मेवात में महिला शक्ति की मिसाल बनी अनपढ़ जुम्मी — राजेश खण्डेलवाल
राजस्थान के मेवात में बालिका शिक्षा के बदलते हालातों की प्रेरणादायक कहानी है जुम्मी की जो खुद पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन उसने अपनी बेटी शबनम को पढ़ा लिखाकर जेईएन बनाया है। आर्थिक मजबूरियों के बीच ऐसा करना जुम्मी के लिए आसान नहीं था। लोगों के खूब ताने सुने और सहे भी। एक बेटा और पति को खोने के बाद भी जुम्मी ने हिम्मत नहीं हारी और उसकी मेहनत रंग लाई। आज जुम्मी मेवात में महिला शक्ति की मिसाल बनी है।
गांव मिर्जापुर की 50 वर्षीय अशिक्षित जुम्मी कहती है, मैं पढ़ नहीं पाई, जिसका मुझे मलाल है लेकिन मैं बेटी को पढ़ा पाई, यह मेरे लिए गर्व की बात है। मेरी बेटी सरकारी नौकरी पाकर अपने पैरों पर खड़ी है तो अब वे भी मेरे साथ खड़े नजर आते हैं जो कभी बेटी को पढ़ाते समय ताने भी मारते रहते थे। करीब 550 परिवारों की आबादी वाला मिर्जापुर गांव अब खैरथल जिले के किशनगढ़बास ब्लॉक में आता है जो पहले अलवर जिले का ही हिस्सा होता था। अलवर से मिर्जापुर करीब 55 किलोमीटर दूर है।
जुम्मी बताती है कि गांव में पढ़ाई का माहौल ही नहीं था। पहले बेटियों को पढ़ाना तो दूर, लोग बेटों को ही स्कूल भेजने से परहेज करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मैंने बेटी को पढ़ाने की ठानी तो गांव-बस्ती में अनपढ़ लोग ऐतराज जताने लगे। तरह-तरह ही बात बनाते थे, लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी।
जुम्मी कहती है, एक बार अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान के नूर मोहम्मद ने गांव में सर्वे कराया और बेटियों को पढ़ाने के लिए गांव वालों को समझाने का प्रयास किया। लोगों ने उनकी बात को सुना तो सही लेकिन समझा नहीं। मैंने उनकी बात को ना केवल समझा, बल्कि उस पर अमल भी किया। उनके सहयोग से बेटी शबनम को सर्व शिक्षा अभियान के तहत ब्रिज कोर्स से कक्षा 5वीं की पढ़ाई कराई और उसका सरकारी स्कूल में दाखिला कराया।
जनियर इंजीनियर बन चुकी जुम्मी की बेटी शबनम बताती है कि 10वीं तक पढ़ाई मैंने गांव में ही की। उसके बाद मैंने इलैक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा किया। चूंकि इलैक्ट्रोनिक्स में स्कोप ज्यादा नहीं था तो फिर मैंने सिविल में डिप्लोमा किया। इसके बाद वर्ष 2018 में मैंने बीटेक किया। मैं अब अलवर जिले की रामगढ़ पंचायत समिति में जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत हूं। शबनम बताती हैं कि अब बहुत अच्छा महसूस होता है और लोग सिर पर हाथ रखकर दुआएं देते हैं तो मुझे सुकून भी महसूस होता है।
जेईएन शबनम बताती हैं, वर्ष 2013 में हुए एक एक्सीडेंट में भाई चल बसा तो वर्ष 2017 में ब्लड कैंसर के कारण पिता फेज मोहम्मद (फेजू) का इंतकाल हो गया, लेकिन मैंने और मेरी मां ने हिम्मत नहीं हारी।
उन दिनों को याद कर भावुक हुई शबनम कहती है कि अगर मां हिम्मत हार गई होती तो आज मैं यहां तक नहीं पहुंच पाती। मां जुम्मी उन दिनों में भी मेरा हौंसला बढ़ाती रहती और कहती थी कि खुदा को जो मंजूर था, वह हो गया, अब आगे अपने लक्ष्य पर ध्यान दे। जेईएन शबनम बताती है कि जिन संकटों को सामना मैंने किया है, ऐसा किसी अन्य बालिका को नहीं सहना पड़े। वह कहती हैं कि अब समय बदल गया है। मुस्लिम समुदाय में भी लोग बालिकाओं को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे हैं।
बालिकाओं को करती हूं प्रेरित
जेईएन शबनम बताती हैं, मुझे प्रेरित करने में अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान (एमिड) के नूर मोहम्मद का बड़ा योगदान है। जब भी मौका मिलता है मैं अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान के कार्यक्रमों में शामिल होती हूं। अन्य बालिकाओं को भी पढऩे के लिए प्रेरित करती हूं, क्योंकि बिना शिक्षा के कुछ कर पाना मुश्किल है। वे बताती हैं कि फील्ड डयूटी के दौरान जिस गांव में भी जाना होता है, वहां भी समय मिलने पर बालिका शिक्षा के लिए ग्रामीणों को जागरूक करने का प्रयास जरूर करती हूं।

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