है। द्वितीय अध्याय का 47 वां और सबसे अधिक प्रचलित श्लोक है- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।। चतुर्थ अध्याय का 39 वां श्लोक कहता है- श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दसवें... Read More
फर्रुखाबाद दैनिक उपदेश टाइम्स न्यूज़ फर्रुखाबाद।   मोहम्मदाबाद के ग्राम करमचंद पुर के जयकरन सिंह व उनके भाई बबलू उर्फ धर्मेंद्र में झगड़ा हो रहा था।... Read More
फर्रुखाबाद दैनिक उपदेश टाइम्स न्यूज़ फर्रुखाबाद   कायमगंज में रेवन्यू बार एसोशिएसन के दर्जनों पदाधिकारी तहसील पहुंचे। जहां उन्होंने मांग की और कहा तहसील न्यायालयों में... Read More
फर्रुखाबाद दैनिक उपदेश टाइम्स न्यूज़ मोहम्मदाबाद । थाना क्षेत्र के गांव खजुरी में दिनदहाड़े दोपहर 12:00 बजे आठ लाख के जेवर एवं दो लाख रुपए... Read More