पत्रकार कौन? बदलते दौर में पत्रकारिता की असली पहचान पर सवाल हीरा मणि गौतम , विद्यार्थी ( जनसंचार और पत्रकारिता )वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय , जौनपुर

जौनपुर- आज के तेजी से बदलते दौर में पत्रकारिता की परिभाषा ही धुंधली होती जा रही है। एक समय था जब पत्रकार समाज का आईना माने जाते थे। उनका काम था—सत्य को खोजना, उसे निडर होकर जनता तक पहुँचाना और लोकतंत्र को मजबूत करना। लेकिन मौजूदा समय में सोशल मीडिया और इंटरनेट की बाढ़ ने पत्रकार और कंटेंट क्रिएटर के बीच की रेखा को लगभग मिटा दिया है।
आज सोशल मीडिया पर हर घंटे सैकड़ों वीडियो वायरल होती हैं। कोई सड़क हादसा हो, कोई विवादित बयान, कोई छोटा सा झगड़ा या कोई मज़ाक—कुछ ही मिनटों में लाखों लोगों तक पहुँच जाता है। समस्या तब गहरी हो जाती है जब इन वीडियोज़ को तथ्यों की पड़ताल किए बिना ही “खबर” का रूप दे दिया जाता है।
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य था समाज को सही सूचना देना, लोगों की आवाज़ को मंच प्रदान करना और सत्ता के सामने सवाल खड़े करना। लेकिन आज की तथाकथित “वायरल पत्रकारिता” में केवल एक पक्ष को दिखाना, आधा सच फैलाना और व्यूज के लिए खबर को कहीं से कहीं ले जाना आम हो गया है।
लोगों के बीच यह भ्रम तेजी से बढ़ रहा है कि आखिर असली पत्रकार कौन है? मोबाइल लेकर लाइव करने वाला हर शख्स क्या पत्रकार कहलाएगा? या फिर वह व्यक्ति पत्रकार है जो हर स्थिति में तथ्य की पुष्टि कर, सभी पक्षों को सामने रखकर और पत्रकारिता की मर्यादा में रहते हुए खबर प्रस्तुत करता है?
सोशल मीडिया पर पनप रही “ट्रायल पत्रकारिता” (Trial Journalism) ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। बिना किसी ठोस सबूत या जांच-पड़ताल के लोगों पर आरोप लगाना, किसी भी घटना को सनसनीखेज बनाना और समाज में तनाव की स्थिति पैदा करना पत्रकारिता नहीं बल्कि गैर-जिम्मेदारी है।
पत्रकारिता की असली पहचान वही है जहाँ साहस हो, निष्पक्षता हो और मर्यादा हो। एक पत्रकार वह है जो सत्ता, समाज और प्रशासन से सवाल पूछे, जनता की पीड़ा को आवाज़ दे और किसी भी खबर को प्रकाशित करने से पहले तथ्यों की पड़ताल करे।
आज इस दौर में असली पत्रकार की पहचान करना कठिन हो गया है। लेकिन एक बात स्पष्ट है— पत्रकार वही है जो सत्य और न्याय के साथ खड़ा हो। जो सिर्फ व्यूज, फॉलोअर्स या वायरल होने के लिए खबरों को तोड़-मरोड़कर न परोसे।
अतः सवाल अब और भी बड़ा हो गया है—क्या हम सोशल मीडिया के भीड़भाड़ वाले इस दौर में असली पत्रकार को पहचान पा रहे हैं? और क्या पत्रकारिता का मूल स्वरूप आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह पाएगा? इसी लिए सवाल उठता है कि पत्रकार कौन?